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'अनेकान्त
[ किरण १
एतेऽनंतगुणाद्गुणाः स्फुटमपोद्धृत्याष्ट दिष्टाभवत्तस्वाद्भावयितु ं सतां व्यवहृति प्राधान्यतस्तात्विकैः । एतद्भावनया निरंतर गलद्वीकल्पनालस्य मेस्तादत्यन्तलय: सनातन चिदानंदात्मनि स्वात्मनि । ॥ उत्कीर्णामिव वर्तितामिव हृदि न्यस्तामिवालोकयन्न तां सिद्धगुणस्तुतिं पठति यः शश्वच्छिवाशाधरः । रूपातीत-समाधि-साधित-वपुःपातः पतद्दुष्कृत - व्रातः सोऽभ्युदयोपभुक्तसुकृतः सिद्धयेत् तृतीयं भवे ||१०|| इत्याशाधरकृत-सिद्धगुणस्तोत्र ं समाप्तम् ।
नोट :- इस गम्भीर स्तोत्रकी एक सुन्दर संस्कृतटीका भी जयपुरके शास्त्र - भगडारसे उपलब्ध हुई हैं, जो बादीन्द्र विशालकीर्तिके प्रियसूनु (शिष्य) यति विद्यानन्दकी रचना है। टीका प्रति फालगुन सुदि ४ संवत् १६२० की लिखी हुई है। इस टीकाको फिर किसी समय प्रकाशित किया जायगा ।
सत्साहित्य के प्रचारार्थ सुन्दर उपहारों की योजना
जो सज्जन, चाहे वे अनेकान्तके ग्राहक हों या न हों. अनेकान्तके तीन ग्राहक बनाकर उनका वार्षिक चन्दा १५) रुपये मनीआर्डर आदिके द्वारा भिजवायंगे उन्हें स्तुतिविद्या, अनित्यभावना और अनेकान्त-रस-लहरी नामकी तीन पुस्तकें उपहार में दी जायेंगी। जो सज्जन दो ग्राहक बनाकर उनका चन्दा १०) रुपये भिजवायेंगे उन्हें श्रीपुरपाश्र्श्वनाथस्तोत्र, अनित्यभावना और अनेकान्त-रस-लहरी नामकी ये तीन पुस्तकें उपहार में दी जायेंगी और जो सज्जन केवल एक ही ग्राहक बनाकर ५) रुपया मनीआर्डर से भिजवायेंगे उन्हें अनित्य-भावना और अनेकान्तर सलहरी ये दो पुस्तकें उपहार में दी जायेंगी । पुस्तकोंका पोस्टेल खर्च किसीको भी नहीं देना पड़ेगा। ये सब पुस्तकें कितनी उपयोगी हैं उन्हें नीचे लिम्बे संक्षिप्त परिचयसे जाना जा सकता है।
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(१) स्तुतिविद्या -- स्वामी समन्तभद्रकी अनोखी कृति, पापोंका जीतने की कला, सटीक, साहित्याचार्य ५० पन्नालालजी के हिन्दी अनुवाद सहित और श्रीजुगलकिशोर मुख्तारकी महत्वकां प्रस्तावना से अलंकृत, जिसमें यह खष्ट किया गया है कि स्तुति आदिके द्वारा पापको कैसे जीता जाता है । सारा मूल ग्रन्थ चित्रकारों से अलंकृत है। सुन्दर जिल्दसहित, पृष्ठसंख्या २०२, मूल्य डेढ़ रुपया ।. (२) श्री पुरपार्श्वनाथ स्तोत्र - यह आचार्य विद्यानन्द - रचित महत्वका तत्वज्ञानपूर्ण स्तोत्र हिन्दी अनुवादादि सहित है । मूल्य बारह आने ।
(३) अनित्यभावना आचार्य पद्मनन्दीकी महत्वकी रचना, श्रीजुगलकिशोर मुख्तारकं हिन्दी पद्यानुवाद और भावार्थ सहित, जिसे पढ़कर कैसा भी शोक सन्तप्त हृदय क्यों न हो शान्ति प्राप्त करता है । पृष्ठसंख्या ४८, मूल्य चार आने ।
(४) अनेकान्त रस - लहरी - अनेकान्त-जैसे गूढ़ - गम्भीर विषयको अतीव सरलतास समझने समझाने की कुंजी, मुरूवार श्रीजुगलकिशोर - लिखित, बालगोपाल सभीके पढ़ने योग्य । पृष्ठ संख्या ४८; मूल्य चार आने ।
विशेष सुविधा- इनमें से कोई पुस्तकें यदि किसीके पास पहले से मौजूद हों तो वह उनके स्थान पर उतने मूल्य की दूसरा पुस्तकें ले सकता है, जो वोर सेवामन्दिर से प्रकाशित हों । वीरसेवामन्दिर के प्रकाशनोंकी सूची अन्यत्र दी हुई है। इस तरह अनेकान्तके अधिक प्राइक बनाकर बड़े बड़े ग्रन्थोंको भी उपहार में प्राप्त किया जा सकता है।
मैनेजर वीर सेवामन्दिर १ दरियागंज, देहली.