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अनेकान्त
[वर्ष ११ स्थानको तपोभूमि बनाया था। ई.पू. द्वितीय शताब्दी में वह शायद इन्ही महामेघवाहन उपाधि वाले खारवेलवंशियोंहोने वाले कलिंग चक्रवर्ती महाराज खारवेलने भी अपना का कथन है। शिलालेखमें चेदिवंशको 'राजषिकुलविनिःसृत' अन्तिम-साधु-जीवन यहां ही व्यतीत किया था। आर्यसंघ, कहा है। रामपुर जिलेके आरंग स्थानमें एक प्राचीन वंशग्रहकुल, देशीगणके आचार्य कुलचन्द्रके शिष्य भट्टारक के राज्य का पता चलता है जिसे 'राजर्षिकुल' कहते थे। यदि शुभचन्द्रने भी यहां ११वीं शताब्दी में तपस्या की थी (देखो, इसका सम्बन्ध खारवेलसे रहा हो तो समझना चाहिये खंडगिरिकी नवमुनिगुफाके दो लेख और ललाटेन्दु गुफा- कि खारबेलका वंश सैकड़ों वर्ष चला। अतः मध्यका एक लेख)
प्रदेशमें विशेष अनुसन्धानकी आश्यकता है।
सारे भारतवर्षमे उत्तरापथसे लेकर पांडय देश तक पुरातत्वकी दृष्टिसे यह स्थान केवल जैनोके लिये
महाराज खारवेलकी विजय-वैजयन्ती उड़ चुकी है । ही नहीं किन्तु समस्त भारतवासियोंके लिये बहुत ही महत्व
खारवेल सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्यसे कम नहीं थे तो भी हमारे पूर्ण है । क्योकि ऐतिहासिक घटनाओं और जीवनचरित
साहित्यमें उनका नाम निशान नही मिलता है। यह कुछ को अंकित करनेवाला यहां सबसे पहला शिलालेख है, जो
कम आश्चर्य अथवा रहस्यकी बात नही है। अनुसन्धानहाथीगुफा-शिलालेखके नामसे प्रसिद्ध है । कलिंग-चक्रवर्ती
प्रिय विद्वानोको इस ओर सविशेष रूपसे ध्यान देनेकी महाराज खारवेलने ई पू. द्वितीय शताब्दीमें अपने शासनकाल
जरूरत है। की १३ वर्षकी घटनाओंको इसमें लिपिबद्ध किया था।
अब उदयगिरिके क्रमसे दोनों पहाड़ियों, और उनके हाथीगुफा जैसी अकृत्रिम और भद्दी गुफामें ऐसे महत्वपूर्ण
अन्तर्गत गुफाओं आदिका परिचय नीचे दिया जाता है। इतने बड़े और अर्थ-प्रतिपादक शिलालेखको स्थान देना विशेष अभिप्रायकी सूचना करता है। मेरे अनुमानसे
उदयगिरि उपर्युक्त श्री जितारिमुनिने इसी हाथी गुफामें तपश्चरण
चेदि-वंशको राजधानी शिशुपालगढ़से लगभग ६ मील करते हुए निर्वाण-प्राप्त किया था और उसे तीर्थ बनाया था, और भुवनेश्वर से ५ मील उत्तर-पश्चिममें स्थित खंडगिरिजिससे वहां हजारों यात्री वन्दनाके लिये और हजारों मुनि उदयगिरि नामकी पहाड़ियां है, जो जैनोंके लिये अति पवित्र तपश्चरणके लिये सैकड़ों वर्षोंसे आते रहे हैं। अतः विशेष है। इन पहाड़ियोमें जैनश्रमणोंके तपश्चरणके लिये ६५ या प्रचारकी दृष्टिसे और शिलालेखकी अपनी वैशिष्टताके इससे भी अधिक गुफाएं है । उदयगिरि पर, जिसका प्राचीन कारण उसे इस महत्वपूर्ण स्थानमें अंकित किया गया है। नाम कुमारीगिरि था, कुछ. गुफाएं गिरिगह्वर तथा शैलअन्यथा महाराज खारवेलने अपनी अग्रमहिषीके लिये उसी शरणालय ई. पू. (B.C. ) द्वितीय और प्रथम शताब्दीके गुफाके निकट जो अति सुन्दर समाश्रयरूप गुफा बनवाई है, और अन्य पीछेके है। थी उसीमें इस शिलालेखको भी स्थान दे देते। दो एक बड़ी गुफायें तो भगवान महावीर स्वामीके हाथीगुफा लेखकी १४वीं पंक्तिमें 'अहंतनिषिद्या' शब्दों- समयसे ही अरहंतोके संर्सगसे अतिपावन हो चुकी थी। का उल्लेख मेरी उपरोक्त बातोंको पुष्ट करता है। हाथी इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण हाथी गुफा है, जिसमें ई.पू. गुफा तीर्थ-स्थानके कारण ही अधिक मान्य और प्रतिष्ठित द्वितीय शताब्दीके चेदि-बंशज महाराज खारवेलका शिलालेख हो गई थी और महाराज खारवेलने उसका अकृत्रिम भहा है, तथा राणी गुफा (ई.पू. दूसरी शताब्दी), गणेश गुफा रूप अक्षुण्ण रखते हुए भी उसे इतना महत्व दिया था। (ई.पू. पहली शताब्दी), स्वर्गपुरी और मचपुरी नामकी
गुफायें (ई. पू. दूसरी-पहली शताब्दी) भी महत्वपूर्ण है। महाराज खारवेल चेदिवंशके थे। चेदिवंशका उल्लेख राणी और गणेश गुफाओंमें जैन आख्यानों पौराणिक वेद में भी है । ये लोग बरार (विदर्भ) में रहते थे। वहींसे कथाओं, मूत्तिलेखनको स्पष्ट एवं व्यक्त करनेवाले अनेक छत्तीसगढ़ महाकोशल होते हुए कलिंग पहुंच गये थे। पुराणों- उत्कीर्ण चित्र पाये जाते हैं, यहां तक कि कलिंगनपतियोंके में जहां कोषलके 'मेष' उपाधिधारी राजाबोंका वर्णन है असली शिलाचित्र भी मिलते हैं।