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किरण १२1 वैशालीकी महत्ता
[४७ ऊँचाई में २२ फुट है। इससे मालूम होता है कि अशोक महावीर स्वामीके पूर्व जैन धर्म के २३ तीर्थकर थे उनमेंस को २२ वर्षकी श्रवस्थामें अनेक परिवर्तनाका सामना करना २० पारसनाथकी पहाड़ियों में समाधिस्थ कर दिए गए। पड़ा था। यह चुनारके पास पाये जाने वाले पत्थरका बना जैन धर्मवालोंने अनुशास का एक नया नियम चलाया है और इसमें सुन्दर पालिश भी किया गया है। यत्र-तत्र था। जिसे उनके अनुसार अहिंसा कहते हैं। अनशन, यह स्तूप टूट भी गया है।
श्रारमनियंत्रण तथा तपस्या ही उसके लिये प्रर्याप्त नहीं है। इस स्तूपके सम्बन्धमें यह प्रचलिन कहानी बहुत वे उन जीवधारियोंको भी किसी प्रकारका नुकसान नहीं
को भी किसी TAITRI am अंशाम ठीक ही मालूम होती है कि यह बनारसमें तैयार
जिवे देख नहीं सकते थे। र्यालये किया गया था और टुकडामें करके गंगा, गंडक तथा नेवली
नवला वेसर्वदा पानी छानकर पीने, जमीन साफ़ करते तथा सूर्य
मटा पानी नालाकं रास्तेसं यहाँ लाया गया । यहाँ नालेके स्पष्ट चिह्न
इबने के बाद भोजन श्रादि नहीं करते थे। उनका सबसे दिखायी पड़ते हैं। इस स्तूपको देखकर हमें इस बातका बड़ा त्याग पर्योपवेक्षण था, जिसमें एक व्यक्ति अनशन अनुमान भी नहीं होता कि उस समय के शिल्पकार अपनी
करकेही अपने शरीरका त्याग कर देनाई। इस प्रकारके शिल्पकलामें कितने प्रवीण एवं दक्ष होंगे।
सिद्धांत अपनी समस्त कमजोरियांके बावजूद भी उस ऐतिअशोकने पाटलिपुत्रमे कपिलवस्तु तथा नेपालम
हाम्पिक युगमें प्रचलित थे जबकि महावीर वैशाली में ही थे। लुम्बिनीके मार्गपर इस सिंह-स्तम्भको बनवाया था ।
यह मिद्धान अाज भी अपने उसी रूपमे जीवित हैं. जिम इसे उसने अपने शासनकालके २१३ वर्षमें बनाया था।
महावीरक करीब इंढ लाख (2) अनुयायी मानते हैं। बासरम एक पुराने स्तूप पर एक दरगाह हजा इसे सभी लोग जानते हैं कि बुद्धको वैशालीके प्रति जमीनक धरातलमे २३ फुट ऊंचा है। यह 'मिरांजीके प्रेस था और उनकी जनतामें श्रद्धा थी। वे तीन बार उम दरगाह के नाम प्रसिद्ध है परन्तु वास्तव में यह एक पीर-
जियो और जो का दरगाह है जिसका नाम शेम्व मुहम्मद काजी था।
ध्यतीत भी किया यहीं पर उन्होंने इस बातकी घोषणाकी,कि यहाँ के दो अथवा तीन विभिन्न मंदिरोम कई हिंदुओ
मेरे निर्वाण प्राप्त करनेके दिन निकट था चुके हैं। वैशाली की मूर्तियां प्राप्त हुई है। यह अशोकके बारके समयकी
की जनताने जब उनसे याददाश्तके रूपमें कोई चीज मांगी हैं। इनमेंसे अधिकांश पन्थर तथा कुछ कोपेकी हैं। इन्हें
थी तो उन्होंने जनताको यही भिक्षा पात्र दिया था । प्रमुख गम, मीता, लक्मण, परशुराम, मूर्य हर गौरी, कातिकेय वश्या धर्मपरिवर्तनकी कहानी भी वैशालीसे ही सम्बन्धित नथा अन्य हिन्दू देवताओं के नामसे पुकार जा सकते हैं।
है । महान्मा गौतम बुद्धको मृत्युक मी वर्ष बाद वैशालीम परन्तु इनमम एक, जो काफी महत्वपूर्ण है. गोमुखीमहादेव
बौद्धोका द्वितीय सम्मेलन हुआ था। इसके दो सौ वर्षक की है एसी मृति केवल नेपालमै पशुपतिनाथ में है। इस
पश्चात् अशोक पाता है। प्रेम एवं अहिंसा मिन्द्वातके प्रचार नांत्रिक प्रतिमा भी कहते हैं।
में उसने भी काफी महत्वपूर्ण कार्य किया। कोल्हयाका इम वैशाली में पायी सामग्रियों में यह कुछ
अशोकस्तम्भ उस स्थानकी महत्ताका यांनक है। अन्यन्त महत्वपूर्ण है। इन चीजोम हम उस समयकी अशा
- अहिंसाका इतिहास अभी पूर्णस्पर्म नहीं लिखा गया जनताका कुछ परिचय भी मिलना है जिन्होंने अहिंसा
है। ईमाईधर्म हिन्दधर्म तथा मंमारकं अन्य धर्मों में इसका मिद्धांतका व्यापक प्रचार करनेमें भाग लिया था।
नाम अनेक रूपाम पाया है। गांधीजीके द्वारा यह मन्या. __अहिंसा अथवा प्रेमका एक अन्यन्तही रोचक इतिहास है। ना
ग्रहक रूपमै विकसित हुअा। इमी अम्त्रक महारे उन्होंने इस सिद्धांतके सम्बन्ध महावीर, बुद्ध तथा बादको अशोक
सभी प्रकारकी बुराइयोंका सामना किया, अहिंसाका भविष्य ने जो कार्य किए हैं वे वास्तवमें काफी महत्व है। उपनि
भी उज्ज्व ल है। पद्म भी हम अहिंसाको एक अनुशासनके रूपमें पाते हैं। वैशालीकी यात्रास अहिमाकं इस महान् सन्देश तथा यह उस समय प्राध्यात्मिक जीवनका एक प्रमुख अंग था उसके प्रवर्तक एवं प्रचार करने वाले युगपुरुषोंका हमे जैनधमने ही पहले अहिंसाको सबसे बड़ा धम तथा सबसे स्मरण हो जाता है। आशा है वैशाली भावी पीढ़ीक बडा कर्तव्य घोषित किया। उस समय जैन संन्यासियों- लिए प्रेरणा प्रदान करेगा। को 'निर्ग्रन्थ' कहा जाता था जा बुद्धके समय में भी थे। -अमृतपत्रिका विशेषाद, 1 अप्रैल, १९५३ में।