________________
३८२]
अनेकान्त
[किरण ११
-
नकल 'भनेकान्त वर्ष के "मर्वोदय-तीर्थात" नामक वनी, जैन-पारिभाषिक-शब्दकोष, जैनप्रन्योंकी सूची, विशेषांक में प्रकाशित हो चुकी है।
जैन-मन्दिर-मूर्तियोंकी सूची और किसी तस्वका नई शैलीबीरसेवामन्दिर ट्रस्टके वर्तमान ट्रस्टियों एवं पदाधि- मे विवेचन या रहस्यादि तैयार कराकर प्रकाशित करना। कारियोंके नाम इस प्रकार है:
(घ) उपयोगी प्राचीन जैनग्रन्थों तथा महत्वके १.बाबू बोटेखानजी कलकत्ता (प्रधान), २. बाबू नवीन ग्रन्थों एवं लेखांका भी विभिन्न देशी-विदेशी भाषाओं जयभगवानजी एडवोकेट पानीपत (मंत्री), ३. ला० कपूर- में नई शैलीसे अनुवाद तथा सम्पादन कराकर अथवा चन्दजी कानपुर (कोषाध्यक्ष), ४. जुगलकिशोर मुख्तार मल रूपमें ही प्रकाशन करना। प्रशस्तियों और शिला-लेखों सरसावा (अधिष्ठाता), १.ला. राजकृष्णजी जेन देहली प्रादिके संग्रहभी पृथक रूपसे सानुवाद तथा विना अनुवाद (व्यवस्थापक), ६. ला जुगलकिशोरजी कागजी देहली, के ही प्रकाशित करना। ७. ना. जिनेन्द्रकिशोरजी जौहरी देहली, ८, सेठ छदामी
(क) जन-संस्कृतिके प्रचार और पब्लिकके प्राचारलालजी फीरोजाबाद, .. बाबू नेमचन्दजी वकील महारन
विचारको ऊंचा उठानेके लिये योग्य व्यवस्था करना । वर्तपुर, १. डा० श्रीचन्द्रजी संगल एटा, ११. श्री. जयवंती
मानमें प्रकाशित 'अनेकान्त' पत्रको चालू रखकर उसे और जी नानौता, १२. ला. नत्थूमलजी बरनावा।
उन्नत तथा लोकप्रिय बनाना । माथ ही, मार्वजनिक उपवीरसेवामन्दिरके उद्देश्य और ध्येय
योगके पैम्फलेट व ट्रैक्ट (लघु-पत्र-पुस्तिकाएं.) प्रकाशित दृस्टके अनुसार वीरसेवामन्दिरके उद्देश्य और ध्येय करना और प्रचारक घुमाना। ( Aims and objects) निम्न प्रकार हैं, जो मब (च) जन-साहित्य, इतिहास और संस्कृतिकी सेवा जैनधर्म और तदाम्नायकी उमति एवं पुष्टिके द्वारा लोककी तथा तरसम्बन्धी अनसंधान व नई पद्धतिमे ग्रन्थनिर्माणके सच्ची सेवाके निमित्त निर्धारित किये गये हैं
यह
कामों में दिलचस्पी पैदा करने और यथावश्यकता शिक्षण (क) जैन संस्कृति और उसके साहित्य तथा इतिहास- (ट्रेनिंग) दिलाने के लिये योग्य विद्वानांको कालशिप से सम्बन्ध रखने वाले विभिन्न ग्रन्थों, शिला-लेम्वों, प्रश- (वृत्तियां बजीफे देना। स्तियों, उल्लेग्व-चालयों, सिको, मृर्तियां, स्थापत्य व चित्रकलाके ममूनों आदि सामग्रीका लायब्ररी व म्यूजियम
(छ) योग्य विद्वानोंको उनकी साहित्यिक सेवाओं नथा
इतिहासादि-विषयक विशिष्ट म्बोजोंके लिये पुरस्कार या (Library and Musium) मादिके रूपमे अच्छा संग्रह करना और दूसरे ग्रन्थोंकी भी ऐसी लायब्ररी प्रस्तुत
उपहार देना । और जो मज्जन निःस्वार्थभावसे अपनेको
जैनधर्म तथा समाजकी मेवाके लिये अर्पण कर देखें उनके करना जो धर्मादि विषयक खोजके कामोंमें अच्छी मदद दे सके।
- भोजनादि-स्वर्च में सहायता पहुंचाना। (ख) उक्त सामग्री परसे अनुसंधान-कार्य चलाना और (ज) 'कर्मयोगी जैनमण्डल' अथवा 'वीर ममन्तभद्रउसके द्वारा लुप्तप्राय प्राचीन जैन साहित्य, इतिहास व गुरुकुल' की स्थापना करके उसे चलाना। तत्वज्ञानका पता लगामा और जैनसंस्कृतिको उसके वीरसेवामन्दिरके अबतकके कार्य असली तथा मूलरूपमें खोज निकालना।
अपने इस बाल्यकालमें वीरसेवामन्दिरने कितने मेवा (ग) अनुसंधान व खोजके आधार पर नये मौलिक कार्य किये, कितने माहित्यकी सृष्टि की, कितनी विचारसाहित्यका निर्माण कराना और लोक-हितकी दृष्टिसे उसे जागृति उत्पल की, कितनी नई खोजें साहित्यादि-विषयोंकी प्रकाशित कराना; जैसे जैन-संस्कृतिका इतिहास, जैनधर्म- सामने रखी और कितनी उलझने सुलझाई, इन सबका का इतिहास, जैन-साहित्यका इतिहास, भगवान महावीर- विस्तृत अथवा पूर्ण परिचय तो किसी बड़ी रिपोर्टका का इतिहास, प्रधान-प्रधान जैनाचार्योंका इतिहास, जाति- विषय है। यहां संक्षेपमें उन लोगोंकी जानकारीके लिये गोत्रोंका इतिहास, ऐतिहासिक जैनब्यक्तिकोष, जैनलपवा- कुछ थोडासा परिचय दिया जाता है जो वीरसेवामन्दिर