SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१४] अनेकान्त [किरण १२ समाजके सभी अमीर गरीब भाइयोंका पूर्ण सहयोग मूल्य रखकर उसका प्रचार करते हैं। इमा तरहसे प्राप्त हो । अतएव समी महानुभाव अपनी-अपनी हमें भी चाहिये कि हम भी अपने साहित्यका प्रकाशन शक्ति अनुसार उक्त संस्थाको, अधिक सहायता देकर सुन्दर रूपमें करके लागत मूल्यमे भी कम दाम रक्खें पुण्य और यशके भागी बनें। जिससे उसका खूब प्रचार हा सके और वह सुमता ___एक-बातकी ओर आपका ध्यान और मी भाक- से सबको मिल सके। र्षित करना चाहता हूं और वह यह है कि जैन समाज मुझे पूर्ण आशा है कि समाज इम उपयोगी में जो प्रन्थोंका प्रकाशन कार्य होता है उसकी कीमत संस्थाको अपनाती हुई अपने कतव्यका पूणे पालन अधिक रक्खी जाती है जिससे उन प्रन्थोंका यथेष्ट करेगी और अपना सहयाग देकर संस्थाको कार्य करने प्रचार नहीं हो पाता। ईसाई लोग वाईबिलका अल्प में और भी समर्थ बनाएगी। ता०५-३-१६५२ अपभ्रंश भाषाका नेमिनाथ चरित (सं० परमानन्द जैन शास्त्री) ..तीर्थ यात्रासे वापिस लौटते समय हमें अपभ्रंश टिप्पणउधम्मचरियहोपयडु,तिह विरइउ जिह बुज्मेह जहु । भाषाका एक अप्राप्त प्रन्थ मिला, जिसका नाम 'मिणाह- सक्कयसिलंयविहिणियदिहि, गुफियउ सुहमियरयाणही चरिउ' है जो हाल में एक भट्टारकीय भण्डारसे प्राप्त धम्मोवएस-चूडामणिक्खु,तह माण-पईउ जि माणसिक्खु । हमा है। यह सारा ही अन्य अपभ्रंश भाषामें रचा गया छकम्मुवएस सहु पबंध, किय अट्टसंख सह सच्च संध। है और वह अभी तक अप्रकाशित है। इस ग्रन्थके कर्ता सक्कय पाइयकन्वय घणाई, प्रवराई कियइं रंजिय-जणाई॥" प्राचार्य अमरकीति हैं जिनकी अन्य दो रचनाओंका परि- कविने उक्त सभी ग्रन्थ सं० १२४७ से पहले बनाये चय मैं पाठकोंको पहले करा चुका हूँ। थे क्योंकि उन्होंने अपना पर कर्मोपदेश वि० सं० १२४७ - अमरकीतिने अपने 'छसम्मोवएस' (षटकर्मोपदेश) के भाद्रपद मासके द्वितीय पक्षकी चतुर्दशी गुरुवारको नामके प्रथमें अपनी कुछ रचनाओंके रचे जानेका उल्लेख एक महीने में बनाकर समाप्त किया था। किया है। जिनमें प्रथम ग्रन्थ उक्त 'णेमिणाहचरिउ' है, प्रस्तुत 'नेमिनाथचरित'की उक्त प्रति संवत् १११२ की दूसरा 'महाबीर चरिउ' तीसरा 'जसहर चरिउ' चौथा लिखी हुई है। जिसे भट्टारक पद्मनंदिके शिष्य मदनकीर्ति 'माण पईव' (ध्यान प्रदीप) और पांचा बकम्मोनएस'। सा। और उनके शिष्य नयनन्दिके लिये हम वंशी श्रेष्ठी इनके अतिरिक्त तीन अन्य संस्कृत भाषाके हैं। 'धर्म चरित- . रत- श्रणगाई और माणिकके पुत्र जिनदास तथा धनदत्तने टिप्पण', 'सुभाषित रत्ननिधि' और 'धर्मोपदेश चूडामणि'। - इनके सिवाय 'पुरन्दर विधान कथा' भी इन्हींकी रचना है बारह सयह ससत्त-चयालिहिं,विक्कम-संवच्छरहविसालहिं इन सब प्रन्धों में से प्रायः सात प्रन्योंकी रचनाका उल्लेख गणहिं मि भहवयहु पक्खंतरि, गुरुवारम्मिचडाशि वासरि षट्कर्मोपदेशमें पाया जाता है। इनके पालावा और भी इक्के मासें इहु सम्मियड,सई खिहयड मालसु अवहत्यिउ। पतसे काव्य-अन्य लोगोंके मनोरंजनके लिये बनाये थे। -पटकमोपदेश प्रशस्ति जैसा कि उस प्रन्यके निम्न उद्धरणोंसे स्पष्ट है- -संवत् ११० भाषाढ़ बदि वर्षे शाका १३७७ 'परमेसर पईणवरस-भरिउ,विरयड णेमिणाहहोचरिउ। प्रवर्तमाने फा. वसंत प्रती पारवानुमास शुक्लपये भरणुविचरिश सम्वत्थ सहिड,पपडल्थु महावीरहोविहिउ। पंचयाँ तिथौ सोम दिने श्री घोषाला से श्री नेमिसुरचरिवीबड चरितजसहर-विवास, पडिया- किउ पपासु। () मई लिखित । (शेष अगलं पृष्ठ पर)
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy