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________________ - किरण ३] हमारी वीर्थयात्रा संस्मरण यहाँ अनेक प्रन्थ लिखे गए है, शास्त्रमण्बार भी मण्डपमें लगे हुए शिलालेखसे सिर्फ इतना ही ध्वनित होता अच्छा है। संवत् १७० और १७०२ में भहारक साल- है कि इस मन्दिरका संवत् ११३में वैशाख सुदिपाव कीर्तिके कनिष्ट प्राता ब्रह्मजिनदासके हरिवंशपुराणकी तृतीया बुधवारके दिन खडवावा नगरमें बागद प्रान्त में प्रतिलिपि की गई, तथा सं० १७१८ में त्रिलोक दर्पण' स्थित काष्ठासंघके भट्टारक धर्मकीर्तिगुरुके उपदेशसे शाह नामका ग्रन्थ लिखा गया है। ज्ञान भण्डारमें अनेक ग्रन्थ बीजाके पुत्र हरदातकी पत्नी हारू और उसके पुत्रों-पुजा इससे भी पूर्वके लिखे हुये हैं, परन्तु अवकाशाभावसे वा और कोता द्वारा-आदिनाथके इस मन्दिरका जीखोदार उनका अवलोकन नहीं किया जा सका। मन्दिरोंके दर्शन कराया गया था। प्रस्तुत धर्मकीति काष्ठासंघ और लाल करने के बाद हम सब लोग उदयपुरके राजमहल देखने बागद संघके भट्टारक त्रिभुवनकीर्तिके शिष्य और म. गए और महागणा भूपालसिंहजीमे दीवान वासभाममें पद्मसेनके प्रशिघ्य थे भ.धर्मकीर्तिके शिष्य मलयकीर्तिने मिले । महाराणाने बाहुवलीको परोक्ष नमस्कार किया। संवत् १४६३में भ०सकलकीनिके मूलाचारप्रदीपकी प्रशस्ति उदयसागर भी देखा, यहाँ एक जैन विद्यालय है, . लिखी थी। इस मन्दिरमं विराजमान भगवान मादिमायकी चांदमलजी उसके प्राण हैं . उनके वहाँ न होने से मिलना यह सातिशव मूर्ति बदौदा बटपाक के दिगम्बर जैनमन्दिर नहीं हो सका। विद्यालयके प्रधानाध्यापकजीने २ छात्र से लाकर विराजमान की गई है। मूर्ति कलापूर्ण और काले दिये जिससे हम लोगोंको मन्दिरोके दर्शन करने में सुविधा पाषाणकी है वह अपनी मधुण्य शान्तिके द्वारा जगतके रही, इसके लिए हम उनके प्राभारी हैं। उदयपुरमे हम जीवोंकी अशान्तिका दूर करनेमें समर्थ है। मूर्ति मनोग्य लोग ३॥ बजेके करीब ४० मील चलकर ६॥ बजे केश और स्थापत्यकलाको दृष्टिसे भी महत्वपूर्ण है। ऐसी • रियाजी पहुंचे। मार्ग में भीलोंकी चौकियों पड़ी, उन्हें कलापूर्ण मूर्तियाँ कम ही पाई जाती है। खेद इस बातका है कि जैन दर्शनार्थी. उनके दर्शन करने के लिये चातककी एक पाना सवारीके हिसाबसे टैक्स दिया गया। यह भील अपने उस एरियामें यात्रियोंके जानमालके रक्षक होते भांति तरसता रहता है पर उसे समय पर मूर्तिका दर्शन हैं। यदि कोई दुर्घटना हो जाय तो उसका सब भार उन्हीं नहीं मिल पाता। केवल सुबह 9 बजे से 5 बजे तक दिगम्बर जैनोंको १ घंटेके लिये दर्शन पूजनकी सुविधा लोगों पर रहता है । साधु त्यागियोंसे वे कोई टैक्स नहीं मिलती है। शेष समयमें वह मूर्ति श्वेताम्बर तथा सारे लेते । यह लोग बड़े ईमानदार जान पड़ते थे। केशरिया अतिशयक्षेत्रके दर्शनीकी बहुत दिनों से दिन व रातमें हिन्दुधर्मकी बनाकर पूजी जाती है और अभिलाषा थी क्योंकि इस अतिराय क्षेत्रको प्रसिद्धि एवं ा. W१ ........ |येन स्वयं बोध मयेन] महत्ता दि. जैन महावीर अतिशय क्षेत्रके समान ही लोक २ लोका आश्वासिता केचन वित्त कार्ये [प्रबोधिता कैच-] में विश्रुत है । यह भगवान श्रादिनाथका मन्दिर है, इस नमोक्षमा प्रे (गें तमादिनाथं प्रणामामि नि [त्यम श्री विक्रमन्दिरमें केशर अधिक चढ़ाई जाती है यहां तक कि बच्चाके दिस्य संवत् 1४३१ वर्षे वैशाख सुदि प्राय [वृतिया] तोलकी केशर चढ़ाने और बोलकबूल करनेका रिवाज प्रच तिथौ बुध दिना गुरुवयोहा वापी कूप प्र" .लित है इसीसे इसका नाम केशरियाजी या केशरियानाथ ६ सरि सरोवरालंकृति खडवाला पत्तने । राजश्री . ... प्रसिदिको प्राप्त हुआ है। यह मन्दिर मूलत: दिगम्बर विजयराज्य पालयंति सति उदयराज सेल पा..... सम्प्रदायका है, कब बना यह अभी अज्ञात है, परन्तु खेला श्री मस्जिनकाय धन तत्पर पंचूली बागडप्रतिपात्राश्री बारहखड़ी हो भक्तिमय, ज्ञानरूप अविकार ॥. [का) ष्ठा संघे भहारक श्री धर्मकोति गुरोपदेशेनावा भाषा छन्दनि मांहि जो, भयर मात्रा लेय । १. ये साध रहा बीजासुत हरदात भार्या हारूतदपस्योः प्रभुके नाम बम्बानिये, समुझे बहुत सुनेय ॥ "पुजा कोताभ्यां श्री [ना] मे (मे) श्वर पासादस्य यह विचारकर सब जना, उर घर प्रभुकी भक्ति । जीणोद्धार [कृत] १२ श्री नाभिराज बरवसकता वतरि कल्पद्र.... बोले दौलतरामसी, करि सनेह रस व्यक्ति ॥६ १३ महासंवनेसुः यस्भिन सुरगणाः कि बारहखड़ी करिये भया, भक्ति प्ररूप अनूप । ५. ...."भोज स यूगादि जिनश्वरीवः ॥१॥...... अध्यातमरसकी भरी, चर्चारूप सुरूप ॥१. (इस लेखका यह पद्य अशुद्ध एवं स्खलित है)
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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