________________
अनेकान्त
वर्ष ११
और अमरीकामें सूरज डूबनेसे अमरीका वालोंको बाहर घंटे का चैन मिल जाता है, जिस चैनके लिये बारह घंटेके बाद हिन्दुस्तान तड़फ उठेगा। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे ऊपर जब सूरजरूपी बल्ब चमकता है तो इसके पीछे वह चैनसे पड़ी हुई अमरीकाकी जनताकी ताकत होती है जो सूरजको चमकानेका काम करती रहती हैं ? यह किसको नही मालूम कि बल्ब जब बुझ जाता है तब उस बैटरीकी ताकत आराम पाती है जिससे वह बल्ब चमक रहा था, बल्के चमकनेमें बैटरीका नाश है और बल्बके बुझनेमें बैटरीकी उमर बढ़ती है |
३६
दिनोंके राजनीतिके पंडितोंके लिए बिलकुल ऐसा मालूम हुआ होगा कि महावीर और बुद्धके साधु हो जानेसे राजनीतिका सूर्य अस्त हो गया। दोनों ही राजनीतिके सूरजकी तरह राजनीतिकी दुनियापर उदय होनेवाले थे कि घर छोड़कर चल दिये ।
राजनीतिके पंडितोंकी तरह दोनोंके घरवालोंकी नज़रमें भी ऐसा मालूम हुआ होगा मानो उनके भाग्यका सूरज अस्त हो गया ।
इधर नांगोमें ऐसे ही शोर मच उठा होगा जिस तरह सूरज निकलनेपर पक्षी चहचहाने लगते है और गाय रम्भाने लगती है । नांगोंको सचमुच कितनी खुशी हुई होगी कि उन्हें अपना साथ देनेके लिए राजाओके लड़के मिल रहे है । उसको वह अपना उदय और राजपुत्रोंका उदय समझते होंगे।
बहुत दूर जानेकी जरूरत नही। गांधीजीने जब अपने सोनेका बिल्ला सरकारको वापस भेजा होगा तब कांग्रेसकी
राजनीतिका सूरज उदय हुआ होगा और सरकारकी वफादारीका सूरज अस्त हुआ होगा। अब यह समझमें नहीं आता कि इसमे गाधीजीका क्या उदय अस्त हुआ । गाधीजीका तो उदय ही बना रहा। जब वह अंग्रेजोमे चमकते थे, अब हिन्दुस्तानियोमें चमकने लगे । जिस तरह महावीर और बुद्ध पहले राजाओंमें चमकते थे, त्यागी बनकर साधुओंमें चमकने लगे । उनका तो हमेशा उदय ही रहा ।
क्या अब यह साफ नही हो गया कि प्रकृति हरदम हर आदमीका उदय कर रही है और इस उदयमें अगर कोई बाधा डाल रहा है तो आदमीकी अधूरी समझ ।
बिजलीका बल्ब जल रहा है। सब उससे फायदा उठा रहे है, सब उसकी तारीफ करते है, सब उसके गीत गाते है । और शायद यही समझते है कि बल्बका खूब उदय हो रहा और उस वक्त अगर उस बल्बसे लाभ उठानेवाले एक-दूसरेको असीस दे बैठें तो यही कहेंगे कि तुम दुनियामें बल्बकी तरह चमको, ऐसा तो कोई भी नही कहेगा कि बल्बकी तरह बुझो । अब भी ऐसी असीस देनेका रिवाज है कि तुम दुनियापर सूरजकी तरह चमको, कोई यह नहीं कहता कि तुम दुनिया में सूरजकी तरह डूबो । पर सोचना यह है कि अमरीका में सूरजके डूबे बिना हिन्दुस्तानमें सूरजका उदय नहीं हो सकता
चीनमें आज जनताका राज है और इस तरहका राज है जिसमें जनता, जनताके लिए, जनतापर राज कर रही है । इस राजमें एक बड़ी अनोखी बात हुई है। जितने साधुब्रह्मचारी थे, सबकी शादी करदी गई है और सबने खुशीसे शादी करली है । आज भी हर जगहके साधु शादीके लिए खुशीसे तैयार हो सकते है अगर समाज उनको वही आदर देनेके लिए तैयार हो जो उन्हें साधु-हैसियतसे मिल रहा है। गाधीजी मरते दम तक हर तरह गृहस्थी रहे क्योंकि उनके आदरमें कोई अन्तर नही आने पाया । चीनमें साधुओंके राजनीति में शामिल हो जानेसे राजकाजी मैदानमें अनेक सूर्य उदय हो गये और धर्मके कर्मकाण्डके मैदानमें अनेक सूरज अस्त हो गये । पर उन साधुओंका उदय अस्त कुछ नहीं हुआ । उनका तो हरदम उदय रहा। आदमीका उदय अगर वह ढंगसे रहे और दूसरे लोग उसके उदयके लिए बेमतलब - की कोशिश न करे, हरदम होता रहता है।
हिन्दुस्तानपर जब अग्रेजोका राज था तब खूब कालेज और स्कूल खुले हुए थे, और हिन्दुस्तानी मां-बाप अपने लड़कोंको इन स्कूल और कालेजोंमें भेजकर यही समझते थे कि वह अपने लड़कोंका उदय कर रहे है। सन् '२१ में गांधीजीने उन्ही मां-बापको समझाया कि वह तो अपने लड़कोंका अस्त कर रहे हैं । उदय इसमें है कि वह कालेज और स्कूलोंको छोड़ें, बर्तन मानें, कपड़े धोयें, गांव गांवमें घूमें, चरखा कातें, कपड़ा बुनें इत्यादि। बहुत लोगोंको यह बात पसन्द आई। कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने चरखा कातनेमें अपने लड़कोंका अस्त समझा और पढ़ते रहने में उदय । आज दोनों तरहके मां-बाप मिल सकते है जो पक्का सबूत देकर यह साबित कर सकते