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________________ किरण १] वीर-शासनाभिनन्दन - वीर-शासनाऽभिनन्दन तब जिन | शासन-विभवो सिद्धाोंका स्थान है-उसके द्वारा प्रतिपादित सब पदार्थ । जयति कलावपि गुणाऽनुशासन-विभवः । कल्पित न होकर प्रमाणसिद्ध है--जो लोग वास्तव में उसका दोष-कशासनविभवः आश्रय लेते हैं उन्हें वह अनुपम सुखस्वरूप है-मोक्ष स्तुवन्ति चनं प्रभा-शाऽऽसनविभवः॥ सुख तककी प्राप्ति कराने वाला है और सब --समन्तभद्राचार्य: कुसमयोंका विशासक है-उन सारे मिथ्या दर्शनों (मतों) के गर्वको चूर-चूर करनेकी शक्तिसे सम्पन्न है जो सर्वथा हैवीर जिन | आपका शासन-माहात्म्य आपके प्रवचन एकान्तवादके आश्रयको लेकर शासनाव बने हुए है और का यथावस्थित पदार्थोके प्रतिपादन-स्वरूप गौरव-कलिकाल मिथ्या तत्त्वोंके प्ररूपण-द्वारा जगतमें दुःखोंका जाल में भी जयको प्राप्त है-सर्वोत्कृष्टरूप से वर्त रहा है-उस फैलाये हुए है।' प्रभावसे गुणोंमें अनुशासन-प्राप्त शिव्यजनोंका भव विनष्ट हमा है-संसारपरि-भ्रमण सदाके लिये छूटा है-इतना श्रीमत्परमगम्भीर-स्याद्वाराऽमोघलाग्छनम् । ही नहीं, किन्तु जो दोषरूप चाबुकों का निराकरण करने में जीयात्रलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ समर्थ है-चाबुकोंकी तरह पीड़ाकारी काम-क्रोधादि दोषोंको अपने पास फटकने नहीं देते-और अपने ज्ञानावि-तेजसे -अकलंकदेवः जिन्होंने आसन-विभुगोंको-लोकके प्रसिद्ध नायकोंकोनिस्तेज किया है वे---गणघरदेवादि महात्मा-भी आपके जो श्रीसम्पन्न है-यथार्थवादिता निर्बाधता और इस शासन-महात्म्यको स्तुति करते हैं।' परहित-प्रतिपादनादि गुणोंकी शोभासे संयुक्त है-,परम गम्भीर है-विविध-नय-भंगोंकी गहनता एवं सुयुक्ततासिद्ध सिद्धत्याण ठाणमणोवमसुह उबगयाण । को लिये हुए अतीव गहरा है-और 'स्याधाव' जिसका कुसमय-विसासण सासण जिणाण भव-जिणाणं । अमोघ लक्षण है-सर्वथा नियमका त्यागी जो 'स्यात्' शब्द बोला है उस पूर्वक कथन अथवा सर्वथा एकान्तदृष्टिको त्यागकर मुख्य-गौण की व्यवस्थाको लिये हुए सापेक्ष नयवादरूप कथन 'भवको जीतनेवाले संसार-परिभ्रमणके कारण शाना- ही जिसकी अचूक पहिचान है-यह तीन लोकके नाव, वरणादि कर्मोसे सदाके लिये अपना पिंड छुड़ानेवाले- (श्रीवीरप्रभु) का शासन-प्रवचनतीर्थ-जिसे 'बिन-1 जिनों-अर्हन्तोंका शासन-प्रवचनतीर्थ-सिद्धस्वरूप है- शासन' कहते है, अपवन्त हो-लोकहृदयोंको सदा अपने अपने ही गुणोंसे आप प्रतिष्ठित हैं-(क्योंकि) वह प्रभावसे प्रभावित करता रहे।'
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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