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किरण ६] हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण
[१६१ हैं, जो जैनियोंके प्रमाद और धार्मिक शिथिलताकी घातक के करीब किराया देना पगा। वहांसे सामान मोटर पर हैं। क्या जैन समाज अपनी गाढ़ निन्द्राको भंग कर पुरा- चढ़वा कर हम लोग ३ बजेके करीबगडवानी बडिंगहाउसमें तत्वके संरक्षणकी ओर ध्यान देगा।
ठहरे। वहाँ पं. मंकरजी न्यायतीर्थ योग्य विधान तमा निर्वाणका - इस पावागदक्षेत्रसे रामचन्द्र
मिलनसार व्यक्ति हैं। उन्होंने हम लोगोंके ठहरनेकी डयसीके दोनों पुष वश तथा लादेशके राजा और पाँच वस्था की तथ। गेहूँ और अच्छे बोको मी व्यवस्था करा करोष मुनियों के निर्वाणका पवित्र स्थान बतलाया गया दी। बोडिंगहाउसमें छात्र अंग्रेजो और सस्कृतको शिक्षा है इस सम्बन्ध भी अन्वेषणको मावश्यकता है। मात करते हैं। हम लोगोंने वहाँ २.३ घण्टे में कुछ खाने
पीनेका सामान बरोदा और विद्यार्थी ज्ञानचन्द्रादिको साथ पावागढ़से चल कर हम लाग तरोड होते हुए दाहोद
में लेकर चूल गरिकी यात्रार्थ चल दिए। वहा धर्मपहुँचे, और दि. जैन पोडिंग हाउसमें ठहरे । वहीं परिडत
शालाके पास बारीको स्वदाकर हम लोग पहारको यात्रा हरिश्चन्दजीने हम लोगीक ठहरनेकी व्यवस्था की ।
करने के लिए चले। और हमने ता. २० फरवरी सन् नशियांजीका स्थान सुन्दर है वहां भगवान महावीर
१९१३ को शामको सात बजे यात्रा प्रारम्भ की। और दो स्वामीकी एक मनोग्य एवं विशाल मूर्तिक दर्शन कर चित्तमें
तीन घरटेमें सानन्द यात्रा सम्पन्न की। यात्रामें जितना बढ़ी नसबता हुई और सफरके उन सभी कष्टोको भूल
भानन्द पाया, वहाँ ठहरनेके लिये समय कम मिलनेसे गए जो सफर करते हुए उठाने पड़े।
कष्टभी पहुंचा; क्योंकि वहाँ अनेक पुरानी मूर्तियाँ मौजूद दाहोद सन् १४१९ (वि. स. १४७६) तक बाह- है। जो १०वी ११ वीं शताब्दीकी जान पाती हैं। रिया राजपूतोंके प्राधीन रहा। किन्तु सुलतान अहमदने कितनी ही ऐतिहासिक सामग्री विभिन्न पदी है परन्तु राजा इंगरको परास्त कर दाहोद पर अधिकार कर क्षेत्रक प्रबन्धोंने उसे संगृहीत करनेका प्रयत्न ही नहीं लिया । सन् १९७३ में अकबर बादशाहके प्राधीन रहा। किया, केवल पैसा संचित करने और धर्मशाला वा मानस्तसन् १६१६ में शाहजहाँने औरङ्गजेबके जन्मके सम्मानमें म्भादिक निर्माण में उसे खर्च कर देनेका ही प्रयत्न किया कारवा सराय बनवाई थी। बादमें सन् १७५० वि० स० गया है। परन्तु क्षेत्रके इतिहासको खोज निकालने और १८०७ म सिधियाक कब्जेम पाया और सन् १८०३ में पुरानी मूर्तियाँ तथा अवशेषोंका सग्रह कर उनके संरक्षण अंग्रेज सरकारने उसपर कब्जा कर लिया यह पहले अच्छा करनेकी ओर ध्यान ही नहीं दिया गया, जिसकी पोर बदा नगर रहा है। दाहादसे सुबह चार बजेसे हमलोग क्षेत्रके मनीमका ध्यान प्राकर्षित किया गया। बड़वानी बावनगजा को यात्राके लिए चले । और " चूजगिरिमें सबसे पधानमूर्ति मादिनाथजी को है बजेके करीष हमलोग मरवदा नदीक घाट पर पहुंच गए। जिसं बावनगजाजीके नामसे भी पुकारा जाता है। अब यहाँस लारीको पार करनेमे ५५ घन्टेका विलम्ब हुआ, इस मूर्तिके उपर छतरी होनेके कारण मधुमक्खियांका बायलालजी जमादारको शहरमें इजाजत लेनेके लिए कुत्ता लगा हुआ है। यह मूति ८४ कीटकी ऊँची बतलाई भेजा गया। उनके सरकारी भाज्ञालेनेसे पूर्व हम सब जाती है मूर्ति सुन्दर है, कलापूर्ण भी है परन्तु वह उतनी बोगांने नहा धोकर भोजन बनाना प्रारम्भ किया। बाला- पाकर्षक नहीं है जितनी श्रवणबेलगोजकी मूर्ति है। राजकृष्णजी और मेड बदामीलालजीकी कारे नदीके चलगिरि गावानीसे दक्षिण दिशामें है। बडवानी उस पार पहुँच गई और वे बसवानीमें दि.जैन बोटिंग
छोटीसी रियासतको राजधानी रही है। चूगिरिमें अपर हाउसमें ठहरे। बाबूलाल जीके माने पर बारीका सामान
Ma २ मशिनियाका उतार कर पहले नावद्वारा सामान उस पार भेजा गया, ॥ गया, बडवानीसे दक्षिण दिशामें चूखगिरि-शिखरसे इन्द्रजीत
जियाये . बाद में बारीका नाव पर चढ़ा कर उसपार भेजा। और
और कुम्भकर्णादि मुनियोंके मुक होनेका उक्लेख है। एक नाबमें हम सब लोग पार उतरे। इसके लिए हमें १०)
जिससे इस क्षेत्रको भी निर्वाण क्षेत्र कहा जाता है। • रामसुमा विरिण जया बादरिदाण भट्टकोसोभो। दिगम्बर जैन नायरेक्टरी में लिखा है-किपरवानी'पुराना पावाए गिरि तिहरे सिवाय गया समो वेसि ॥२॥ नाम नहीं है बगभग १०० वर्ष पूर्व इसका नाम 'सिक