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समयसारके टीकाकार विद्वद्वर रूपचन्दनी
[२११ शिष्य परम्परा--
१२ व असोजबदि (स्वयं लिखित प्रति पति वावचन्द्रजीके
संग्रहमें, समयसार बकी भी संवत् में रूपचन्द्र महोपाध्याय रूपचन्द्रजीकी शिष्यपरंपरामें शिव
जीकी लिखित प्रति उनके संग्रहमें है) (१) बगुस्तकरवजी भादि अच्छे विद्वान हो गये हैं। भाज भी खरतरगच्छ
वा सम्बत् १७६८ (0) मुहू समधिमाला (पत्र अन्य के भट्टारक बीकानेर गहीके श्रीपूज्य विजयेन्द्रसूरिजी
1) सम्बत् १० मिगसरसुदी । जोशी रामकिशावइनकी ही विद शिष्य परंपरा प्रतीक है । चित्तौड़के
के पुत्र बच्छराजके लिए रचित ।) (5) गौतमीय काव्य, पति बालचंदजी भी बने सज्जन व्यक्ति है। ग्वाविपरमें
सम्बत् 1500 जोधपुर रामसिंह राज्ये रचित । () रामचन्द्रजीकी शिष्य पपंपरा चल रही है। जिनका संग्रह
भक्तामर टब्बा, सम्बत् १" (कालाउनामें, शिष्य लश्करके श्वेताम्बर जैन मन्दिरमें रक्खा हुमा है। शिष्य
पुण्यशील, विद्याशीलके भाग्रहसे रचित (१०) कल्याणपरंपराका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-रूपचन्दजीने
मन्दिर टन्या सम्बत् १८11 काबाउनामें। अपने ग्रंथोंमेंसे कई ग्रन्थ स्वशिष्य पदमा और वस्ताके लिये बनाये ऐसा उल्लेख किया है। उनके दीक्षा नाम पुण्य
(1) 'दुरियर' बीरस्तोत्र वालावरोध, लेखन संबद्ध शील विद्याशील था। इनमेंसे पुण्यशील रचित ज्ञेय चतु-१९ या
१८ वीबाडा 'पत्र' (१२) चित्रसेन पदमावतीविंशतिम्तवन मुनि विनयसागरजी ने प्रकाशित किये
, चौपाई सम्बत् १८१४ पौह सुदी १४ बीकानेर (३ चतुहै, जिनको प्रस्तावमा मैंने लिखी है। ज्ञानानंद प्रकाशन
विशति जिन स्तुति पंचाशिका, संवत् 141.माधवदी। नामक भापके अन्यकी अपूर्ण प्रति चित्तौड़के यति वास
बीकानेर (१४) गुबमावा प्रकरण, संवत् 1510 जेससदजीके संग्रह में अभी अवलोकनमें बाई जिसकी पूर्ण प्रति
मेर । (१५) साघुसमाचारी सम्बत् १८१६ (यह पसत्र
बालापबोधके अन्तरगत ही संभव है। (१६)भारवीर्यप्राप्त करना आवश्यक है।
यात्रा स्तवन संवत् १८२ प्राचार्य जिनसामरिके साथ पुण्यशीलके शिष्य समयसुन्दर उनके शिष्य उपाध्याय
८५ मुनियों के साथ यात्रा (१०) हेमीनाममाला भाषाढीका शिवचंद्रभी बड़े अच्छे विद्वान हो गये हैं। जिनके रचित
(कांड) सम्बत् १८२२ पौह सुदी ३ काबाना प्रय म्नलीलाप्रकाशकी प्रति भी अपूर्ण व बृटित अवस्था (मणोतसरतरामके लिये) (१८) खोदी पारवस्ववन, में प्राप्त हुई है। इसकी भी पूरी प्रति प्राप्त होनी आवश्यक
सम्वत् १८२५ मिगसर सुदी (18) अल्पाबहुत्व स्तवन है। आपके रचित ऋषिमण्डलपूना आदि प्रकाशित हो
सम्वत् १८२काबाऊनामें विलित ति (81) शत रखोकी चुकी है शिवचंद्रजीके शिष्य रूपचंद्रजी अच्छे विद्वान थे,
टम्या 10 मिगसरसुदी १. पाखी । (२२) सषिपात जिनके रचित कई ग्रंथ प्राप्त है। रामचंद्रजीके शिष्य
कलिका टब्बा सम्बत् १" माषसुदि १, पानी। उदयराजके शिष्य नेमचंद्रजीथे। जिनके शिष्य यति श्याम- (२३) सिदाम्तचन्द्रिका सुपोषिकावृत्ति (पत्र १२४) लालजीका उपाश्रय जयपुरमें है। इनके ही शिष्य विजयेन्द्र
सम्बत् ११३४ से पूर्व (सम्बत् है पर स्पहनहीं हो पाया। सूरिजी वर्तमान बीकानेर शाखाके श्री पूज्य है। शिषचंद्र
पचन (२४) कल्पसूत्रवाखावबोध (२२)वीर भायु २ वर्ष बीके दूसरे शिष्य ज्ञान विशाबजीके शिष्य प्रमोबकचंद और ime
स्पष्टीकरण, सम्वत् १८१४ से पूर्व (२१) नेमि नवरसा(२०) उनके शिष्य विनयचन्द्र हुए। जो सम्बत् ११४१ तक गौती छंद (गाथा ३१) (२८) बोसवाबरास गा. " विद्वान ये चित्तौरके यति बालचंद्रजी उन्हींके प्रशिघ्य (११) नयनिक्षेपस्तवन गा०३२(३०)सहखकूटस्तवन । होंगे। अब माहोपाध्याय रूपचन्द्रजीकी रचनायोंकी सूची ( विवाहपड (१२) वीर पंचकल्याक स्तवन सम्मतानुक्रमसे नीचे दी जा रही है
(१३) स्तवनावली (१७) पेराग्य सम्माय(१५साध्वाचार (१) समापद कवित्त सम्बत् ...विल्हावास में पटत्रिंशिका (११) पारस्तवन सटीक (१०वदेशी रचित (२) जिनसुखसूरि मजलस सम्बत् १७७१(३) स्तोत्र (स्लोक १६)(१८) विज्ञप्ति द्वात्रिंशिका गा०३३ शतकत्रय बालापबोध, संवत् १७८८ कार्तिक यदि (११)शषभदेव स्तोत्र (0) कुशलसरि पटक प्रादिसोजत् (७) अमस्थतक बाबावबोध, सम्बत् १ असो-- अभी जयपुरके यति स्वामबाबजीका संग्रह देखना जसविसोजत (समयसारपाजावयोष सम्बत् १-- और बाकी है। तथा पिचौरबाले ति पासचन्द्रजीके
(खोकतवा सोसावाचार
"क पदि।