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________________ कात्यायन श्रोत्र सूत्र ८, ६, २८, तथा लाह्यायन श्रौत्र सूत्र २५, ४, २२ में लिखा है कि व्रात्यस्तोमके बाद (अर्थात उस अनुष्ठानके बाद जिसके द्वारा एक व्रात्यको शुद्ध करके ब्राह्माणिक संघमें सम्मिलित किया जाता था) व्रात्यका तमाम घरेलू सामान मगध देशके किसी ब्रह्मबन्धुको (अर्थात् नाममात्रके उस ब्राह्मणको जो ब्राह्मण धर्मको छोड़कर श्रमण संस्कृतिको अपनाने लग गया है) दे दिया जावे। इससे विदित है कि मगधके ब्राह्मण लोग व्रात्योंके पुरोहित हो जानेके कारण वैदिक ब्राह्मणोंमें घृणाकी दृष्टिसे देखे जाते थे। इसके अतिरिक्त वौधायण-धर्मसूत्र १. १ ३२-३३ मे कहा गया है कि मगध, अंग, वंग, कलिंग, सुराष्ट्र, आरट (पंजाब) सिन्धु सौवीर (सिन्धु देशका उत्तरीय भाग) अथवा कारस्कर (कर्णाटक देशका कारकल जिला) में संकर जातियोंके लोग अर्थात् व्रात्य लोग रहते है इसलिये इन देशोमे किसीको यात्रा नही करनी चाहिये, जो इन देशोकी यात्रा करेगा उसे दोबारा शुद्ध होनेके लिए नरस्तोम नामका अनुष्ठान करना होगा। इसी प्रकार देवल स्मृतिकारका मत है (इसके लिये देखें-याज्ञवल्क स्मृति ३. २९२ पर ईशाकी १२ शताब्दीकी बिज्ञानेश्वरकृत टीका) कि जो कोई सिन्धु, सौवीर, सुराष्ट्र, अंग, वंग, कलिग, आन्ध देशों की यात्रा करेगा उमे पुनः शुद्धिके लिए पुनरस्तोमका विधान करना जरूरी है। इसी प्रकार हिजरी सन् ३७५ (ईस्वी ९८३) के अरब लेखक मुतहाहिरने, जो भारतमें यात्रार्थ आया था, अपनी 'किताबलविदसवत्तारीख' नामकी पुस्तकमें ब्राह्मणोके सम्बन्धमें लिखा है कि ये लोग मौकी पूजा करते है और गंगाके उस पार जाना पाप समझते है। उक्त देशोंमें यात्रा करनेकी मनाई ब्राह्मण स्मृतिकारोंने जिन कारणोंके वश की है उनका कुछ परिचय हमें महाभारत कर्ण पर्व अध्याय ४५ में मिलता है। इसमे लिखा है कि 'आरट्ट (पंजाब) देशके निवासी वालीक लोग जो प्रजापतिकी सन्तान नही है तथा इस देशके नीच ब्राह्मण जो यहा प्रजापतिके समयसे रहते है, न तो वेदोंका पाठ करते हैं और न यज्ञ ही करते है । इन नीच व्रात्योंकी दी हुई कोई हवि देवताओंको नही पहुंचती, मद्र (रावी और चनाव नादियोंका मध्यवर्ती-देश) गान्धार आरट्ट (पंजाब) खस (कश्मीरका दक्षिणी भाग) सिन्धु, सौवीर (सिन्धुदेशका उत्तरीय भाग) के निवासी अधिकतर नीच है। . इसी तरह पूर्वी देशोंकी सांस्कृतिक विषमताका परिचय एतरेय आरण्यकसे भी मिलता है जो इस प्रकार है:-- तदुक्तमृषिणा प्रमाहं तितो मत्यायमीयूषन्या मर्कमभितो विविध । बार तस्बी भुवनेष्वन्तः पवमानो हरित मा विवेमेति ॥ ऋ०८, १०१, १४ ऋग्वेदकी इस ऋचाका अर्ष एतरेय आरण्यकर्म (आरण्यक २ अध्याय १) इस प्रकार किया गया है "प्रजाहं तिस्रोअत्यायभीयु रिति या वै ता इमाः प्रजास्तिस्रो अत्यायमायं स्तानीमानि वयासि वंगावगधाश्चेरपादाः" उक्त वाक्योका अर्थ सम्बन्धी टीका टिप्पण करते हुए जैसा कि स्व० धर्मानन्द कोशम्बीने अपने "भारतीय संस्कृति और अहिंसा" नामक हिन्दी ग्रन्थके पृष्ठ ३६ पर लिखा है वाक्योंका "वंगावगधा श्चेरपादा" यह पाठ दोषपूर्ण है, इसका मूल पाठ "वंगा मगपाश्चेर १Nand Lal Dey वही भौगोलिक कोश पृष्ठ ९३ ॥ Nand Lal Dey Geographical Dictionary (92) ५ मौलाना सुलेमान नदवी-मरव और भारत के सम्बन्ध १९३०, १७३ ।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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