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किरण १
मोहन जोदड़ो कालीन बार आधुनिक जन संस्कृति देश; सब ही तीर्थंकरो और उनके तीर्थकालीन अगणित श्रमण सन्तोंके जन्म तप, शान, पर्यटन और निर्वाणसे सम्बन्धित होनेके कारण तीर्थक्षेत्रों और अतिशय क्षेत्रोंसे भरपूर है।
परन्तु इन सबमें पूर्वका मगध देश और पश्चिमका सुराष्ट्र देश तो बहुत ही माननीय है। चूंकि मगध देश अधिकांश तीर्थंकरों की जन्मभूमि होनेके अलावा अधिकांश तीर्थंकरोंकी निर्वाणभूमि भी रहा है। इसी देशमें सम्मेद शिखर, चम्पा और पावा आदि प्रसिद्ध तीर्थस्थान विद्यमान है, जहांसे पार्श्वनाथ, वासुपूज्य और महावीर आदि २२ तीर्थंकरोंने निर्वाण प्राप्त किया है। इसी देशमें सूर्यवंशी दशरथके ५०० पुत्र और पौत्र आदि वंशजोंने कलिंग देशस्थ कोटशिलासे मोक्ष प्राप्त किया है। श्रीरामके दोनों पुत्र लव और कुश तथा अन्य अनेक सूर्यवंशीजनोंने पावागिरि (बिहार) से निर्वाण हासिल किया है। वरवत्त, वरांग और सागरदत्त आदि सोरठके अनेक प्रसिद्ध मुनियोंने तारपुर जिला वीरभूमि (बिहार) से मोक्ष हासिल किया है।
इनके अतिरिक्त राजगृहीके निकट पंचशैल पर्वत की कुंडल गिरि अथवा पांडुकगिरि, वैभारगिरि, ऋष्याद्रि, विपुलाचल और बलाहकगिरि नामवाली पांचों पहाड़ियोंपरसे तथा द्रोणगिरि (मध्यप्रान्त सागरसे ६० मील), विन्ध्याचल, पोदनपुर (दक्षिणमें गोदावरी नदीपर स्थित एक नगर जो प्राचीनकालमें अस्मक देशको राजधानी थी), वृषदीपक (संभवत: ऋषभ पर्वत जो दक्षिणके मदुरा जिलेमे मलयपर्वतके उत्तरीय भागमें स्थित है) सह्याचल (कावेरी नदीके उत्तरमें पच्छिमी घाटका उत्तरीय भाग) हिमवान, आदि स्थानोंपरसे भी असख्य योगियोंने तपस्या द्वारा शिवपदकी प्राप्ति की है।
पश्चिमके सुराष्ट्र देशमें जैनियोंके प्रसिद्ध तीर्थ रैवतक पर्वत (गिरनार पर्वत) तथा शत्रुजय स्थित है, यहांसे २२ में तीर्थकर अरिष्ट नेमि और अनेक यादव और कुरुवंशीय महापुरुषोने निर्वाण प्राप्त किया है। भगवान कृष्णके पुत्र प्रद्युम्न, शम्भुकुमार अनिरुद्ध आदि अनेक यादव वशियोने गिरिनार पर्वतसे मोक्ष हासिल किया। युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन तीन पांडव राजाओं और अगणित द्राविड़ जातिके महापुरुषोंने सुराष्ट्र देशस्थ शत्रुजय गिरिमे निर्वाण प्रा-त किया । बलभद्र
१. (अ) निर्वाण-भक्ति, पूज्यपाद-देवनन्दी (विक्रमकी छठी सदी)।
(आ) प्राकृत निर्वाण काड । () उदयकीति-कृत अपभ्रंश भाषाको निर्वाणभक्ति । (६) स्वयम्भू-स्तोत्र, समन्तभद्र (विक्रमकी दूसरी-तीसरी सदी)। (उ) शासन चतुस्त्रिशिका, मदनकीर्तिकृत (ईसाकी १३ वी सदी)। (ऊ) विविध तीर्थकल्प-जिनप्रभसूरि कृत (ईसाको १४ वी सदी)। (ए) प्रो. जगदीशचन्द्र M.A., Ph. D. कृत 'जैन ग्रंथोंमें भौगोलिक सामग्री और जैन धर्मका प्रसार
-प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ १९४४ पृ. २५१-२६८ । २. जैन और बौद्ध लोगोंमें इस पंचशैलार्वतकी पांचों गिरि भगवान बुद्ध और भगवान महावीर एवं उनके साधुसाध्वी संघोंके सम्पर्कमे रहने के कारण बहुत ही पूज्य मानी जाती है। बौद्ध साहित्यमें उक्त पांचों गिरि पांडव वैभार, वेपुल्ल इसिगिलि और गृद्धकूटके नामोंसे प्रसिद्ध है। हिंदू ग्रंथोंमें ऋष्याद्रि ऋषिभङ्गादिके नामसे प्रसिद्ध है। ३. NandLal Dey-Geographical Dictionary 1927 P. 12. ४. Nand Lal Dey वही पृ० 169 ५. , , वही पृ. 171 ६. पूज्यपाद देवनन्दा निर्माणपक्ति "लोक २९.१..।