________________
-
अनेकान्त
[वर्ष ११ ३कलिंगने मगधके बढ़ते हुए साम्राज्यके प्रति एक चित्र जो यद्यपि नष्ट-प्राय हो गया है तो भी उसके विद्रोह किया, और नन्दोंने कलिंगपर विजय प्राप्त की, अवशिष्टांशमें "जिन" भगवानकी पूजा-अर्चना करता और उनमेंसे कोई "कलिंग-जिन" प्रतिमाको पाटलीपुत्र हुआ एक राजपरिवार, एक हाथी और ज्योतिष्कादि देव ले गया
दृष्टिगत होते है । इस दृश्यका सम्बन्ध सब सम्भावनाओंके ४. कलिंग पीछे इतना स्वतंत्र हो गया कि महाराज साथ उस घटनासे है जब महाराज खारवेलने मगध-विजय अशोकको अत्यधिक धन-व्यय तथा नर-संहार करके कलिंग करके "कलिंग-जिन" नामक सुप्रसिद्ध जिन-प्रतिमाको को पुनः जय करनेके लिये बाध्य होना पड़ा।
लाकर कलिंगनगरमें प्रतिष्ठापित किया था। चित्रके ५. खारवेल ने मगधके साथ प्रतिशोध-स्वरूप सफल मध्यभागमें सिंहासनपर कलिंगजिनकी मूत्ति थी, और युद्ध किया और "कलिंग-जिन" प्रतिमाको पुनः प्राप्त किया हाथ जोड़े हुए राजोचित वेष-भूषा-युक्त जो राजपरिवार और जैनधर्मकी राजधर्मके रूपमें पुनः प्रतिष्ठा की। खड़ा है उनमें दो पुरुषोंमें या तो महाराज खारवेल और
शिशुपाल गढ़में हालमें ही (१९४८ से १९५१ तक) उनके उत्तराधिकारी युवराज कुदेपथी है या महाराज खुदाईका काम हुआ है । श्री टी. एन. रामचन्द्रन के अनुसार कुदेपश्री और कुमार बडुख है । दो स्त्रियोंमें खारवेलकी यह शिशुपालगढ़ संभवतः खारवेलके शिलालेखमें अग्रमहिषी और पुत्र-वधू है । आकाश मार्गसे उड़ता हुआ उल्लिखित कलिंगनगर ही है।
एक विद्याधर या देव है । उत्सुक हाथी तिर्यचोका प्रतिनि
धित्व करता है । कमल-पुष्प ज्योतिष्क-देवोंका सूचक है, ___ मंचपुरी
और आकाशमें ढोल बजाते हुए गंधर्व-जातिके देव हैं। मंचपूरी गुफा (ई. पू. दूसरी-पहली शताब्दी) एक वामभागका चित्र विनष्ट हो गया है। उसमें सम्भवतः अन्य शैल-शरणालय अथवा समश्राय है जिसमें तीन कमरे हैं, देव जैसे लौकान्तिक, व्यन्तर आदि प्रदर्शित थे । साराश यह जिनकी भूमि (फर्श) को इस प्रकार ढालू अथवा क्रमश · कि इस चित्रमें जिन-भगवान्की पूजा करते हुए देव, मनुष्य, उभारको लिए हुए बनाया गया है जिससे शयन करते समय और तिर्यच प्रदर्शित किये गये है और दूसरी विशेषता इस बिना तकियाके सिर ऊचा रह सके; क्योकि जैन साधु चित्र में यह है कि राज-परिवारकी प्रतिमूत्ति तदाकार अर्थात तकिया, बिस्तर वस्त्रादि किसी भी प्रकारका परिग्रह नही असली (Postraid) है। (चित्र नं० २,३) रखते है । इस गुफाके द्वारपालकों और स्तंभ-सोडियोंसे,
मंचुपुरी गुफामें दो शिला लेख निम्न प्रकार है:जिनमें सुसज्जित घोड़ोंपर वस्त्र-शस्त्र-भूषित सवार है, पारसीक और सीदियन प्रभाव प्रदर्शित होता है। इस गुफाकी
(१) ऐरस महाराजस कलिंगाधिपतिनो महा... अन्य विशेषताओंमें बुद्ध गयाकी तरहकी वेदिका (Railing) - वाह....कुदेपसिरिनो लेणम् (चित्र मं०४) और शाला-आदर्शके प्रस्तर है, जिनके बीच-बीचमे तोरण (२) कुमार वडुखस लेणम् (चित्र नं ५) हैं, जैसे कि लोमस-ऋषि गुफामें (बराबर पहाड़ी, गया) हैं। गुफाओंके प्रवेश-द्वारोंपर त्रिरत्नका आलेखन (design)
स्वर्गपुरी है। पारसीक शैलीके स्तंभोंपर शाला प्रस्तर है। टोडियोंकी स्वर्गपुरी (ई. पू. दूसरी-पहलीशताब्दी)-इस गुफामें मूत्तियोंमें भारी केश-बन्ध और मालाओं सहित स्त्रियां एक छोटा तथा एक बड़ा दो कमरे है। इन कमरोंके फर्श भी पूर्णघट लिये हुए हैं।
भी पीछेसे कुछ ऊचे हैं। कमरोंके बीचमें निम्न लिखित इनमेंसे दो कमरे कुदेपश्री और बडुखने बनवाये तथा लेख है, (चित्र नं. ६), जो कि इस गुहाका निर्माण कराने तीसरा सम्भवतः महाराज खारवेलने बनवाया था। यहां वाली खारवेलकी राणीका है:ध्यान देने योग्य यह है कि गुहामुखके मध्य भागमें उत्कीर्ण (प्रथम पंक्ति) अरहत पसादान (म्) कालिंगा (न) १ शिशुपालगढ़ J.A.H.R.S.Vol.xixpp.140-153. म् समणानम् लेणं कारितं राजिनो ल ()लाक (स)