________________
१२४]
अनेकान्त
[किरण ४
जैनधर्ममें सम्प्रदर्शनका माहात्म्य है, सम्यग्दर्शनका बर्थ- सम्यग्दर्शनके अद्धान गुणका फल है। प्राचार्योंने सबसे भारम लब्धि है, पारमाके स्वरूपका ठीक ठीक बोध हो पहले यही कहा हैजाना प्रारमलब्धि कहलाती है। प्रारमजन्धिके सामने सब "सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:" सम्यसुख भूल हैं। सम्यग्दर्शनसे प्रारमाका महानगुण जागृत ग्दर्शन, सम्यज्ञान और सम्यक्चारित्र मोपका मार्ग है। होता है, विवेकशक्ति जागृत होती है आज कल लोग हर आचार्यकी करुणा बुद्धिको तो देखो-मोक्ष तब हो जबकि एक बातमें क्यों? क्यों करने लगते हैं, इसका अभिप्राय पहले बन्ध हो यहाँ पहले बन्धका मार्ग बतलाना था फिर यही है कि उनमें श्रद्धा नहीं है। श्रद्धाके न होनेसे हर मोक्षका परन्तु उन्होंने मोघमार्गका पहले वर्णन इसलिये एक बात में कुतर्क उठा करते हैं।
किया है कि ये प्राणी अनादिकालसे बन्धजनित दुःखका एक भादमीको क्योंका रोग हो गया, उससे बेचारा अनुभव करते करते घबड़ा गये है, अतः पहले इन्हें मोक्षबदा परेशान हुमा, पूछने पर सलाह दी कि तू इसे किसी- का मार्ग बतलाना चाहिए । जैसे कोई कारागारमें पड़कर को बेच डाल, भले ही सौ पचास लग जाय । बीमार दुखी होता है वह यह नहीं जानना चाहता कि मैं काराभादमी इस विचारमें पड़ा कि यह रोग किसे बेचा जाय, गारमें क्यों पड़ा? वह तो यह जानना चाहता है कि मैं किसीने सलाह दी स्कूलके लड़के बड़े चालाक होते हैं। इस कारागार से छुटू कैसे । यही सोचकर प्राचार्यने पहले १०) रुपये देकर किसी लड़केको बेच दे. उसने ऐसा ही मोक्षका मागं बतलाया है । सम्यग्दर्शनके रहनेसे विवेक किया-एक बड़केने १०) लेकर उसका वह रोग ले लिया कि सदा जागृत रहती है वह विपत्ति में पड़ने पर भी सब लड़काने मिलकर ५०, की मिठाई खाई, जब लबका कभी अन्यायको न्याय नहीं समझता । रामचन्द्रजी सीतामास्टरके सामने गया और मास्टरने पूछा कि कलका को छुड़ाने के लिए लंका गये थे, खंकाके चारों भोर उनका सबक दिखलाओ, लड़का बोला क्यों? मास्टरने कान पकड़ कटक पढ़ा था, हनुमान आदिने रामचन्द्रजीको खबर दी कर लड़केको बाहर निकाल दिया । लड़का समझा कि कि रावण जिन मंदिरमें बहुरूपिणी विद्या सिद्ध कर रहा क्योंका रोग तो बड़ा खराब है-वह उसको वापिस कर है यदि उसे यह विद्या सिद्ध हो गई तो फिर वह अजेय पाया। अबकी बार उसने सोचा चलो अस्पतालके किसी जागाशा दीजिये जिससे कि लोग इसकी मरीजको बेच दिया जाय तो अच्छा है, ये लोग तो पलंग
विद्यासि में विघ्न करें, रामचन्द्रजीने कहा कि हम क्षत्रिय पर पड़े पड़े भानन्द करते ही हैं । ऐसा ही किया, एक
है कोई धर्म करे और हम उसमें विघ्न डालें यह हमारा मरीजको बेच पाया दूसरे दिन डाक्टर पाये पूछा तुम्हारा
कर्तव्य नहीं है। सीता फिर दुर्लभ हो जायगी."हनुमानक्या हाल है? मरीजने कहा क्या ? शक्टरने उसे अस्प
ने कहा । रामचन्द्रजीने जोरदार शब्दोंमें उत्तर दिया, हो तानसे बाहर कर दिया। उसने भी समझा दरअसल में
जाय एक सौता नहीं दशों सीताएँ दुर्लभ हो जावें पर मैं यह रोग तो बड़ा खराब है, वह भी वापस कर पाया, अबकी बार उसने सोचा अदालती आदमी बड़े रंच होते
अन्याय करनेको श्राज्ञा नहीं दे सकता। हैं उन्हींको बेचा जाय, निदान उसने एक भादमीको बेच रामचन्द्रजीमे इतना विवेक था उसका कारण क्या दिया, वह मजिस्ट्रेट के साममे गया मजिस्ट्रेटने कहा तुम्हारी था ? कारण था उनका विशुद्ध पायक सम्य. नालिशका ठीक ठीक मतलब क्या है, पादमीने कहा क्यों? ग्दर्शन । सीताको तीर्थयात्राके बहाने कृतांतवक सेनापति मजिस्ट्रेटने मुकदमा खारिजकर कहा कि घरकी राह लो, जंगल में छोड़ने गया-उसका हृदय वैसा करना चाहता था विचारकर देखा जाय तो इन हर एक बातोंमें कुतर्कसे क्या? वह स्वामीकी परतन्त्रतासे गया था । उस वक्त काम नहीं चलता। युक्तिके बलसे सभी बातोंका निर्णय कृतांतवकको अपनी पराधीनता काक्री खली थी। जब वह नहीं किया जा सकता। यदि पापको धर्ममें श्रद्धा न होती निर्दोष सीताको जंगलमे को अपने अपराधकी क्षमा मांगतो यहां हजारको संख्यामें क्यों आते ! यह कांतिलाल कर वापिस आने लगता है तब सीता उससे कहती हैजी जो एक माहका उपवास किये हुये हैं क्यों करते? सेनापति ! मेरा एक संदेश उनसे कह देना, वह यह कि भापका यहाँ माना और इनका उपवास करना यह सब जिस प्रकार लोकापवादके भयसे मापने मुझे त्यागा इस