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मोहनजोदड़ो - कालीन और आधुनिक जैन - संस्कृति
( श्री बाबू जयभगवान बी. ए., एडवोकेट )
raft मथुराकी कला और मोहनजोदडोकी कलाकी उपयुक्त विधिसे तुलना करनेपर दोनोंमें बहुत बड़ी समानता दिखाई पडती है तो भी दोनो कलाओमें ३००० वर्षका अन्तर होनेके कारण प्रश्न हो सकता है कि जब तक हम दोनों युगोंकी संस्कृतियोंमें एक शृङ्खलाबद्ध सम्बन्ध स्थापित न कर सकें, तब तक हम कैसे इन दोनोंको एक ही श्रमणसंस्कृति से सम्बोधित कर सकते है ?
पुरातात्त्विक प्रमाण --
इसमें संदेह नहीं कि जहां तक अब तककी प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्रीका सवाल है, उसके आधारपर हम इन दोनों युगोके बीच एक अक्षुण्ण धाराकी स्थापना अभी तक नही कर पाये है ।
इस अभावके कई कारण है - प्रथम तो प्राचीनकालसे समय-समयपर जो अनेक आक्रमणकारी विद्रोही लोग भारतमें आते रहे है, उन्होंने अपने सांस्कृतिक विद्वेषके कारण मन्दिर और मूर्तियोंको तोड़-फोड़कर भारतकी प्राचीनकलाका बहुत विध्वंस किया है। दूसरे, प्राकृतिक उपद्रव और राज्यविप्लवोंके कारण भी बहुत-सी रचनाएं छिन्न-भिन्न होकर भूगर्भ मे दब गई है। तीसरे, मध्यकालीन और आधुनिक युगोंमें प्रलोभी लोगोंने इन पुराने सास्कृतिक केन्द्रोंकी सामग्री जड़मूलसे निकाल कर अपनी-अपनी नयी बस्तिया बसाने और मकान अथवा देवालय बनाने में खर्च कर ली है। चौथे, प्राचीनकालमें लकड़ी और मिट्टीकी मूर्तियां बनाने की जो प्रथा प्रचलित थी वह भी इस अभावकी बहुत उत्तरदायी है। पांचवें, बहुत-सी जैन मूर्तियां और जैन-कलाके अवशेष अन्य मतावलम्बियोके हाथोमे पड़कर आज उन्हीकी सम्पत्ति बन गये है और वे आज उन्हींके दिये हुए नामोंसे प्रसिद्ध है ।
इस सम्बन्धमें यह बात भी ध्यान रखने योग्य है, कि पुराने सांस्कृतिक केन्द्रोंको खोद-खोद कर पुरातात्विक वस्तुओंको निकालने अथवा इधर-उधर बिखरे हुए मूर्ति खंडोको सग्रह करनेकी आयोजना एक नयी आयोजना है, जो लार्ड कर्जनके जमाने से आरम्भ हुई है। इस आयोजनामें सरकारी महकमेके सिवाय अन्य गवेषकोंने अभी तक बहुत कम भाग लिया है । इस परसे हम कह सकते है कि इस थोड़ेसे कालमें थोड़ेसे परिश्रम द्वारा जो कुछ खोज आजतक हो सकी है, भारत देशकी विशालता और इसकी सभ्यताकी प्राचीनताको देखते हुए बहुत ही नगण्य है। अभी भारतके बहुतसे पुराने सभ्यता - केन्द्र, जो नदियों और झीलोके आसपास बसे हुए थे, खोजने बाकी हैं। अभी खोजे हुए क्षेत्रोंके भी निचले स्तर देखने बाकी हैं। इसलिये मौजूदा अभावपरसे यह नही कहा जा सकता कि मथुरा और मोहनजोदड़ोकी उपर्युक्त कलाओंके अन्तर्कालीन युगके कोई पुरातात्त्विक अवशेष भूगर्भ मे मौजूद नही है ।
अभी १९३७ में ही पटना जंक्शनके एक मील दूरीपर लोहिनपुरसे जो चमकदार पालिशवाले दो जैन मूर्ति-खंड'
• Patna Museum
Neg No 963--Arch No 8038 Neg No 962-Arch No 8038