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________________ किरण ११) वीरसेवामन्दिरका संक्षिप्त परिचय [३८१ भारतमें एक कोनेसे दूसरे कोने तक रहा है। प्राज भी एक ऐसी साधु-संस्थाका निर्माण किया, जिसकी मिति पर्णगुजरात, मथुरा, राजस्थान, बिहार, बंगाल, उड़ीसा, अहिंसा पर निर्धारित थी। उनका 'अहिंसा परमो धर्मः' दक्षिण, मैसूर और दक्षिण भारत इसके प्रचारके केन्द्र हैं। का सिद्धान्त सारे संसारमें २५०० वर्षों तक अग्निकी तरह इस धर्मके साधु और विद्वानोंने इस धर्मको समुज्ज्वल किया व्याप्त हो गया । अन्तमें इसने नवभारतके पिता महात्मा और जैन व्यापारियोंने भारत में सर्वत्र सहस्रों मन्दिर बन- गांधीको अपनी ओर आकर्षित किया। यह कहना अतिवाये, जो आज भारतकी धार्मिक पुरातत्वकलाकी अनुपम शयोक्तिपूर्ण नहीं कि अहिंसाके सिद्धांत पर ही महात्मा शोभा हैं। गांधीने नवीन भारतका निर्माण किया है ।* ------- ----- - - - - ----- --- --- ---- भगवान् महावीर और उनसे पूर्वके तीर्थंकरोंने बुद्धकी 8. इस लेखके लेग्वक पुरातत्वविभाग दिल्लीके डिप्टीतरह बताया कि मोक्षका मार्ग कोरे क्रियाकाण्डमें नहीं है, डाइरेक्टर जनरल है। उनके हालमें १५ जनवरी बल्कि वह प्रेम और विवेक पर निर्धारित है। महावीर १९५३ को लिखे गये एक अंग्रजी भूमिका-लेख और बुद्धका अवतार एक ऐसे समयमें हुआ है जब भारतमें भारी राजनैतिक उथल-पुथल हो रही थी। महावीरने (Preface) परसे अनुवादित । वीरसेवामन्दिरका संक्षिप्त परिचय 'वीरसेवामन्दि' जैन-साहित्य इतिहास और तत्त्वविष- उद्घाटनकी रस्मके बादसे इस पाश्रममें पब्लिक यक शोध-खोजके लिए सुप्रसिद्ध जैन-समाजकी एक खास लायब्ररी, कन्याविद्यालय, धर्मार्थ अषधालय, अनुसन्धान अन्वेषिका संस्था (रिसर्च इन्स्टिट्यूट) है, जिसका प्रधान (Research), अनुवाद, सम्पादन, प्राची-ग्रंथसंग्रह, लक्ष्य लोक-सेवा है। ग्रंथनिर्माण, ग्रंथप्रकाशन और 'अनेकान्त' पत्रका प्रकाशसंस्थाकी स्थापना और ट्रस्टकी योजना नादि जैसे लोक-सेवाके काम होते आये है-कन्याविद्यालोक-सेवाके अनेक सदुद्देश्योको लेकर स्थापित इस लय और औषधालयको छोड़कर शेष कार्य इस वक्त भी संस्थाका संस्थापक है इन पंक्तियांका लेखक जुगलकिशोर बराबर हो रहे हैं। अनेक विद्वान् एवं पंडित तथा दूसरे मुख्तार (युगवीर), जिसने अपनी जन्मभूमि सरसावा । सज्जन इसके कामों में लगे हैं और संस्थापकतो, ७५ वर्षकी (जिला सहारनपुर) में प्रांड ट्रंक रोड़ पर, निजी वर्चसे इस वृद्धावस्थामें भी, बिना किसीकी प्रेरणाके दिन-रात विशाल बिल्डिंगका निर्माण कराकर उसमें वैशास्त्र सुदि सेवाकार्य किया करता है। तीज (अक्षयतृतीया) सम्बत् ११३ ता. २४ अप्रैल संस्थापकने सन् १९४२ में अपना 'वसीयतनामा' सन् १९३६ को इस संस्थाकी स्थापना की थी। संस्थाके लिखकर उसकी रजिस्टरी करा दी थी, जिसमें अपने द्वारा उद्घाटनकी रस्म बड़े उत्सवके साथ श्रीवीर भगवान्की संस्थापित 'वीरसेवामन्दिर' के संस्थापित 'वीरसेवामन्दिर' के लिये दूस्टकी भी एक रथयात्रा निकालकर ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी के द्वारा योजना की गई था। यह योजना उसक दहावसानक बाद सम्पन्न हुई थी और वीरसेवामन्दिरकी बिल्डिंग पर पहला ही कार्यमें परिणत होती । परन्तु उसने उचित समझकर मंडा बाबू सुमेरचन्द्र जी जैन एडवोकेट सहारनपुरने लह- अब अपने जीवनमें ही 'वीरसेवामन्दिर ट्रस्ट' की स्थापना राया था, जिनके विशेष परामर्शसे संस्थाकी अन्यत्र करके उसे पब्लिक ट्रस्टका रूप दे दिया है। ट्रस्टकी रजिस्थापना न करके उसे सरसावामें ही स्थापित किया गया स्टरी ता. २ मई सन् १९५० को करा दी है और अपनी था । संस्थाके इस जन्मके पीछे संस्थापकका लोकहितकी सम्पत्ति ट्रस्टियोंके सुपुर्द कर दी है। उसके दूस्टनामा दृष्टिको लेकर वर्षोंका गहरा अनुचिन्तन एवं सेवाभाव (Deed of Trust) की, जिसे उसने स्वयं अपने हाथलगा हुश्रा है। से हिन्दी भाषा तथा देवनागरी लिपिमें लिखा है, पूरी
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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