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________________ किरण १ सबका उदय है कि उन्होंने जिस तरह उदय और अस्त समझा था वही सम्बन्ध तोड़ले तो नतीजा यह होगा कि बल्ब तुरन्त बुझ ठीक था। अब बताइये उदय और अस्त क्या रह गया? ही जायगा । बैटरी भी अपनी मौत अपनेआप मर जायगी। लारी और बस चलानेवाले जब मोटर हांकना सिखानेके हमारा उदय और अस्त इस बातमें नही है कि दूसरे लिए मोटर हांकनेके स्कूलका उदय करते है तब आप बता उसका फैसला करें। क्या हमारे पढ़नेवालोंको यह नहीं मालूम सकते है किसका अस्त करते है? वह उन बड़ी-बड़ी तनखाहों- कि जिन तारोंको वह सबसे छोटा समझे हुए है उनमेंसे कई का अस्त करते है जो मोटर हांकनेवाले मांगा करते है। इतने बड़े है कि उनमें हमारे कई सूरज समा सकते है। हमारे हांकनेवाले बहुत हो जायेंगे, भाव सस्त हो जायगा। कुछ तुच्छ समझनेसे वह तारे तुच्छ नहीं हो सकते। इसलिए बेकार रह कर जुते चटखातें फिरेगे। कैसा अच्छा उदय हुआ। मर्वोदयके मैदानमें कूदनेसे पहले हमें अपनी नजर ठीक कामर्स कालेजों यानी अर्थ-वाणिज्य महाविद्यालयोंने करनी होगी, तभी हम दुनियाका भला कर सकेंगे। उदय होकर और हजारों बी. काम यानी बेकाम पैदा करके एक बार हमने कुछ पद्य लिख डाले थे । वह मौकेके है उन जवान लडकोका अर्थ-सूर्य अस्त कर दिया है । पर उधर व्यापारियोंका मुनीम-सूर्य खूब तेजीसे चमक उठा है और तरक्की है इसमे कि मशहूर हों हम, व्यापारी जो अबसे पहले बिजली और लकडीपर खर्च करके या इसमे कि शोहरतसे ही दूर हों हम? घाटा उठा रहे थे अब इस मुनीम-सूरजकी धूपसे खूब फायदा तरक्की है इसमें कि जरदार हो हम, उठाने लगेंगे। या ज़रसे हुए दस्त-बरदार हों हम ? हम अपनी तरह सोचकर सर्वोदयपर एक किताब लिख तरक्की है ये हो निरी हुक्मरानी, सकते है, पर उसकी जरूरत नही। हमारे पढ़नेवाले इस या असली तरक्की है खिदमतजहानी ? तरहके उदाहरण अपने पास सोचकर अपनी-अपनी किताब तरक्की है ये मुझसे डरती हो दुनिया, तैयार कर सकते है । हम तो सिर्फ यह कहना चाहते है कि मोहब्बतसे या मुझपे मरती हो दुनिया ? सर्वोदयका काम उन आदमियोको अपने हाथमें नहीं लेना तरक्की है ये सबको काबूमें लाऊँ, या ये पूरा काबू मै अपने 4 पाऊँ ? चाहिए जिन्होने प्रकृतिको अच्छी तरह न पढ लिया हो, और जो सिरसे पैर तक सबकी-भलाईको इच्छामें न हब बना बल्ब क्या मै अंधेरेको मेटे, चुके हो। और जब ऐसे आदमी इस काममे लगेगे तो उदय या बन बैटरी एक कोनेमें लेट् ? तसल्ली मिलेगी मुझे बीज बनकर, अस्तका सवाल न रह जायगा। फिर सबका उदय इस जमीसे उग मै या खुदको दफन कर ? बातमें रह जायगा कि हम यह समझे कि हम क्या है ? तरक्की है इसमें कि जो हो लुटाऊँ, हमारा रिश्ता और आदमियोंके साय क्या है ? देशोके साथ या जो चाहता हूँ उसे मै जुटाऊँ ? क्या है ? और दूसरे प्राणियोके साथ क्या है ? मुझे बाद मरनेके है याद करके, सर्वोदयके लिए सबको अस्त होनेकी जरूरत है। अब ये क्या सच नही वक्त बरबाद करते? जो-जो अस्त होनेके लिए तैयार है वही उदयका काम कर मैं क्या कर गया, लड़ रहे जिसको लेकर, सकता है। गिरेहुएको उठानके लिए झुकना पड़ता है, मेरा शब्द है अड़ रहे जिसको लेकर । अपनेआपको मिट्टी में लथेड़ना पड़ता है, उसके बिना उठानेका तरक्की है छोडूं हजारो हवेली काम नही हो सकता । बल्बको चमकानेके लिए बैटरी अगर या ईश्वरके भजनोंकी पोथी अकेली ? अंधेरे बक्समें बन्द होनेसे घबराये तो काम कैसे चले ? तरक्की है इसमें कि अपनेको जाने, बैटरीका उदय इसीमें है कि वह अन्धेरेमें बैठे । अगर बैटरी या अपनेको ज्ञानी, जगत खान मानूं ? किसी उपदेशककी बातोंमें आकर अपने उदयमें अपना अस्त आप भले बनिये, औरोंकी भलाई आप हो जायगी। समझने लगे और वह हवामें आना चाहे और बल्बसे अपना उदय-अस्तके चक्करमें पड़नेसे क्या लाभ !
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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