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________________ किरण १ सर्वोदयतीर्यके नामपर मैं यह बात यों ही नही कह रहा हूं। इसके पीछे एक कारण जो शुरूसे ही साफ, सच्चा और पवित्र हो। दवाकी जरूरत और है। सर्वोदयतीर्थका पुजारी प्रगतिशील होता है, कर्मठ रोगीको ही होती है। विज्ञान उपदेश नहीं देता, प्रयोग करता होता है, वह काल और शापसे डरता नहीं । पर कौन ऐसा है और परिणाम प्रत्यक्ष दिखा देता है, सुनहले सपने नहीं माईका लाल है जो ऐसा है ? मेरा सर्वथा सत्य और दूसरेका दिखाता । धर्मकी दुनिया प्रायः सपनोंकी दुनिया है और सर्वथा झूठ कहनेवाला तो सर्वोदय नहीं है । और हां, विज्ञानने सपनोंको बांधना शुरू कर दिया है और अभी एक बात कायर प्रतिवर्ष कहता है आगे का जमाना बड़ा नहीं किया है तो कर ही देने वाला है। सपनोंकी तरह ही खराब है, इससे तो पिछला साल ही अच्छा था, एक फर्मकी अधिकांश धर्मोंने हमें मृगजलमें भटकाया है। हमें उस धर्मसे ४५ वर्षकी बहियोंमें प्रति वर्ष यह लिखा पाया गया। यह मुक्त होना चाहिए जो आदमी-आदमीमें भेद करता है, रोने की वृत्ति है, आलस और भाग्यकी सहायक है। जो अपने पैसे-पैसे में भेद करता है, और मनुष्यतासे गिराता है। आपपर विश्वास नहीं रख सकता वह दुनियापर क्या रखेगा सर्वोदयीकी विचारधारा किसी सीमामें,श्रद्धामें बन्धकर और जो दुनियापर नही रखता वह अपने ऊपर भी नहीं नहीं चलनी चाहिए, उसमें विचारकी स्वतन्त्रता, जीनकी रख सकता । स्वतन्त्रता होनी चाहिए ।। दुनिया सचाईकी ओर भाग रही है । धर्मके ठेकेदार 'सर्वोदयतीर्थ' शब्दको प्रकाशमें लाकर अगर उसके भले ही कहें कि अनीति बढ़ गई है, भ्रष्टाचार बढ़ गया है, अनुरूप कुछ नही हो पाया तो, डर है कि कही रही-सही और सबकी जबानपर झूठ खेल रहा है। हो सकता है वे इज्जत भी जनी न खो दें। 'सर्वोदय' चाहनेवाले जब तक सच कहते हों, पर यह भी तो सच है कि दुनिया धर्मसे सबके लिये अपने द्वार उन्मुक्त नही करेंगे और सबको भाग रही है, धर्ममें अगर सचाई हो तो धर्मसे दुनिया गले नहीं लगायेंगे तब तक उसकी सार्थकता कहां रहेगी? भागे क्यों? विज्ञान सचाई है इसीसे दुनिया उसे अपना रही सबसे पहला काम तो यह होना चाहिए कि जितने भी मन्दिर है । विज्ञानकी दौड़में आज धर्म प्रायः पिछड़ गया है और है वे सबके लिये योग्य व्यवस्थाके साथ खुलजाने चाहिएं अब वह संभवतः किसी भी हालतमें उसे पकड़ नहीं और त्यागकी दृष्टि होनी चाहिए । सकेगा। बड़ा-से-बड़ा पूज्य और पवित्र समझा जानेवाला परकी पंक्तियां विचारके लिये ही लिख गया , अथ उपदेशसे भरा है। उस आदमीको उपदेशकी क्या जरूरत किसीपर उबलने और रोष प्रकट करनेकी नीयतसे नहीं।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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