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________________ बनेकान्त वर्ष ११ - पादा" होना चाहिये । उपर्युक्त अशुद्धिके रहते हुए सायणाचार्यने जो अर्थ किया है वह बहुत ही विचित्र है-तीन प्रजा श्रद्धा रहित हो गई अर्थात् वैदिक कर्मोंसे उनका विश्वास उठ गया-वे तीन प्रजा यह है वासि अर्थात् कौवे इत्यादि पक्षी वंगा अर्थात् अरण्यगत वृक्ष, अवगधा अर्थात् चावल जौ आदि अन्न चेरपादा अर्थात् बिलमें रहने वाले सर्प इत्यादि जन्तु ये सब वैदिक काँका त्याग करनेसे नरकका अनुभव करते है।" पाठ शुद्धि होनेपर उक्त वाक्योंका स्पष्ट अर्थ यह है कि तीन प्रजा प्रखा रहित हो गई अर्थात् वैदिक कर्मोंसे इनकी निष्ठा उठ गई वे तीन प्रजा यह है-वंगा अर्थात् मगधके पूर्वीय देशोंके रहने वाले, मगषा अर्थात् मंगध देशके रहनेवाले और चेरपादा अर्थात् वज्जी देशके रहनेवाले वज्जीगण-लिच्छिवि क्षत्रिय वज्जी शब्द वृजिनः (घुमक्कड़) से बना है और चेर या चेल घातु भी गतिका निर्देशक है, इसलिये चेरपादा शब्द वज्जिन लोगोंका घोतक है। इन प्रमाणोंके अतिरिक्त अथर्ववेद, काण्ड ५, सूक्त २२, मन्त्र ५-१४ से भी सिद्ध है कि पंजाब, गान्धार, अंग, वंग, मगधमें अवैदिक लोग बसे हुए थे, जिनसे वैदिक आर्यजन सास्कृतिक विभिन्नताके कारण विद्वेष करते थे। चूंकि इस सूत्र में ज्वर निवृत्तिके अर्थ यह भावना की गई है कि हम अपने ज्वरको एक नौकरके समान, एक कोशके समान, गन्धार (पेशावर) मुजवन्त (दक्षिणी कश्मीर), अंग (पश्चिमी बिहार) और मगधके निवासियोको दे देवें। . ... वीरसेवामन्दिर सरसावा का उत्तखार १ "गान्बारिभ्यो मूजवदृभ्यो मगषेभ्यः । "प्रेष्यत जनमिव शेवर्षि तथपानं परिदयसि ॥" अथर्ववेद ५. २२.१४.
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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