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________________ किरमा १०] समन्वमद्र-बचनामृत [३४५ अपेक्षा रखकर किया गया सेवा-कार्य बापत्यमें परि- है। प्रतिग्रहण, २ उच्चस्थापन, . पादप्रमाखन, . मक्षित नहीं होगा। पर्चन, ५ प्रणाम, मनःशुदि, . पचनशुद्धि, काययही पर तना और भी जान लेना चाहिये कि प्रन्थ- शुदि और एषन (भोजन) शुद्धिके नामसे सम्पन्न कारमहोदयने चतुर्य शिक्षाबतको मात्र 'अतिथिसंविभाग'- उल्लिखित मिखते हैं । के रूप में न रख कर जो उसे 'वैयावृत्य' का रूप दिया है दानके पात्रोंके विषयमें यह खास तौरसे उल्लेख किया वह अपना खास महत्व रखता है और उसमें कितनी ही गया है कि वे सूनाओं तथा प्रारम्भोंसे रहित होने चाहिये। ऐसी विशेषतामोंका समावेश हो जाता है जिनका ग्रहण- भारम्भोंमें सेवा, कृषि, वाणिज्यादि शामिल हैं. जैसा कि मात्र अतिषिसंविभाग नामके अन्तर्गत नहीं बनता; जैसा इसी ग्रन्थकी 'सेवा-कृषि-वाणिज्य-प्रमुखादारम्भतो युकिस विषयकी सरी लक्षणात्मिका कारिका (१२)से पारमति' इत्यादि कारिका नं०१४४ से प्रकट है। और प्रकट है, जिसमें दानके अतिरिक्त दूसरे सब प्रकारके उप- 'सूना' वधके स्थानों-ठिकानोंका नाम है और वे खंगिनी ग्रह-उपकारादिको समाविष्ट किया गया है और इसीसे (ोखली), पेषिणी (चक्की), बुल्ली (चौका पल्हा). उसमें देवाधिदेवके उस पूजनका भी समावेश हो जाता है उदकुभी (जलघटी) तथा प्रमार्जनी (बोहारिका)के मामसे जो कानके कथनानन्तर इस प्रथमें आगे निर्दिष्ट हुअा है पांच प्रसिद्ध हैं + । इससे स्पष्ट है कि वे पात्र सेवा-कृषिऔर जो इस व्रतका 'अतिथिसंविभाग' नामकरण करने वाणिज्यादि कार्योंसे ही रहित न होने चाहियें बल्कि वाले दूसरे ग्रन्थोंमें नहीं पाया जाता। अोखली, चक्की, चूल्ही, पानी भर कर रखना तथा बुहारी नवपुण्यः प्रतिपत्तिः सप्तगुण-समाहितेन शुद्धन। । देने-जैसे कामोंको करनेवाले भी न होने चाहिये। ऐसे पात्र प्रायः मुनि तथा ग्यारहवीं प्रतिमाके धारक पुलक-ऐलक अपसूनारम्भाणामार्याणामिष्यते दानम् ॥११३॥ हो सकते हैं। (दातारके) सतगुणोंसे युक्त तथा (बाह्य) शुद्धिसे गृहकर्मणापि निचितं कर्मविमार्टि खलुगृहविमुक्तानाम् सम्पन्न गृहस्थके द्वारा नवपुण्यों-पुण्यकारणों के साथ जो अतिथीनां प्रतिपूजा रुधिरमलं धावते वारि ॥११४ सुनाओं तथा प्रारम्भोंसे रहित साधुजनोंकी प्रतिपत्ति है- 'जैसे जल रुधिरको धो डालता है वैसे ही गृहउनके प्रति आदर-सरकार-पूर्वक माहारादिके विनियोगका त्यागी अतिथियों ( साधुजनों)की दानादिरूपसे की व्यवहार है-वह दान माना जाता है। हुई पूजा-भक्ति भी घर के पंचसूनादि सावध-कार्योंके ख्यिा-जिस दानको १११वीं कारिकामे वयावृश्य द्वारा संचित एवं पुष्ट हुए पापकर्मको निश्चयसे दूर बतलाया है उसके स्वामी, साधनों तथा पात्रोंका इस कर देती कारिकामें कुछ विशेष रूपसे निर्देश किया है। दानके व्याख्या-यहाँ 'गृहविमुक्कानां अतिथीना' पोंके स्वामी दातारके विषयमें लिखा है कि वह सप्तगुणोंसे युक्त द्वारा वे ही गृहत्यागी साधुजन विवक्षित है जो पिछली होना चाहिए । दातारके सात गुण श्रद्धा, तुष्टि, भक्ति, कारिकाभोंके अनुसार 'तपोधन' है-तपस्वीके उस बक्षणविज्ञानता, अलुब्धता, समा और शक्ति हैं, ऐसा दूसरे से युक्त है जिसे १० वीं कारिकामें निर्दिश किया गया है, प्रन्थोंसे जाना जाता है। इन गुणोंसे दातारकी अन्तः- 'गुणनिधि' है-सम्यग्दर्शनादि गुणोंकी खान है-संयमी हैशुद्धि होती है और इसलिये दूसरे 'शुद्धन' पदसे बाहा- इन्द्रियसंयम-प्राणिसंयमसे सम्पत एवं कषायोंका दमन शुद्धिका अभिप्राय है, जो हस्तपादादितथा वस्त्रादिकी शुद्धि : x पडिगहणमुच्चठाणं पादोदकमच्चणं च पणमं च । जान पड़ती है। दानके साधनों-विधिविधानोंके रूपमें जिन नव पुण्योंका-पुण्योपार्जनके हेतुओंका-यहाँ उल्लेख मणवयणकायसुद्धी एसणसुद्धीमणवविहं पुण्णं ॥ -कामें प्रभाचन्द्र-वारा उस्त बा तुष्टिभक्तिर्विज्ञाममलुब्धता पमा शक्तिः। + खंडनी पेषणी चुल्ली उदकुम्भी प्रार्जनी । पस्यै समगुणास्तं दातारं प्रशंसन्ति । पंचसूना गृहस्थस्य तेन मोक्षं न गच्छति ।। -टीकामें प्रभाचन्द्र-वारा उद्धत -टीकामें प्रभाचन्द्र-धारा उधत
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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