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कुरलका महत्व और जैनकर्तृत्व
[श्रीविद्याभूषण पं. गोविन्दराय जैन शास्त्री] [इस लेख मेखक जैन समाजले एक प्रसिद्ध प्रज्ञाच विद्वान है जिन्होंने कुरल काव्यका गहरा अध्ययम ही नहीं किया बल्कि उसे संस्कृत, हिन्दी गद्य तथा हिन्दी पों में अनुवादित भी किया है, जिन सबके स्वतंत्र प्रकाशनका प्रायोजन हो रहा है। पाप कितने परिश्रमशील लेखक और विचारक हैं यह बात पाठकोंको इस लेख परसे सहज ही जान पड़ेगा। आपने अब भनेकान्तमें लिखनेका संकल्प किया है यह बड़ी ही प्रसनताका विषय है और इसलिये अब आपके कितने ही महत्वके लेख पाठकको पढ़ने को मिलेंगे, ऐसी
-सम्पादक परिचय और महत्व
इसे अधिक महत्व इस कारण देते हैं कि इसकी विषय'रस' वामिल भाषाका एक अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति- विवेचन-शजी बड़ी ही सुन्दर, सूपम और प्रभावोत्पादक प्राप्त काव्य ग्रन्थ है । यह इतना मोहक और कलापूर्ण है । विषय-निर्वाचन भी इसका बड़ा पांडित्यपूर्ण है। कि संसार दो हजार वर्षसे इसपर मुग्ध है यूरोपकी प्रायः मानवजीवनको शुद्ध और सुन्दर बनानेके लिए जितनी सब भाषामोंमें इसके अनुवाद हो चुके हैं। अंग्रेजी में इसके विशालमात्रामें इसमें उपदेश दिया गया है उतना अन्यत्र देवरेण्ड जी. यू. पोपकवि, पो. वी. एस. अय्यर मिलना दुर्लभ है। इसके अध्ययनसे सन्तप्त-हदयको बहुत
और माननीय राजगोणताचार्य-द्वारा लिखित तन मनु- शांति और बल मिलता है, यह हमारा निजका भी अनुबाद विद्यमान है।
भव है। एक ही गनिमें दोनों नेत्र चले जानेके पश्चात् तामिख भाषा-भाषी से शामिल वेद' 'पंचम वेद हमारे हृदयको प्रफुल्लित रखनेका श्रेय करजको ही प्राप्त 'ईश्वरीष प्रन्य' 'महान सस्य सर्वदेशीय बेद' जैसे नामां
है। हमारी रायमे यह काम्य संसारके लिए वरदान स्वरूप से पुकारते हैं। इससे हम यह बात सहजमें ही जान सकते
जो भी इसका अध्ययन करेगा वही इसपर निछावर हो है कि उनकी प्टिमें कुरलका कितना पादर और महत्व जावगा। हम अपनी इस धारणाके समा
जावेगा । हम अपनी इस धारणाके समर्थनमे तीन अनुवाहै। 'नादियार' और 'कुरब' वे दोनों जैन काव्य तामिल कांके अभिमत यहां उद्धत करते हैं:भाषाके 'कौस्तुभ' और 'सीमन्तक मणि हैं। तामिन १.डा. पोपका अभिमत-'मुझे प्रतीत होता है कि भाषाका एक स्वतंत्र साहित्य है, जो मौलिकता नया इन पद्योंमें नैतिक कृतज्ञताका प्रबनभाव, सत्यकी लीवशोध, विशाखतामें विश्वविख्यात् संस्कृत साहित्यसे किसी भी __ स्वार्थरहित तथा हार्दिक दानशीलता एवं साधारणतया भांति अपनेको कम नहीं समझता ।
उज्जवल उद्देश्य अधिक प्रभावक हैं। मुझे कभी कभी रखका नामकरण प्रन्थमे प्रयुक्त कुरलगवा'
ऐसा अनुभव हुआ है कि माना इसमें ऐसे मनुष्यों के नामक बन्दविशेषके कारण हुमा है जिसका अर्थ दोहा
लिए भण्डाररूपमें पाशीर्वाद भरा हुआ है जो इस विशेष है। इस नीति काम्बमें १३३ अध्याय है, जो कि
प्रकारकी रचनाओंसे अधिक प्रानन्दित होते हैं और हम धर्म(परम) अर्थ (पोरन) और काम इनवम, इन तीन
तरह सत्यके प्रति पुधा और विपासाकी विशेषताको विभागों में विभक्त है और ये तीनों विषय विस्तारके साथ
घोषित करते है, वे लोग भारत-वर्षके लोगोंमे श्रेष्ठ है इस प्रकार समझाये गये है जिससे ये मूलभूत अहिंसा
तथा कुरत एवं नालदीने उन्हें इस प्रकार बनाने में
सहायता दी है। सिद्धान्तके साथ सम्बद्ध रहें। पारखी तथा धार्मिक विद्वान
२. श्री वी.वी. एस. अय्यरका अभिमत-'कुरज. पह यह काव्य है जिसे अतकेवली भद्रबाहुके संघमें काने भाचार-धर्मकी महत्ता और शक्तिका जो वर्णन किया दषिण देशमें गये हुये पाठ हजार मुनियोंने मिलकर है उससे संसारके किसी भी धर्म संस्थापकका उपदेश बनाया था।
अधिक प्रभावयुक्त या शक्तिप्रद नहीं है। जो वासने
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