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________________ किरण १०] सग्रहात जन इतिहासका आवश्यकता । ३६७ - - आचार्य श्री नमिसागरजी प्रसिद्ध तपस्वी प्राचर्य श्री नमिसागारजी हिसारके चतुर्मासके बाद ७० वर्षकी इस वृद्धावस्था विहार करते और शीतादिकी अनेक परीषहोंको समभावस्ने सहन करते हुए, भारतकी राजधानी देहली में पुनः पधारे हैं। ॐॐॐॐ संग्रहीत जैन इतिहासकी आवश्यकता जैन पुरातत्वके स्कॉलरोंके लिए एक ऐसी पुस्तककी रहता है। अब प्रायः सभी उल्लेग्वनीय महापुरुषां और श्रावश्यकता है कि जिसमें समय-क्रमसे जैनधर्म और उनकी कृतियोंका समय प्रायः निर्णीत होचुका है, एतएव संस्कृतिका प्रमाणिक इतिहास हो । ऐतिहासिक अन्वेषण ईसा पूर्वके उस समयसे, जबसे कि जैन इतिहास पर प्रामाका कार्य यद्यपि कई कारणोंसे अभी तक अधूरा ही है, णिक प्रकाश पड सका है, ई०सन १७५० तकका इतिहास फिर भी जितना कुछ हो चुका है वह अनेक साप्ताहिक, अब तक की प्रकाशित सामग्रीके ऊपरसे संकलित करके पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक प्रादि पत्रोंमें अथवा ग्रन्थोंकी समय या शताद्वी-क्रमके अनुसार शीघ्र प्रकाशित होनेकी भूमिका आदिमें समय-समय पर खंड रूपसे प्रकाशित योजना होनी चाहिए । विषयक्रमकी सूची अन्तमें रहे। हुअा है और बादकी शोध खोजके कारण वह भी संभव साथ ही, जैन पुरातत्वके जानकार विद्वान और अन्वेहै कि किसी-किसी विषयमें विद्वान अपना मत बदल चुके षक महानुभावोंको कृपया यह बता देना चाहिए कि एपिमा हों। किसी विद्यार्थकि लिये खंड-खंड सामग्रीका जुटाना फिका इंडिका, गजेटियर, भ्रमणावृत्तान्त, जनरल आदि और उसको विषय-क्रमसे अथवा समय-क्रमसे अध्ययन आदरभूत सामग्रीका किस जिल्द, अंक या समय तकका करना अत्यन्त कठिन होता है। पत्रों में से कुछ लेख पाठ वे कर चुके हैं। उससे भिन्न या भागेका पाठ करके पुस्तक रूपमें प्रकाशित हुए हैं वे भी समय क्रमसे नहीं हैं विचारणीय विषय प्रस्तुत करने में विद्यार्थीगणोंका परिश्रम तथा बादकी शोध-खोजका परिणाम उन परसे भी अज्ञात लाभप्रद हो सकेन । -एन. सी. बाकलीवाल
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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