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किरण 1
हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण
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पड़ा है। यह पहाड़ पहले दिगम्बर सम्प्रदायके कब्जे में ही तीमरी टोकसे आगे चलनेपर एक बम उतार पाना है। था और वही इसका प्रबन्ध करते थे। इनकी अस्त व्यस्तता नीचे पहुँचने पर जहाँ कुछ समभाग भाजाता है, वहांसे
और असावधानीही उसमें निमित्त कारण है। इनकी बाई भोर चौथी टोंक पर जानेका पगडंडी मार्ग पाता है। प्राचीन सामग्री विद्वेशवश नष्ट-भ्रष्ट कर दी गई हैं। इस टोकपर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ नहीं है. इस कारण गिरनारजीके तीर्थयात्रा स्थल
चढ़ने में बड़ी कठिनाई होती है, बदी सतर्कता एवं सावधानी
से चढ़ना होता है जरा चुके कि जीवनका अन्त सममिए। तलहटीसे दो मीलकी दूरी पर एक बड़ा दरवाजा
इसीस किननेही लोग गैथो रोकी नीचेसे पंदना करते भाता है उससे कहीं ४० कदम पर दाहिनी ओर एक
हैं। टोंकके उपर काले पाषाण पर नेमिमायकी प्रतिमा सरकारी बगला है, हममें एक दुकानदार रहता है इसके
तथा दूसरी शिवापर चरण अंकित हैं, जिस पर संवत् वाजमें दिगम्बर जैन धर्मशाला । जिसमें एक पुजारी
१२४४ का एक लेखभी उत्कीर्ण किया हुआ है। पर्वतकी और एक सफाई करने वाला रहता है पासमें श्वेताम्बर
यह शिखर अत्यन्त ऊँची है, इस परसे चारों भोरका धर्मशाला है। यहां से सीधी सड़क चलने
दृश्य बड़ाही सुन्दर प्रतीत होता है। परन्तु जब पर दाहिनी ओर एक छोटा सा दरवाजा मिलना है
नीचेकी ओर अवलोकन करते हैं तब भयसे शरीर उसमे करीब १२० पीढ़ी चढ़ने पर दाहिनी ओर एक
कांप जाता है। कम्पाबन्दके अन्दर तीन दिगम्बर मान्दर हैं बाई पार नीचे श्वेताम्बर मंदिर है और इन्हीं दिगम्बर मन्दिराके उस सम भूभागसे भागे चलने पर कुछ पढ़ाई नीचे राजुनकी गुफा है। अस्तु, मन्दिरोंसे १०५ सीढ़ी पाती है उसे तय कर यात्री पांचवीं टोंक पर पहुँचता चढ़ने पर 'गोमुग्वीकुरा मिलता है। यहां कम्पाउन्डके है। इस टोंक पर भगवान नेमिनाथके चरण हैं, एक अन्दा नर कुण्डके उपर ताकमें चौबीम तीर्थंकर भगवानके पाषाणकी मृति भी है जो कुछ धिस गई है। यहीं पर चरण हैं। यह कुण्ड हिन्दू भाइयोंका है। इस कम्पाउन्डमें नेमिनाथ के गणधर वरदत्तका निर्वाण हुमा है। हिन्द महादेव मन्दिर हैं। यह मम स्थान पहलो टोक कहा भाई नेमिनाथके चरणोंको दत्तात्रयके चरया कह कर पूजा जाता है। इस गोमुखीकुण्डके पाससं उत्तरको ओर हैं और मुसलमान मदारशा पीरको तकिया कहते हैं। सहसाम्रवनके जानेका मार्ग भी पाना है।
पचवीं टोकपे ५-७ सीदी नीचे उतरने पर संवत् 1100 प्रथम टाफसे आगे चलने पर गिरनार पर्वतकी चोटी का एक लेख मिलता है जैनी यात्री इसी टोंकसे नीचे पर बाई भोरको अम्बादेवीका एक बड़ा मन्दिर बना हुया उतर कर वापिस दूसरा टोंक पर जाते हैं और वहां से वे है। इसके पीछ चबूतरा पर अनिरुद्ध कुमारके चरण हैं। सहसाम्रवन होते हुए तलहटीकी धर्मशाला मा जाते हैं। हिन्दु भाई इसे अम्बामाताको रोक कहते हैं।
हम लोग यहां पर दिन ठहरे, तीन यात्रएं की। एक यहांसे भागे चलने पर एक तीसरी पाती है।
दिन मध्यमें मूनागढ़ शहर भी देखा और मन्दिरोंके दर्शन इस पर शम्भूकुमारके चरण हैं। हिन्द लोग इसंग रख. किए, अजायब घर भी देखा। नाथको टोंक बतलाते हैं।
यहांस हम लोग पुनः राजकोट होते हुए सोनगढ़ पहुंचे।
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