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राजस्थानके जैन शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध महत्वपूर्ण ग्रन्थ
लालेख प्राप्त हुलासे जैनियोंका सहा है। साहित्य प्रका
(ले० कस्तरचन्द कासलीवाल एम. ए. जयपुर) भारतके अन्य प्रान्तोंकी तरह राजस्था-की महत्ता करने एवं उसे शीघ्र प्रकाशित करनेका प्रयत्न भी किया जा लोकमें प्रसिद्ध है। वहाँ भारतीय पुरातत्वके साथ जैन- रहा है। साहित्य प्रकाशनकी महती भावश्यकताको समझते पुरातस्त्रकी कमी नहीं है। बदालीसे जैनियोंका सबसे हुये श्री दिगम्बर जैन प्रक्षेत्र के प्रबन्धकांने साहिल्यांद्वारप्राचीन लिनालेख प्राप्त हमा है जो वी. नि. संवत् ८४ का कुछ कार्य अपने हाथमें लिया और इसके अन्तर्गत का है टोंक स्टेटमें अभी हाल ही मे ६ जैन मूर्तियाँ प्राप्त प्राचीन साहित्यके प्रकाशनका कार्य भी प्रारम्भ किया, जो हुई है। जो संवत् १४७०की है अजमेर और जयपुरादिमें ४-५ वर्षोंसे चल रहा है। श्री भामेर शास्त्रभण्डार प्रचुर सामग्री प्राज भी उपलब्धही है राजपूतानेके कलापूर्ण एवं श्री महावीरजीके शास्त्र भण्डारकी प्रन्य-सूची प्रकामन्दिर भी प्रसिद्ध है। उनमें सांगा नेरके संगहोके मंदिरकी शित हो चुकी है तथा अब राजस्थानके प्रायः सभी प्रन्य कल्ला खास तौर से दर्शनीय है। इन सब उल्लेखोंसे राज- भयहारोंकी सूची प्रकाशित करवानेका कार्य चाल है। स्थानका गौरव जैन साहित्यमें उद्दीपित है। राजस्थानके प्रारम्भमे जयपुरके शास्त्रभराडारोंकी सूची प्रकाशनका दि० श्वेताम्बर शास्त्र भण्डार अक्षुण्ण ज्ञानकी निधि है। कार्य हाथमे लिया गया है। अभी तक जयपुरके तीन राजस्थानके उन जैन मन्दिरो एवं उपाश्रयों में स्थित शास्त्र
मन्दिरों में स्थित शास्त्रभण्डारीकी सूची तैयार हुई है तथा भण्डारोमें हजारोंकी तादाद में हस्तलिखित ग्रन्थ विद्यमान
उसे प्रकाशनार्थ प्रेस में भी दे दिया गया है। प्राशा है कि हैं। जैनांके इन ज्ञान भण्डारोमें जैन एवं जनेतर साहित्यके
वह सूची २-३ महिनाके बाद प्रकाशित हो जावेगी। सभी अंगों पर प्रन्यांका संग्रह मिलता है, क्योंकि जैनाचार्यों
___ ग्रन्थ सूची बनानेके अवसर पर मुझे कितने ही ऐसे में साम्प्रदायिकतासे दूर रह कर उत्तम साहित्यके संग्रह
प्रन्थ मिले हैं जिनके विषय में अन्यत्र कहीं भी उल्लेख करनेकी अभिरुचि थी और इसीके फलस्वरूप हमें भाज
तक नहीं मिला, तथा कितने ही ग्रन्थ लेम्बक प्रशस्तियों प्रायः सभी नगरों एवं ग्रामोम शास्त्रभण्डार एवं इनमें
पादिके कारण बहुत ही महत्वपूर्ण जान पड़े हैं इसलिये सभी विषयों पर शास्त्र मिलते हैं। द. जैन साहित्यकी
उन सभी उपलब्ध ग्रन्थाका परिचय देनेके लिये एक छोटी
सी लेग्बमाला प्रारम्भ की जारही है जिसमें उन सभी प्रचुर रचना राजस्थानमें हुई है। जिसके सम्बन्ध में स्वतंत्र
महत्वपूर्ण ग्रन्थोंका सक्षिप्त परिचय दिया जावेगा। भाशा लेख द्वारा परिचय करानेकी आवश्यकता है। राजस्थानके इन भण्डारीमें उपलब्ध ग्रन्याकी कोई ऐमी सूची या
ई पाठक इसम लाभ उठायेंगे । सबसे पहिले अपनश तालिका, जो अपने विषयमे पृण ही अभी तक प्रकाशित
साहित्यको ही लिया जाता है :हुई ही ऐसा देखने में नहीं पाया, जिसमें यह पता चल पउमचरिय ( रामायण ) टिप्पण सके कि अमुक अमुक स्थान पर किम किस विषयका महाकवि स्वयम्भू त्रिभुवनम्वयम्भू कृत पढमचरिय कितना और कैसा साहित्य उपलब्ध है ? जिससे पावश्य- (पचरित्र) अपभ्रंश भाषाकी उपलब्ध रचनाओं में कता होने पर उसका यथेष्ट उपयोग किया जा सके मेरे सबसे प्राचीन एवं उत्तम रचना है। यह एक महाकाव्य है अनुमानसे राजस्थानक केवल दिगम्बर जैन शास्त्रभंडाराम जिसे जैन रामायण कहा जाता है। अपभ्रंश भाषासे ही ५.६०हजारसे अधिक हस्तलिखित गन्य होगे। जिसके संस्कृतमे टिप्पण अथवा टीका इसी महाकाव्य पर बड़े विषयमे अभी तक कोई प्रकाश नहीं डाला गया है। मन्दिरके शास्त्रभण्डामें उपलब्ध हुई है। पउमचरिय पर श्वेताम्बरीय ज्ञान भण्डारीको सूचियां बन गई है राज- मिलने वाले इस टिप्पण ग्रन्थका अभी किमी भी विद्वान्ने स्थानीय पत्रिका , उनमेंसे अधिकांशका परिचय भी निकल शायद ही कहीं उन्लेख किया हो, इसलिए यह टीका चुका है राजस्थानके इन भएड रामे स्थित ग्रन्थों की सूची, सर्वथा एक नवीन खोज है। बढ़ी आवश्यक है जिसकी कमीका बहुत वर्षोंसे अनुभव पउमचरिय पर यह टिप्पण किस विद्वान अथवा किया जा रहा है। दिगम्बर विद्वानों द्वारा सूची तैयार प्राचार्यने लिखा है इसके सम्बन्धमें इस टिप्पणमें कहीं