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मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजीका 'ट्रस्टनामा"
और पब्लिक ट्रस्टके रूपमें 'वीरसेवामन्दिर-ट्रस्ट' की स्थापना
[मुख्तार श्री जुगलकिशोरजीने सन् १९४२ में अपना 'वसीयतनामा' लिखकर उसकी रजिस्टरी करादी थी, जिसमें अपने द्वारा संस्थापित 'वीर-सेवा-मन्दिर के लिये ट्रस्टकी भी एक योजना की गई थी। यह योजना उनके देहावसानके बाद ही कार्य में परिणत होती। अब उन्होंने अपने जीवनमें ही उक्त ट्रस्टकी स्थापना करके उसे पब्लिक-ट्रस्टका रूप दे दिया है, ट्रस्टकी रजिस्ट्री करा दी है और अपनी सम्पत्ति ट्रस्टियोके सुपुर्द कर दी है। उनके ट्रस्टनामा ( Deed of Trust) की पूरी नकल सर्वसाधारणकी जानकारीके लिये यहां प्रकाशित की जाती है।
-नेमिचन्द वकील, मंत्री वीरसेवामन्दिरट्रस्ट']
श्रीसमन्तभद्राय नमः मैकि जुगलकिशोर 'मुख्तार' पुत्र चौधरी लाला नत्थूमल व पौत्र चौधरी लाला धर्मदासका, जातिसे जैन अग्रवाल सिंहल-गोत्री, निवासी कस्बा सरसावा तहसील नकुड़ जिला सहारनपुरका हूं।
जो कि में सम्पत्तिवान हूं और मेरे कोई सन्तान पुत्र या पुत्रीके रूप में नहीं है, धर्मपत्नी श्रीमती राजकली देवी भी जीवित नहीं है-उसकी मृत्यु १६ मार्च सन् १९१८ ईस्वीको हो चुकी है, अपनी पचास वर्षकी उम्र हो जाने पर के शुरु दिन ता० ४ दिसम्बर सन् १९२७ को मेरे ब्रह्मचर्यव्रत ले लेनेकी वजहसे इन दोनोंकी यानी पत्नी और सन्तानकी आगे को कोई सम्भावना व आवश्यकता भी अवशिष्ट नही है और दत्तक पुत्र लेनेके विचारको मै बहुत अर्सेसे छोड़ चुका हूं। इसके सिवाय, मंगसिर सुदि एकादशी सम्बत् १९३४ विक्रमका जन्म होनेके कारण उम्र (आयु) भी मेरी इस वक्त ७३ वर्षसे ऊपर हो गई है और १२ फर्वरी सन् १९१४ को मुख्तारकारी छोड़ देनेके वक्तसे मेरी चित्तवृत्ति एवं आत्म-परितका झुकाव अधिकसे अधिक लोकसेवा यानी पब्लिक सर्विस और धर्म एवं जातिको खिदमतकी तरफ होता चला गया है, जिसका आखिरी नतीजा यह हुआ कि मैने जीवनके उस ध्येय (मकसद) को कुछ आला पैमाने पर पूरा करनेके लिये अपनी जात खाससे खुदकी पैदा की हुई भारी रकम लगाकर अपनी जन्मभूमि कस्बा सरसावामें 'वीर-सेवा-मन्दिर' नामक एक आश्रमकी स्थापनाके लिए बिल्डिग ( building ) का निर्माण किया, जो अम्बाला-सहारनपुर-रोड पर स्थित है और जिसमे उक्त आश्रमके उद्घाटन की रस्म (opening ceremony) वैशाख सुदि ३ (अक्षय तृतीया) सम्बत् १९९३ मुताबिक ता० २४ अप्रेल सन् १९३६ को एक बड़े उत्सवके रूपमें अमलमें आई थी। उद्घाटनकी रस्मके बादसे उक्त आश्रममें पब्लिक लाइब्रेरी, कन्या-विद्यालय, धर्मार्थ औषधालय, अनुसन्धान ( Research ), अनुवाद, सम्पादन, प्राचीन ग्रन्थ-संग्रह, ग्रन्थनिर्माण, ग्रन्थप्रकाशन और 'अनेकान्त' पत्रका प्रकाशनादि जैसे लोकसेवाके काम होते आये हैकन्या-विद्यालय और औषधालयको छोड़कर शेषकार्य इस वक्त भी उसम बराबर हो रहे है-धार्मिक और लोक-सेवा ( Religious and charitable) जैसे कामोंके लिये ही वह संकल्पित है, कई विद्वान् पंडित उसमें काम करते है, मै भी वहीं रहकर दिन रात सेवा-कार्य किया करता हूं और वही मेरी सारी तवज्जह ( attention) और ध्यानका केन्द्र बना हुआ है। १. यह ट्रस्टनामा ४६८)के ८स्टाम्पों पर है जिनकी खरीद २० अप्रेल सन् १९५१को खजाना कलक्टरी सहारनपुरसे हुई