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[किरण ६
हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण
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विद्वानोंको चाहिये कि इस क्षेत्रके सम्बन्ध अन्वेषण 'ममा हिमवत्यपि प्रतिष्ठे, किया जाय, जिससे यह मालूम हो सके कि यह स्थान दण्डात्मक गजपथे पृथुसारयो। कितना पुराना है और नाम क्या था, इसे पावागिरि ये साधवो हतमाः सुगति प्रयावा: नाम कब और क्यों दिया गया। यह एक विचारतीय स्थानानि वाणि जगति प्रथिवाग्मभूवन् ॥१०॥ विषय है जिस पर मम्वेषक विद्वानोंक विचार करना
पूज्यपादके कई सौ वर्ष बाद होने वाले प्रसग कविने मावश्यक है।
जो नागनदी प्राचार्य के शिष्य थे। उन्होंने अपना 'महाउनसे चलकर हम लोगधनिया पाए । यहाँ से ला. वीर चरित' शक संवत् 1. (वि.सं .१)में राजकुण्याजी और सेठ बदामोलालजी 'मांगीतुगी' की बना कर समाप्त किया था। असगने अपने शान्तिनाथ याबाके लिये चले गए। हम लोग नियासे सीधे गज- पुराणके मातवें सर्गके निम्न पछमें गजपम्प वा 'गजवन पंथा भाये। और रात्रिमें एक बजेके करीब धर्मशालामें पर्वतका उक्लेख किया है। पहुँचे। वहाँ जाकर देखा तो धर्मशाला दिल्ली और अपश्यन्नावरं किंचिदझोपायमधात्मनः । बलितपुर भाविके यात्रियोंसे ठसाठस भरी हुई थी। किसी शैलं गजवर्ज प्रापन्नासिक्यनगराबहिः॥१८॥ तरहसे दहलानमें बाहर सामान रख कर दो घंटे भाराम
विक्रमकी १६वीं शताब्दीके विद्वान ब्रह्माभवसागरने, किया । और प्रात:काल नैमित्तिक क्रियाओंसे फारिग होकर
जो भ०विद्यानन्दके शिष्य थे। अपने बोधपाहुबकी टीकामें पात्राको चले।
२७ नम्बरकी गाथाकी टीका करते हुए-उर्जयन्त-शत्रु यह गमपन्य तीर्थ नूतन संस्कारित है। सम्भव है जय-बाटदेश पावागिरि, भाभीरदेश तुंगीगिरि, नासिक्यपुराना गजपन्ध नासिकके बिलकुल पास ही रहा हो, नगरसमीपवर्तिगजध्वज-भाजपन्य सिद्धकूट....."गबध्वज जहाँ वह वर्तमानमें है वहाँ न हो। पर इसमें सन्देह नहीं या गजपन्धका उल्लेख किया है। इतनाही नहीं किन्तु कि गजपन्य क्षेत्र पुराना है।
माम तसागरमे 'पञ्चविधानकथा' की अन्तिम प्रशस्तिमें गजपन्य नामका एक पुराना वीर्य क्षेत्र नासिक जिसे ईडरके राजा भानुभूपति, जो 'रावमापजी' नामसे के समीप था । जिसका उल्लेख साकीवी और विक- प्रसिद्ध थे, यह राठौर राजा रावजाजीके प्रथम पुत्र और मकी छठी शताब्दीके विज्ञान प्राचार्य पूज्यपाद (देवनन्दी) रामनारायणदासजीके भाई थे। सं०११०२ में गुजरायके ने अपनी निर्वाणभक्तिके निम्न पथमें किया है।- बादशाह मुहम्मदशाह द्वितीयने इंटर पर चढ़ाई की थी,
तब उन्होंने पहादोंमें भागकर अपनी रचाकी, और बादमें * नासिक पुराना शहर है। यहाँ रामचन्द्रजीने बहुत
सुबह कर ली थी। इन्होंने सं० १५०२ से १९५२ तक सा काल व्यतीत किया था, कहा जाता है कि इसी
राज्य किया है। इनके मंत्री भोजराज हुमडबंशी थे, उनकी स्थान पर रावणकी बहिन सूर्पणखाकी नासिका काटी
पस्नी विनयदेवी थीं। उनके चार पुत्र ये और एक पुत्री। गई थी इसीसे इसे नासिक कहा गया है। नासिकमें
ब्रह्माश्रुतसागरने संघ सहित इनके साथ गजपंयकी यात्रा की ईस्वी सन्के दो सौ वर्ष बाद अंधभृत्य, बौद्ध,
थी और सकलसंघको दान भी दिया था यथाचालुक्य, राष्ट्रकूट चंडोर यादववंश और उसके
यात्रा चकार गजपन्थगिरौ स संधाबाद मुसलमानों, महाराष्ट्रों और अंग्रेजोंका राज्य
घन्तपो विदधती सुरव्रता सा शासन रहा है। यह हिन्दुओंका पुरातन तीर्थ है।
सम्छान्तिकं गवसमर्थनमहंदीश बह गोदावरी नदीके बायें किनारे पर बसा हुमा है
नित्यानं सकलसंघसदत्वदा ॥४॥ पंचवटीका मन्दिर भारतमें प्रसिद्ध ही है। दिगम्बर
इससे स्पष्ट पता चलता किविक्रमकी वी जैमग्रंथों में भी नासिकका उल्लेख निहित है।
शताब्दीमें 'गजपन्य क्षेत्र विद्यमान था और उसकी बाबा . प्राचार्य शिवार्यकी भगवती चाराधनाको ११५ की स गाथामें नासिक्य या नासिक नगरका उस्लेख मिलता x देखो, अनेकान्त वर्ष-किरण में माताहै। भगवती भाराधना अन्य बहुत प्राचीन है। जी प्रेमीका खेल।