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किरण १
खण्डगिरि-उदयगिरि-परिचय
हाथीगुफा
यद्यपि उक्त अभिलेख उनके शासनके तेहरवें वर्ष
तककी घटनाओंका उल्लेख करके ही समाप्त हो जाता है हाथीगुफा एक अकृत्रिम वृहद् गुफा है, जिसमें चेदिवंशीय महाराज खारवेलका प्रसिद्ध शिलालेख है । इस
__ तो भी स्वर्गपुरी वाले लेखसे मालूम होता है कि महाराज लेखमें महाराजके राज-जीवन-सम्बन्धी वर्ष प्रतिवर्षकी
खारवेल १०, २० वर्ष पीछे तक जीवित रहे हैं, क्योंकि इस मुख्य-मुख्य घटनायें उल्लिखित है। इसका आरम्भ
लेखमें उनकी रानीने अपनेको शासनारूढ महाराज खारअरहंतों और सिद्धोंको जनपद्धतिके अनुरूप नमस्कार करते
वेलकी अग्रमहिषी लिखा है। हाथी-गुफा-वाले शिलालेख
में खारवेलको 'अधिपति' कहा गया है, जबकि स्वर्गपुरी हुए होता है। इस शिलालेखका प्रसंगोचित अंश नीचे नोट किया जाता है:
वाले लेखमें उनको 'चक्रवर्ती लिखा गया है। १. शासनकालके प्रथम वर्षमें खारवेलने तूफानसे इससे यह प्रगट होता है कि ईसासे दो या तीन शताब्दी क्षतिग्रस्त राजधानीके द्वारो, प्राकारों, जलाशयों और पूर्व खंडगिरि-उदयगिरिकी गुफाओं तथा उनके निकटवर्ती राजकीय अट्टालिकाओकी मरम्मत करवाई।
प्रदेशोंमें जीवन स्पंदित हो रहा था। खारवेलका यह लेख, २. शासनके पांचवे वर्ष में उन्होंने तनसुलिय-बाट जो कि धौलीसे कुछ ही मील दूरी पर है, सम्राट अशोकके (सड़क) से प्राचीन नहरको राजधानी तक बढ़ाया।
धौलीवाले लेखके प्रभावको मिटानेके अभिप्रायसे वहां ३. नवमें वर्षमें ३८ लाख चांदीको मुद्रा व्यय करके।
उत्कीर्ण किया गया था। धौली शिलालेख जिसको कलिंग 'महाविजय' नामक प्रासाद बनवाया । उसी वर्ष उन्होंने
विजेता अशोकने लिखवाया था, कलिंगवासियोंको पुन:याचकोंको 'किमिच्छक' दान देकर 'कल्पद्रुम' पूजा की। पुनः उन
पुनः उनकी उस पराजयका स्मरण कराता था जिसमें, यह पूजा जैनशास्त्रोंके अनुसार केवल चक्रवर्ती सम्राट
अशोकके अनुसार, १००,००० कलिंग-वीर निहत हुए, ही कर सकता है ।
१०५००० वीर बन्दी बनाय गये, और इससे भी अधिक ४. बारहवें वर्षमें मगधको विजय करके वे "कलिंग
मनुष्य विध्वंसक युद्ध-जनित रोग, निराहार तथा लूटपाट
से विनष्ट हुए थे। अशोकके पश्चाद्वर्ती १०० वर्षके भीतरजिन" प्रतिमाको प्राप्त कर लाये, जिसे मगधके नन्द-वंश
का ही खारवेलका यह शिलालेख कलिंग पर मागधी प्रभुत्वका कोई राजा पाटलीपुत्र ले गया था।
की समाप्तिका स्पष्ट द्योतक है। यदि अशोकके शासनोंकी ५. राज्यके तेरहवें वर्ष में राज्य-विस्तारसे संतुष्ट
संख्या शासनके बाद शासन (राजाज्ञा) के रूपसे हुई है, होकर उन्होंने अपना खास ध्यान धर्मकी ओर लगाया,
तो खारवेलके लेखमें संख्या अपने राज्यकालके वर्षके बाद श्रावकोचित व्रत धारण किये और जीव तथा अजीवके
वर्षके रूपमें हुई है । इस लेखमें खारवेलकी उस दिग्विजयभेद-विज्ञानका अनुभव करने लगे।
की घोषणा है जिसमें उन्होंने उस "कलिंग-जिन"की प्रतिमा६. ७५ लाख रुपये व्यय करके अपनी राणीके लिये
को जिसे पहले एक नन्द राजा मगध ले गया था, पुनः प्राप्त कुमारी पर्वतपर आश्रयस्थान निर्माण करवाया, जिसके
किया था। हाथी-गुफाका लेख और अशोकका धौलीवाला लिये पत्थर बहुत दूरसे लाये गये थे।
लेख दोनों ई. पू. ३०० और ई. पू. १०० वर्षके मध्यवर्ती ७. महाराजके विरुदों (titles) में क्षेमराज, भारत-इतिहासके एक विलुप्त पदकी पुनः प्राप्तिमें हमारे वृद्धिराज, भिक्षुराज, धर्मराज, राजर्षि-वंश-कुल-विनिःसृत, सहायक होते है । संक्षेपमें वह पुननिर्मित इतिहास यह होगा महाराज आदि पद व्यवहृत हुए हैं। महाराज खारवेल केवल । एक विस्तृत साम्राज्यके ही निर्माता नहीं थे, बल्कि राजप्रासादों, तथा दुर्गा आदिके भी निर्माता थे, और थे वास्तव
१. मगध और कलिंग दो प्रतिद्वन्दी राज्य थे। में राजा शब्दको सार्थक करनेवाले अर्थात् अपनी प्रजाको २. अशोककी विजयसे पूर्व कलिंगमें जैनमत राजअनुरंजित रखनेवाले ।
धर्म था।