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भनेकान्त
[किरण ५
भाषामें और एक प्राकृत भाषामे रचा था। जैमेन्द्र महा- लाक्षणक-ग्रंथों में हेमचन्द्राचार्यकृत 'काम्यानुशासन' वृत्ति 'जेनेन्द्र प्रक्रिया', 'कातन्त्र रूपमाला' और 'शाकटा- उल्लेखनीय है। कथा साहित्यमे प्राचार्य हरिषेणविरचित पन व्याकरण' मादि सुन्दर व्याकरण ग्रन्थ है। शाकटायन 'कथाकोष' अत्यन्त प्राचीन है। 'भाराधनाकथाकोष' म्याकरण पाणिनीसे पूर्वका है। पाणिनीनं अपने व्याकरण- 'पुण्याश्रव कथाकोष' उद्योतन सूरि विरचित 'कुवलयमाला' में शकटायनके सूत्रका स्वयं उल्लेख किया है।
हरिभद्र कृत, समराच्य कहा, और पादलिप्तसूरिकृत अलंकारमे 'अलंकार चिन्तामणि' और वागभट्ट कृत 'तरंगवती कहा' आदि सुन्दर कथा प्रन्य हैं। कुवलय. 'बागमहालंकार' है। कोषों में 'अभिधान चिन्तामणि', माला, प्राकृत भाषाका उच्च कोटिका ग्रन्थ है। प्रस्तुत 'भनेकार्थ संग्रह', नाममाजा', 'निघंटशेष', 'अभिधान प्रन्थका जैन-स हिस्य में वही स्थान है. जो स्थान भारराजेन्द्र', 'पाइयसहमहराणव' तथा 'विश्वलोचन-कोष' तीय साहित्यमें उपमितिभवप्रपंच कथा' का है। मादिनुपम प्रन्य है। पाद-पति काव्योंकी रचना भी
प्रबन्धोंमें चन्द्रप्रभसूरिकृत प्रभावकारित, मेरुतुंगजैन-साहित्यकी प्रमुख विशेषता है।
कृत, प्रबन्ध चिन्तामणी, राजशेग्वकृत, प्रवन्धकोष, तथा
जिनप्रभ सूरिकृत विविधतीर्थकल्ल, दष्टव्य है। जैन-साहित्यमें स्तोत्रोंकी भी रचना की गई । महाकवि धनंजय विरचित 'विषापहारस्तोत्र और कुमुदचद्रप्रणीत'
विशेषत. जैन-साहित्य दो भागोंमें विभक्त किया जा
सकता है-लौकिक और धार्मिक साहित्य । लौकिकसे कल्याणमन्दिरस्तोत्र आदि ग्रन्थ साहित्यकी दृष्टि से उच्च
सात्पर्य उस साहित्यसे है जिसमें साम्प्रदायिकता बन्धनोंसे कोटिके हैं।
स्वतंत्र होकर ग्रन्थ रचना की जाती है । धार्मिक साहित्य जैन-साहित्यमें चम्पू कायोंकी भी प्रधानता रही।
वह है जिसमें इस लोकके अतिरिक्त परलोककी और भी यह जैन साहित्यकी एक प्रमुख विशेषता है । जेना- संकेत रहता है। चार्योंने इस क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया है। सोमदेवकृत
जैन साहित्यमें ऐसे अनेक ग्रन्थ है जिन्हें देखकर 'पस्तिलकचम्पू', 'हरिचन्द विरचित', 'जावधंरचम्पू'
सरलतापूर्वक कोई जैनाचार्योंकी कृति नहीं कह सकता है। 'अहहास प्रणोत' 'पुरुदेवचम्पू' आदि ग्रन्थ संस्कृत भाषा
सोमदेव-कृत 'नीतिवाक्यामृत' इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। सुन्दर ग्रन्थ हैं।
यह एक 'नीतिविषयक ग्रन्थ' है। इसमें एक अध्याय अर्थसैद्धान्तिक तथा नीतिविषयक अन्धा निम्नांकित शास्त्रका भी है। दूसरा ग्रन्थ है 'दोहापाहुब'। यह रहग्रन्थोंकी प्रधानता रही
म्यवादका एक सुन-र अपभ्रशभाषाका ग्रन्थ है। पटखण्डागम, कषायपाहुब, 'तत्वार्थमूत्र , 'सर्वार्थ- गणित ज्योतिपमें भी जैन साहित्य पर्याप्त मात्रामें सिद्धि', 'राजवार्तिक , 'गोम्मटसार' 'प्रवचनसार' उपलब्ध होता है। उसमें जैनाचार्योन अनेक अनोखे 'पंचास्तिकाय',यादि सैद्धान्तिक प्रन्य हैं, तथा अमितगांत नियमों द्वारा ज्योतिष विभागका सम्पन्न किया है। कृत 'सुभाषित रस्नदोह', पानन्दिप्राचार्य कृत 'पद्मनन्दि इसके लिये 'तिलोयपरगती', 'त्रिलोकमार', 'जंबूदीव पंचविशीतका' और महाराज अमोघवर्षकृत 'प्रश्नोत्तर पणत्ती', 'मूर्यपण्णत्ती', आदि उच्च को टके ग्रंथ रत्नमाला' आदि नीतिविषयक ग्रन्थ है।
है। महावीराचार्य द्वारा रचित 'गणिनमारसंग्रह' भी अपने पच प्रन्योंके साथ साथ जैन साहित्यमें गद्य ग्रन्थोंकी समयकी एक अपूर्व कृति है। यह एक अद्वितीय ग्रन्थ है। भो प्रधानता रही। बादामसिंहकृत 'गचितामण' और गणित विषय की १-२ उपयोगिता पर दृष्टि डालते हुए धनपालकत 'तिलकमंजरी' जैसे उच्च काटिके गय ग्रन्थ जैन गणत साहित्य पर प्रोफेसर दत्तमहाशयके संस्कृत भाषामें रचे गये।
विचार निम्नलिखित है। नाटकों में 'मदनपराजय', 'ज्ञानसूर्योदय' विक्रान्त- "What is more important for the कौरव, मैथली कल्याण. अंजनापवनंजय. नजोवलाय, general history of mathematics certain राघवाम्युदय, निर्भयन्यायोग, और हरिमर्दन मादि methods of findingsolutions of raitional इस्लेख योग्य है।
triangles, the credit for the discovery