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खण्डगिरि-उदयगिरि-परिचय
(श्री बाबू छोटेलाल जैन)
वर्तमानमें प्रचलित 'उड़ीसा' शब्द 'ओड्रदेश' से उत्पन्न जैन अग्रवाल) दिल्लीवाले और श्री भट्टाचार्यजी चित्र हुआ है। कलिंग, उत्कल, ओड़ या ओड्ड नाम का विस्तृत कलाकार । पूर्व-व्यवस्थाके अनुसार वहा श्री टी. एन. राज्य इसमें समाविष्ट है। एक समय दक्षिण कोशल रामचन्द्रन् (अध्यक्ष बंगाल, आसाम, और उड़ीसा पुरातत्त्वनामका समस्त राज्य इसके अन्तर्गत था । विभाग) भी मिल गये । यों तो इस क्षेत्र पर मै बीसो बार कलिंग देश भारतवर्षके प्राचीनतम राज्य-विभागोंसे हो आया ह और काफी अनुसन्धान भी कर चुका हूं, पर इस एक है जो अपने ही नृपतियोके शासनाधिकारमें रहा है। यात्रामें विद्वानोके साथ होनेसे कई बातें विशेषतासे ज्ञात वास्तवमें इस राज्यका वृत्त उत्तर-भारतके इतिहासका हुई और श्री रामचन्द्रन और मैने जो कुछ देखकर और ही अश है । अशोकके १३वें शिलालेखसे ज्ञात होता है कि मनन कर नोट लिखे थे उनके साथ अपने पुराने नोटोंको ई. पू. तृतीय शताब्दीमें यह देश स्वतन्त्र और शक्तिमान था मिलाकर यह "खंडगिरि-उदयगिरि-परिचय" अभी १५ नवऔर उसने अशोक जैसे प्रबल सम्राट्का साहस-पूर्वक म्बर १९५१ को अंग्रेजीमें एक छोटी पुस्तिकाके रूपमें प्रतिरोध किया था।
राष्ट्रपति श्री राजेन्द्रप्रसादजीके लिये, जब वे खंडगिरि प्रारम्भसे ही उड़ीसा जैनधर्मका केन्द्र रहा है। बौद्ध- पधारे थे, तैयार किया था। धर्मके प्रचारार्थ जिन देशोंमें अशोकने धर्म-प्रचारकोंको खंडगिरि-उदयगिरिका प्राचीन नाम 'कुमारीगिरि भेजा था उन देशोंकी तालिकामें कलिंगका नाम नही है। और 'कुमारगिरि है। यहांकी गुफाओंमें बनवासी जैन इससे प्रमाणित होता है कि कलिंगकी प्रजाका विश्वास मुनि तपस्या करते थे। यहा अकृत्रिम और कृत्रिम दोनों
प्रकारकी गुफाए है। मन्दिरोंकी गुफाओंको छोड़कर सब जैनधर्ममें दृढ़ था। हुयेनस्यांग नामक बौद्ध-चीनी परिव्राजक
गुफाओका फर्श ढाल बनाया गया है ताकि उन पर शयन ने, जिसने सन् ६३९-६४५ में भारत-भ्रमण किया था, करनेवालोंको तकियेकी आवश्यकता न रहे। यहां अनेक लिखा है कि 'कलिंगमें जैनधर्मकी प्रधानता है। खडगिरि तपस्वियोका परम्परागत वास यह सिद्ध करता है कि यह पर उद्योतकेशरी-वाले ११वी शताब्दीके शिलालेखसे यह
स्थान प्राचीन तीर्थभूमि है। श्रीहरिषेणाचार्यके बृहत
कथाकोश (दशवीं शताब्दी) में यममुनिकी कथासे इसकी ज्ञात होता है कि वहां जैनों का अस्तित्व एवं प्रभाव उस वक्त पुष्टि भले प्रकार हो जाती है। इस कथाकोशमें पर्वतका भी काफी था।
नाम 'कुमारगिरि' लिखा है और इसके निकट धर्मपुर नामका उड़ीसासे जैनधर्म कब विलीन हुआ और उसका क्या एक प्रसिद्ध नगर बतलाया है :कारण था यह एक गहरे अनुसन्धानका विषय है, जिस पर अथोड्-विषये चापि पुरं धर्मपुरं....। फिर कुछ लिखा जायेगा ।
धर्मादिनगरासन्ने कुमारगिरि-मस्तके ॥ उड़ीसाके पुरी जिलेमें भुवनेश्वरसे उत्तर-पश्चिम इस यममुनिकी कथाका उल्लेख प्रायः दो हजार वर्षसे भी ५ मील पर खंडगिरि और उदयगिरि दो छोटे-छोटे पर्वत अधिक प्राचीन 'भगवती आराधना' ग्रन्थमें भी हुबा है। हैं । सन् १९५० के दिसम्बरमें पूज्य पंडित जुगलकिशोरजी अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीरस्वामीके फूफा कलिंगामुख्तारके साथ में खंडगिरि गया था, अन्य साथियोंमें थे- धिपति महाराज जितशत्रु या जितारिका निर्वाण मेरे अनुमान प्रोफेसर डा० ए० एन० उपाध्याय कोल्हापुर निवासी, से खंडगिरिमें ही हुआ था। और उन्हींके सम्बन्धसे यह श्रीमोतीराम जैन फोटोग्राफर (सुपुत्र बाबू पन्नालालजी सिद्धक्षेत्र हो जानेके कारण सहस्रों निम्रन्य मुनियोंने इस