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________________ अनेकान्त [वर्ष ११ उक्त 'बीर-सेवा-मन्दिर को अपनी सम्पत्तिका सबसे बड़ा हकदार और वारिस समझकर मैंने उसके हकमें एक वसीयतनामा ता० २० अप्रेलको स्वयं अपनी कलमसे लिखकर उसे २४ अप्रेल सन् १९४२ ई० को सहारनपुरमें सब-रजिस्ट्रार, के यहां रजिस्ट्री करा दिया था, जिसमें वीरसेवामन्दिर संस्थाकी भावी उन्नतिके लिए 'वीरसेवामन्दिर-ट्रस्ट की भी एक योजना की गई थी और उसके उद्देश्य व ध्येय निर्षरित किये गये थे। अब में अपने जीवन में ही 'वीरसेवामन्दिर-ट्रस्ट' को कायम करके और उसको अपनी सम्पत्ति देकर भावी चिन्ताओंसे मुक्त होना चाहता हूं और चाहता हूं कि ट्रस्टकी कार्रवाई मेरे सामने ही अबाधितरूपसे प्रारम्भ हो जाय । उसीके लिए यह दस्तावेज़ ट्रस्टनामा ( Deed of Trust ) अपनी स्वस्थ दशामें बिना किसीके दबाव या जबरदस्तीके अपनी स्वतन्त्र इच्छा और खुशीसे लिख रहा हूं और इसके द्वारा बीरसेवामन्दिर-ट्रस्टको कायम करता हूं और यही वह ट्रस्ट होगा जिसका उल्लेख मेरे उक्त वसीयतनामा( Will ) में है और अब इसीके अनुसार ट्रस्टकी सब कार्रवाई संचालित हुआ करेगी। ट्रस्टका और ट्रस्टको प्राप्त संस्थाका नाम, ट्रस्टके उद्देश्य व ध्येय, ट्रस्टकी सम्पत्ति, ट्रस्टियोंके नाम और ट्रस्टियोंके अधिकार व कर्तव्य निम्न प्रकार होंगे: १. ट्रस्टका और दृस्टको प्राप्त संस्थाका नाम -इस ट्रस्टका नाम 'वीरसेवामन्दिर-ट्रस्ट' होगा और जिसके हितार्थ यह ट्रस्ट कायम किया गया है उस संस्था (Beneficiery) का नाम 'वीरसेवामन्दिर' है, जिसे मुझ ट्रस्ट-संस्थापक (Founder or author of the Trust) ने २४ अप्रेल सन् १९३६ ई० को अपनी जन्मभूमि सरसावा नगरमें संस्थापित किया था और जिसको जनता ( Public ) ने अपने दानों ( Donations) आदिके द्वारा अपनाया है तथा जिससे वह बराबर उपकृत एवं लाभान्वित होती रही है। २. दृस्टके उद्देश्य और ध्येय-इस ट्रस्ट और वीरसेवामन्दिरके उद्देश्य और ध्येय (Aims and Objects) निम्न प्रकार होंगे, जो सब जैन धर्म और तदाम्नायकी उन्नति एवं पुष्टिके द्वारा लोककी सच्ची ठोस सेवाके निमित्त निर्धारित किये गये है (क) जैनसंस्कृति और उसके साहित्य तथा इतिहाससे सम्बन्ध रखनेवाले विभिन्न ग्रंथों, शिला-लेखों, प्रशस्तियों, उल्लेख-वाक्यों, सिक्कों, मूत्तियों, स्थापत्य व चित्र-कलाके नमूनों आदि सामग्रीका लायब्रेरी व म्यूजियम (Library and Museum) आदिके रूपमें अच्छा संग्रह करना और दूसरे ग्रंथोंकी भी ऐसी लायब्रेरी प्रस्तुत करना जो धर्मादि-विषयक खोजके कामोंमें अच्छी मदद दे सके। (ख) उक्त सामग्री परसे अनुसंधान-कार्य चलाना और उसके द्वारा लुप्तप्राय प्राचीन जैन साहित्य, इतिहास व तत्वज्ञानका पता लगाना और जैनसंस्कृतिको उसके असली तथा मूल रूपमें खोज निकालना। (ग) अनुसंधान व खोजके आधार पर नये मौलिक साहित्यका निर्माण कराना और लोक-हितकी दृष्टिसे उसे प्रकाशित कराना; जैसे जैनसंस्कृतिका इतिहास, जैनधर्मका इतिहास, जनसाहित्यका इतिहास, भगवान महावीरका इतिहास, प्रधान प्रधान जैनाचार्योंका इतिहास, जाति-गोत्रोंका इतिहास, ऐतिहासिक जैनव्यक्तिकोष, जैनलक्षणावली, जैनपारिभाषिक शब्दकोष, जैनग्रंथोंकी सूची, जैन-मन्दिर-मूर्तियोंकी सूची और किसी तत्त्वका नयी शैलीसे विवेचन या रहस्यादि तैयार कराकर प्रकाशित करना । (घ) उपयोगी प्राचीन जैनग्रंथों तथा महत्त्वके नवीन ग्रंथों एवं लेखोंका भी विभिन्न देशी-विदेशी भाषाओंमें नयी शैलीसे अनुवाद तथा सम्पादन कराकर अथवा मूलरूपमें ही प्रकाशन करना। प्रशस्तियों और शिलालेखों आदिके संग्रह भी प्रथक् रूपसे सानुवाद तथा बिना अनुवादके ही प्रकाशित करना। (ङ) जैनसंस्कृतिके प्रचार और पब्लिकके आचार-विचारको ऊंचा उठानेके लिये योग्य व्यवस्था करना, वर्तमानमें प्रकाशित 'अनेकान्त' पत्रको चालू रखकर उसे और उन्नत तथा लोकप्रिय बनाना । साथ ही, सार्वजनिक उपयोगके पैम्पलेट व ट्रैक्ट (लघु-पत्र-पुस्तिकाएं) प्रकाशित करना और प्रचारक घुमाना।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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