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किरण १२1
अपभ्रंश भाषाका नेमिनाथ चरित
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सुन्दर सुवाच्य अक्षरों में लिखवाई थी। प्रति बहुत कुछ नेमिनाथचरित तीन वर्ष पूर्वकी रचना है जिसे कविने शज जान पहली है। इस प्रन्यका अवश्य उद्वार होना वि.सं. १२४४ में भाद्रपद शुक्खा एकादशीको समाप्त चाहिये अन्यथा इसके विनष्ट हो जाने पर ग्रन्थका फिर किया था । उस समय गोधाने चालुण्यवंशीय उन्हीं दर्शन दुर्लभ हो जायगा।
राजा करह या कृष्णका राज्य था, जिसका उल्लेख षट्इस प्रतिके पत्रोंकी संख्या २० है, ग्रंथ २५ संधि- कर्मोपदेश में भी किया गया है। उस समय गुजरातम योंमें पूरा हुआ है, जिसके जोकोंकी संख्या छह हजार चालुक्य अथवा सोलंकी वंशका राज्य था जिसकी राजपाठसै पचाणवे बतलाई गई है। अन्यमें जैनियोंके धानी अनहिलवादा थी, परन्तु इतिहासमें बंदिगदेव और २२ तीर्थकर भगवान नेमिनाथ का जीवनचरित दिया उनके पुत्र कृष्णनरेन्द्रका कोई समुल्लख मेरे देखने में नहीं
पाया । उस समय अनहिलवादाके सिंहासन पर भीम अमरकीर्ति काष्ठा संघान्तर्गत उत्तर माथुरसंघके
द्वितीयका राज्य शासन था। इनके बाद बाघेल वशकी विद्वान मुनि चन्द्रकीतिके शिष्य थे। षटकर्मोपदेशमें शाखाने अपना राज्य प्रतिष्ठित किया है। इनका राज्य उन्होंने अपनी गुरुपरम्परा काष्ठ संघके प्रसिद्ध विद्वान
स मान सं० १२३६ से १२६६ तक बतलाया जाता है। सं. प्राचार्य अमितगतिसे बतलाई है। और उसमें ग्रन्थ १२०० से १२३६ तक कुमरपाला, अजयपाल और मूलराज बननेके निमित्तके साथ अपना भी संक्षिप्त परिचय अंकित द्वितीय वहकि शासक रहे हैं। भीम द्वितीयके शासनकिया है। उनकी गुरुपरम्परा क्रमशः इस प्रकार है:
समयसे पूर्व ही चालुक्यवंशकी एक शाखा महीकाठा
प्रदेश में प्रतिष्ठित होगी, जिसकी राजधानी गोधा थी। अमितगनि (संवत् १०१० से १०७०),शान्तिषण, इस सम्बन्धमें और भी अन्वेषण करनेकी आवश्यकता है अमरसन, श्रीपेण, चंद्रकीर्ति (सं. १२९६), जिससे यह पता चल सके कि इस वंशकी प्रतिष्ठा गोध्रामें अमरकीर्ति संवत् १२४४-१२४७
कब हुई, और वह कितने समय तक प्रतिष्ठित रही।
अमरकीर्तिके उपलब्ध प्रन्थोंसे केवल इतना ही ज्ञात यह नगरवंशमें उत्पन्न हुए थे। इनकी माताका नाम 'चर्चिणी' और पिताका नाम 'गुणपाल' था। अमरकीर्तिने
होता है, कि सं० १२४५ से १२४७ तक तो वहाँ मंदिगअपना 'षट्कर्मोपदेश' गुजरातके महीकांठा प्रदेशके गोदा
देवके पुत्र कृष्णनरेन्द्रका राज्य विद्यमान था, परन्तु (गोधा) नगरमें हुई थी जिसके शामक चालुक्यवशी राजा
उससे पूर्व और पश्चात वह कबतक रहा, यह जानना बंदिगदेवके पुत्र कण्ह या कृष्ण थे । ग्रन्थके रचनाकालका
आवश्यक है। उल्लख ऊपर किया जा चुका है षट्कर्मोपदेशसे उक्त x ताहं रज्जिय वट्टतए विक्कम कालिगण,
श्री मूलसंधे बलात्कारगणे सरस्वति गम्छे नंदिसंधे बारहसब चउ भालए सुक्खु । भहारक श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनंदिदेवा सुहिवक्रवमए भवएहो सिय, तस्पट्ट भ. शुभचन्द्र वा तत्प४ भ. जिनचन्द्रदेवा तत्र पक्खे यारसि दिणि तुरित। भट्टारक श्री पद्मनंदिदेव तशिष्य नयणंदिदेवा तस्मै श्री
सकु टिप्पण ए समप्पिउ, सिरिनेमिह चरित। हुपर बंश ज्ञातीयगोत्र खरीयान श्रेष्ठि गजभाई राजे लोदो उत्तर माहुर संघायरिय हो चंदकित्ति नामहो । तयोः पुत्राः श्री खेमे भार्या विरमू तयो पुत्र गागाई या सुहचरियहो वाय पणासिय पर वाक् दहो। मणिकपा तयोः सुत जिनदास धनदसेन श्री नेमिनाथ
-नेमिनाथ चरित प्रशस्ति । परित लिखापितं, श्री नयनंदि मुनये दत्तं ॥ग्रंथान ६८११॥ # Histrory of Gujrat in Bombay -नेमिनाथ चरित लेखक प्रशस्ति
Gageteer Vol.1