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किरण ५]
हिन्दी-जैन-साहित्यकी विशेषता
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श्री महावीराचायने अपने 'गणितसार' संग्रहम बतलाया और कल्प इन दस भेदो द्वारा समस्त व्यवहारिक प्राव
श्यकताओंकी पूर्ति के लिये जैनाचार्योंने प्रयत्न किया है। 'लौकिकै दिकै श्चापि तथा सामायिकऽपि यः। जैन गणितमें नदीका विस्तार, पहाड़की ऊंचाई त्रिकाण, व्यापास्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपजायते ।। चौकोन क्षेत्रोंके परिमाण इत्यादि भनेक व्यवहारिक बातोंका कामतन्त्रर्थशास्त्रे च गांधर्वे नाटकऽपि वा।
गणित और त्रिकोणमितिके सिद्धान्तों द्वारा पता चलता सूपशास्त्र तथा वैद्य वास्तुविद्यादिवस्तुषु ।। है। इस प्रकार समस्त जैन ज्योतिष व्यवहारिकतासे परिसूयादिग्रहचारेषु ग्रहणे प्रहसंयुते । त्रिप्रश्ने चन्द्रवृत्तौ च मर्वत्रांगा कृतं हि नत (?)॥ जैनाचार्योने फलित ज्योतिष ग्रन्थकी भी रचना बहु भर्विलापैः किं त्रैलोक्ये सचराचरे । की। "रिष्टसमुच्यय', 'केवलज्ञानप्रश्नचुदाण' ज्योतिष यात्कञ्चिद्वस्तु तत्सर्व गणितेन विना नहि ॥ शास्त्रके अपूर्व ग्रन्थ है। जैन ज्योतिषकी व्यवहारिकता
इससे स्पष्ट है कि गणितका व्यवहारिक रूप प्रायः वणित करते हुये श्रीनेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्यजी कहते है समस्त भारतीय वाङमयमें व्याप्त है। एसा कोई भी कि 'इतिहास एवं विकासक्रमको दृष्टिस जैनज्योतिषकाशास्त्र नहीं जिसकी उपयोगिता गणित, राशि-गणित, जितना महत्व है उससे कहीं अधिक महत्व व्यवहारिक कलासर्वगणित, जाव-ताव गणित, वर्ग धन, वर्ग-वर्ग दृष्टिसे भी है। जैन ज्योतिषके रचियता प्राचार्योंने
भारतीय ज्योतिषको अनेक समस्याओंको बड़ी ही of which should very nightly go to Ma
सरलतासे सुलझाया ई२ । havir are attubuted by modern hustorians, by inistake to writers posterious
प्राकृत भाषा अपने सम्पूर्ण मधुमय सौंदर्यको निये to him".
हुये जैन-साहित्य में प्रयुक्त हुई। यदि कहा जाय कि प्राकृत
का मागधीरूप और उसके पश्चात् अपभ्रंश प्रारम्भसं ही Bullition Cal. Math. Sec. XXI P. 116.
जैनाचार्यों की भाषा रहो तो प्रत्युक्ति न होगी। २ इसी प्रकार डाक्टर हीरालाल कापडियाने भार
बैन कवियान केवल एक ही भाषाका श्राश्रय न लेकर तीय गणितशास्त्र पर विचार करते हुए 'गणितिलक' की
विभिन्न भाषाभांम भी माहिन्य रवनायकी। तामिल भाषाभूमिका में लिखा है
का 'कुरल-काव्य' और 'नालदियर' जैन साहित्यके दो "In this connection it may be added स्वपूण ग्रन्थ है । इनमें साम्प्रदायिकताका निकभी अंश that the Indians in general and the नहीं है। हम प्रथका देखकर कोई इमं जन कविकी कृति Jains in particular havo not been beh- नहीं कह सकता। तामिल भापाके उच्च कोटि के तान und any nation in paimng due attention महाकाव्य नाचार्यों द्वारा ही रचे गये-चिन्तामणि' tos subject. This is beine out by सिलप्याडकारम' और 'वलं तापति'। Ganita Sara Sangrah V.1.15) of Mahavi
कन्नड साहित्य भी जैनाचायों द्वारा रचित उपलब्ध racharya (650 A.D.) ol the Southern
हाता है। वीं शनाब्दी तक कन्नड़ भाषामे जितना School of Mathematics. There in the
साहित्य उपलब्ध होता है वह अधिकांश मात्रामे जैनाचार्यो points out the usr-fulness of Mathe
द्वारा रचित ही है 'पंप भारत' और 'शब्दमणिदर्पण' आदि matics or 'the Science of Cal-culation'
उच्च कोटिके ग्रंथ है। regarding the study of various subjects like music, logie,drama, medicine, • श्रीमहावीरस्मृति ग्रन्थ
पृ. २०२ architecture, cookery, prosody, Gram- २ श्रीमहावीरस्मृति ग्रन्थ पृ. १८६ mare poetics, economics, erotics etc.". ३ तामिन और कन्नड साहित्यकी विशेषता र
प्रमी अभिनन्दन ग्रंथ पृ.१७३. करते हुये श्री रमास्वामी प्रायंगर कहते है।