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वैशाली की महत्ता
(श्री प्रार. आर. दिवाकर, राज्यपाल बिहार) पिछले दिनों में वैशाली गया था यह एक दशनीय लय तथा एक धर्मशाला बनवाने की योजना बनाई है। स्थान है और इससे प्राचीन मिथलाके ऐश्वर्याशाली दिनों परन्तु वर्तमान समयमें इस भूभागमे ऐसी सामग्रियों का स्मरण हो जाता है।
मिली हैं जिनमे उस स्थान पर बौद्धधर्मके प्रभावके शालीकी दो कारणोंसे महत्ता है । यह जेनांके अधिक प्रमाण हैं। इस स्थानके पास पास रहने वालोंमें चौबीसवें तीर स्वामी महावीरका जन्म स्थान है तथा
से हम शायद ही किसी ऐमा क्तिको पाये जो जैनधर्म
हमश: बुद्धने भी इस स्थानका भ्रमण किया था। यह वह पवित्र से कुछ भी महानुभूति रखता हो। यहीं अधिकतर मुसलस्थान है जहाँसे संमारको अहिमाका संदेश मिला। जैन
मान एवं हिन्दु रहते हैं। सन् १९४५ में वैशाली संघकी धर्मके मतालम्बियांने पहले पहल अहिंसाके सिद्धान्तको
स्थापना तथा वैशाली समारोह मनाने की प्रथा चलानेके अपनाया और इस बातकी घोषणाकी कि'हिसा परमो धर्मः ।
बाद यहां की जनता प्राचीन बौद्धों तथा जैनधर्मके बारे पर तथा उनके शिष्यांने अहिंसाके सिद्धान्ताका बाहरी देशाम में अत्यधिक उत्सक होने लगी है। भीरचार किया। वैशालीम ही लिच्छवियों तथा बिजिजनोंके
जब मैं वहाँ गया तो करीब ३-४ हजारकी भीड़ जनतन्त्र थे, जो हमारे देशके प्रथम गणतन्त्र थे।
एकत्रित थी। वहाँकी जनताने ग्राम्य-गीतों तथा नृत्यको हम मुजफ्फरपुरसे वैशाली गए । हमें २० मील तक
दिवाकर हमारा स्वागत किया। एक नृत्य अत्यन्त ही मासे जानेके बाद करीब ३ मील नकका कच्चा रास्ता आकर्षक रहा। इसमे एक किपानके वास्तविक जीवनका तप करना पड़ा था। यहीं पर बैशाली स्थान है इसीके पास।
दीपाशाली स्थान है इसीके पास चित्रण किया गया था। चकदास, कोण्हुमा, वामकुण्ड तथा अन्य गांव स्थित हैं। इस क्षेत्रका प्रमुग्व स्थान जो विशेष रूपमं महत्व
यहाँ की जमीन कुछ भूरे रंगकी तथा कुछ बलुघट पूर्ण है, वासर ग्राम है। यहाँ एक मिट्टीका टीला है जो है। गर्मी के दिनों में यहाँकी हालत अत्यन्त खराब हो करीब ८ फुट ऊँचा है तथा उमका घेरा करीब एक मीलमें जाती है किन्तु अन्य वस्तुभा में फसल निकलने एवं कमलके है। इस क्षेत्रकी जनता 'गजाविशालका गढ़' कहती है। फुखोंके खिलने पर वातावरण अत्यन्त ही मनहरण हो यही वैशालीका प्रमुख स्थान कहा जाता है । बताया जाता जाता है। इस भूभागमें कुछ तालाब एव छोटी छोटी है कि यह स्थान प्राचीन काल में अत्यन्त ही समृद्ध एवं नहरे भी है। यत्र-तत्र कतिपय टीले भी हैं जो करीब २५ गौरवशाली था। इस संपूर्ण टीलेपर ईंटके टुकड़े पड़े हुए हैं। फुट ऊँचे है। वहीं स्तूप तथा चत्य हैं जो इस समय नष्ठ पुरातत्ववेत्ताको वहां ईटकी दोवाल, पकाई गई मिट्टीकी भ्रष्ट दिखाई पड़ते हैं। ये अधिकांश रूपमें मिट्टी तथा मूर्तियां (टेराकोटा वर्तनके टुकड़े एवं अनेक मोहर(सरकारी इंटोंसे बने हैं। फाहियान तथा हेनसांगने अपने यात्रा एवं गैर सरकारी) प्राप्त हुई हैं। उन दिनों मोहरांका वर्णनोंमें इस बातका जिक्र किया है कि वैशालीके पास- प्रयोग बैंक तथा अन्य संस्थाओं द्वारा किया जाता था। पास कई प्राचीन स्तूप है।
वैशाली संघने पर्यटकांकी सुविधाके लिये एक अतिविद्वानोंने खोज करके इस बातका पता लगाया है कि थि-गृह भी तैयार किया है । संघने एक वहीं संग्रहालयका इस वैशाली शेग्रमें बास कुण्ड नामक एक स्थान है। यहीं निर्माण कर एक बड़ी कमीका पूरा किया है। पर्यटकांके भगवान महावीर स्वामीका जन्म हुभा था। महावीर लिए उस स्थानकी विशेषता जाननेके लिये विवरण पत्रिका कहलानेके पूर्व वे शाल्य अथवा वैशालिकाके नामसे भी तय्यार की हुई है। पुकारे जाते थे। संसार छोडनेके एक वर्ष पूर्व तक आप वैशालोमें अन्य प्रमुख चीज है जो अशोकके समय. वैशाली में ही थे। हाल ही में वहां पद्मप्रभू की एक की याद दिलाती है। वह है कोल्हुवाका एक स्तूप जिसजनप्रतिमा प्राप्त हुई है। जैनधर्मके तीर्थंकरोमेसे एक थे। के ऊपर सिंहकी प्रतिमा है। इसीके पास एक १५ फुट
वहाँ जैन धर्मावलम्बिया ने एक मन्दिर एक पुस्तका- ऊँचा एक और स्तूप है। रतूपका घेरा १२ फुट तथा