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अनेकान्त
[किरण ६
संघ जाते थे। अन्वेषण करने पर गजपम्य यात्राके अभ्य- श्रदेय पं. माथूरामजी 'मी' मालिक हिन्दी अन्य भी समुलेख प्राप्त हो सकते हैं। परन्तु विचारना तो यह रत्नाकर हीराबाग बम्बईसे भी मिले। उनसे चर्चा करके है कि वर्तमान गजपन्थ ही क्या परातन गजपन्थ है या बड़ी प्रसन्नता हुई। मुख्तार साहब कुछ अस्वस्थसे चल अब पं. नाथूरामजी प्रेमीके लिखे अनुसार वि.सं. रहे थे, वे प्रेमीजीके यहाँही ठहरे । वहीं उन्हें सर्व १६३६ में नागौरके महारक क्षेमेन्द्रकीर्ति द्वारा मसरून प्रकारकी सुविधा प्राप्त हुई। पूर्ण पाराम मिलनेसे तबि. गाँव पाटीलसे जमीन लेकर नूतन संस्कारित गजपन्थ है। यत ठीक हो गई। हम सब लोगाने हैजेके टीके यहाँही हो सकता है कि गजपन्य विशाल पहाबन रहा हो, पर वह लगवा लिये। क्योंकि श्रवण बेल्गोलमें हैजेके टीकेके इसी स्थान पर था, यह अन्वेषणकी वस्तु है। इन सब उस्ले- विना प्रवेश निषिद्ध था। खोसे गमपन्थकी प्राचीनता और नासिकनगरके बाहिर उसकी
बम्बईसे हम लोग ता. २१ की शामको बजे अवस्थिति निश्चित थी। पर वह यही वर्तमान स्थान है।
पूनाके लिये रवाना हुए । बम्बईसे पूना जानेका मार्ग इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता। इस सम्बन्धमें
बड़ा ही सुहावना प्रतीत होता है। पहावकी पढ़ाई और भन्य प्रमाकि अन्वेषण करनेकी भावश्यकता है ।
पहाइको काटकर बनाई हुई गुफाएं देखकर चित्तमें गजपन्यकी वर्तमान पहाड़ी पर जो गुफाएं और मूतियाँ थीं
पदी प्रसन्नता हुई। यह प्रदेश इतना सुन्दर और मनउनका नूतन संस्कार कर देनेके कारण वहाँकी प्राचीनताका
मोहक है कि उसके देखनेके लिये चित्तमें बड़ी उत्कंठा स्पष्ट भान नहीं होता। वहाँकी प्राचीनताको कायम रखते
बनी रहती है। हम लोग रातको १ बजे पूना पहुंचे हुए जीर्णोद्धार होना चाहिये था। पहाड़ पर मूर्तिका दर्शन .
और स्टेशनके पासकी धर्मशालामें ठहरे । यद्यपि भीदमें करना बड़ा कठिन होता है। और पहार पर भी
पूनामें भनेक स्थल देखनेकी अभिलाषा थी । खासकर सावधानीसे चढ़ना होता है, क्योंकि कितनी ही सीदियाँ
"भयहाकर रिसर्चइन्स्टिव्य द" तो देखना ही था, अधिक ऊँचाईको निये हुये बनाई गई है। हम लोगोंने
परन्तु समय की कमोके कारण उसका भी अवलोकन सानन्द यात्रा की।
नहीं कर सके। गजपन्यसे नासिक होते हुए पहादी प्रदेशकी वह
पूनासे हम लोग रात्रिके ५ बजे कोल्हापुरके लिये मनोरम बटा देखते हुए हम लोग रात्रिको बजे ता. २२
रवाना हुए। और सतारा होते हुए हम लोग रात्रि में फर्बरीको बम्बई पहुँचे और सेठ सुखानन्दजीकी धर्म
कुंभोज (बाहुबली) पहुँचे। - शानामें चोथी मंजिल पर ठहरे।।
कुम्भोज बढ़ा ही रमणीक स्थान है। यहाँ अच्छी बम्बई एक अच्छा बन्दरगाह है और शहर देखने धर्मशाला बनी हुई है। साथ ही पासमें एक गुरुकुल है। योग्य बम्बईको भावादी धनी है । सम्भवतः बम्बईकी गुरुकुल में स्वयं एक सुन्दर मन्दिर और भव्य रथ मौजूद भाबादी इस समय पञ्चीस तीस लाखके करीब होगी। है। बाहुबलीकी सुन्दर मूर्ति विराजमान है दर्शन पूजन बम्बई व्यापारका प्रसिद्ध केन्द्र है। यहाँसे ही प्राय सब कर दर्शकका चित्त माल्हादित हुए बिना नहीं रहता। वस्तुएँ भारतके प्रदेशों तथा अन्य देशोंमें भेजी जाती हैं। उपर पहाड़ पर भी अनेक मन्दिर है जिनमें पार्श्वनाथ हम लोगोंने बम्बई शहरके मन्दिरोंके दर्शन किये चौपाटीमें और महावीरकी मूर्तियाँ विराजमान हैं और सामने एक बने हुए सेठ माणिकचन्द्रजी और सबपति सेठ पूनमचन्द बढ़ा भारी मानस्तम्भ है। बाहुबली स्वामीकी मूर्ति बड़ी बासीलाबजीके चैत्यालयके दर्शन किये। ये दोनों ही ही सुन्दर और चित्ताकर्षक है। दर्शन करके हृदयमें जो चंत्यालय सुन्दर है। भूलेश्वरके चन्द्रप्रभु चैत्यालयके भानन्द प्राप्त हुआ वह वचनातीत है। दर्शन पूजनादिसे दर्शन किये । रानिमें वहाँ मेरा और बाबूलालजी जमादारका निपट कर मुनि श्रीसमन्तभद्रजीके दर्शन किये, उन्होंने भाषण हुमा । एक टैक्सी किरायेकी लेकर बन्दरगाह भी अभी कुछ समय हुए मुनि अवस्था धारण की थी। देखा। समयाभावके कारण अन्य जो स्थान देखना चाहते उन्होंने कहा कि मेरा यह नियम था कि ६० वर्षकी नहीं देख पाये।
अवस्था हो जाने पर मुनिमुद्रा धारण करूंगा। मुनि
ब जे कोदापार
हुए। और सत
धर्म