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किरण १]
मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजी का 'ट्रस्टनामा'
(च) जैन साहित्य, इतिहास और संस्कृतिकी सेवा तथा तत्सम्बन्धी अनुसंधान व नई पद्धति से ग्रंथ निर्माणके कामोंमें दिलचस्पी पैदा करने और यथावश्यकता शिक्षण (ट्रेनिंग) दिलानेके लिये योग्य विद्वानोंको स्कालशिप्स (वृत्तियांबजीफ़े) देना।
(छ) योग्य विद्वानोंको उनकी साहित्यिक सेवाओं तथा इतिहासादि-विषयक विशिष्ट खोजोंके लिये पुरस्कार या उपहार देना । और जो सज्जन निःस्वार्थ-भावसे अपनेको जैनधर्म तथा समाजकी सेवाके लिये अर्पण कर देवें उनके भोजनादि-खर्च में सहायता पहुंचाना ।
(ज) 'कर्मयोगी जैनमंडल' अथवा 'वीर-समन्तभद्र-गुरुकुल की स्थापना करके उसे चलाना ।
३. दृस्टकी सम्पत्ति—मेरी निम्नलिखित सम्पत्ति (जायदाद) जिसका मै हर तरहसे बिना किसीकी शराकत या साझेदारीके मालिक व काबिज है, जिस पर किफालत (बन्धकत्व) वगैरहका कोई भार नहीं है और जिस पर मुझे स्वतन्त्ररूपसे पूरा अधिकार किसीको देने या बेचने आदिका प्राप्त है, उसको मैं वीरसेवामन्दिर-ट्रस्टकी सम्पत्ति घोषित करता हुबास्टियोंको (जिनमें वे सब ट्रस्टी शामिल है जिनके नाम नीचे दिये गये हैं, जो उनमें से अवशिष्ट रहें या रहे और जिसकी या जिनकी समय समय पर नये ट्रस्टीके रूपमें नियुक्ति की जाय, मुन्तकिल और समर्पित (Transfer and Assign) करता हूं और ट्रस्टीजन इस सम्पत्ति को वीरसेवामन्दिर-ट्रस्टके हितार्थ अग्रोल्लेखित अधिकारों व कर्तव्यों और प्रतिबन्धनोंके साथ अपने अधिकारमें रखेंगे। (I hereby transfer and assign to the Trustees, which expression includes the Trustees named below, Survivor or Survivors of them and the Trustee or Trustees for the time being appointed for the Trust hereby created, all my property detailed below to hold the same to the Trustees upon the Trust and with and subject to the powers, provisions and conditions here-in-after declared and expressed concerning the same.)
यह सम्पत्ति अब वीरसेवामन्दिर-ट्रस्टकी मौजूदा (वर्तमान) सम्पत्ति होगी और ट्रस्टके उक्त उद्देश्यों तथा ध्येयोंको अथवा उनमेंसे किसीके भी पूरा करनके काममें आवेगी। मैने इस सम्पत्तिसे अपना कब्जा व दखल मालकाना उठाकर ट्रस्टियोंका कब्जा व दखल करा दिया है। अब मेरा या मेरे स्थानापन्नों और उत्तराधिकारियोंका निजी कोई स्वत्व (Right), अधिकार अथवा सम्बन्ध किसी प्रकारका नहीं रहा और न आगामीको होगा
(अ) वीरसेवामन्दिर-बिल्डिंग, जिसकी चौहद्दी नीचे दी जाती है, मय उन सब इमारातके जो उस अहातेमें तामीर की गयी है जो बैनामा(विक्रय-पत्र) मवर्खा २५ फर्वरी व मुसद्दका रजिस्ट्री २८ फर्वरी सन् १९३४के द्वारा ला. नाहरसिंह जैन सरसावा निवासीके पाससे खरीद किया गया था और जिसमें भीतरकी तरफ नीचेकी मंजिलमें एक गुसलखाना तथा दो जीनोके अलावा एक हाल (Hall) व बारह कमरे हैं, ऊपरकी मंजिलमें, तीन कमरे हैं और बाहरकी तरफ तेरह दुकानें हैं, मय उक्त अहातेकी समस्त अराजी (भूमि) के जिसमें से कुछ अराजी दक्षिणद्वारकी तरफ अभी खाली पड़ी हुई है और जिसमें मकानों आदिके लिये कुछ बुनियादें भरवा दी गयी है, उस घेर-सहित जिसका विवरण अगले नं. (आ) में दिया गया है । इस बिल्डिंगसे किरायेकी सालाना आमदनी ६७२) है और मालियत २०४२५) रुपये है तखमीनन । बिल्डिंगकी चौहद्दी निम्न प्रकार है
पूर्वी हद-दरवाजा सदर वीरसेवामन्दिर-बिल्डिग तत्सम्बन्धी दुकानोंके दर्वाजों-सहित, मय चबूतरों-सायबानों व सहन (मांगन) वगैरह दुकानात और उनके बाद पड़ाव सरकारी ।
पश्चिमी हद-आबचक मुश्ता , जिसमें वीरसेवामन्दिर-बिल्डिगका पानी पड़ता व बहता है और उसकी निजी नाली भी मय पुश्तेके बनी हुई है तथा अपना एक बन्द दरवाजा भी उपर जानेके लिये है और जिसके बाद वारिसान ला. कबूलसिंह वगैरहके मकानात घोड़ेसे टूटे-फूटे मलबेकी शक्ल में पड़े हैं और कुछ मकानात वारिसान ला जीयालालके भी है।