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________________ किरण] साहित्य परिचय और समालोचन 1३३५ विशुद्धिकी हो है। कविका अन्तिम लक्ष्य प्रात्म-स्वतंत्रताकी प्रस्तुत प्रन्थ पुबाटसंघीय प्राचार्य हरिषेयके 'संस्कृतप्राप्ति है जिसका उन्होंने विवेचन करते हुए अपनी तास्विक- कथाकोश' की कथाओंका हिन्दी अनुवाद है। इस संस्कबुद्धिका परिचय दिया है। रणमें १२ कथाएँ दी हुई हैं। ये कथाएँ जैन धर्मका पालन प्रस्तुत ग्रंथका अनुवाद स्पष्ट और वस्तु तत्त्व का विवे- अथवा व्रतोंका अनुहान कर, फल प्राप्त करने वाले व्यक्तियों चक है, और वह अपने पिछले संस्करणों में होने वाली के परिचयको लिये हुए हैं। कथाभोंका विषय रोचक है। भशुबियोंसे रहित है। सम्पादकजीने इस पर काफी अन्य बहुत उपयोगी है। परिश्रम किया है और उसे सब प्रकारसे प्रामाणिक एवं ३ बृहत्कथाकोश भाग २ अनुवादक पं. राजकुमारजी रुचिकर बनानेका प्रयत्न किया है। अनुवादकी भाषा भी जैन साहित्याचार्य प्रकाशक, भा० दि. जैन संघ, चौरासी परिमार्जित और सरल है। इतना ही नहीं, किंतु प्रथकी मथुरा । पृष्ठ संख्या २६२, मूल्य पजिल्द प्रतिका २॥) १२ पृष्ठोकी महत्वपूर्ण प्रस्तावनामें सम्पादकजीने ग्रंथगत रुपया। विषयोंकी चर्चा करते हुए उसके विषयको स्पष्ट करनेका इस भागमें भी उक्त कथाकोशकी १८ कथाओंका प्रयत्न किया है। और प्रान्मस्वतंत्रताके अंतिम लक्ष्यका अनुवाद दिया गया है। ये पौराणिक कथाऐं जैनधर्म मोक्षपुरुषार्थके प्रधान माधक चारिग्रके सम्बन्धमें भी अपने और जैन संस्कृतिकी महत्तासे सम्बन्ध रखती हैं । कथाएँ विचार व्यक्ति किये है। प्रस्तावनामें निश्चयनय व्यवहार और मन्दा। नयका खुलाशा करते हुए प्राचार्य कुदकुदके प्रवचनसारके ज्ञेय अधिकारके कथनके साथ प्रस्तुत कविके मंतव्योंकी सर्वोदय यात्रा-लेखक, प्राचार्य विनोवाभावे । तुलनाभी की है। प्रकाशक, भारत जैन महामंडन, वर्धा सी० पी० पृष्ठ साथ ही लाटी महिनाक ममान ही ग्रंथके बनने में सध्या २४० । मूल्य सवा रुपया। निमित्त भूत साहू फामनकी इम पंचाध्यायी ग्रंथके निर्मा- प्रस्तुत पुस्तक हैदराबादके सर्वोदय सम्मेलनमें पैदल णमे भी प्रेरक निमत्त होनेका अनुमान किया है, जो ग्रंथ यात्रासे चलते हुये विनावाजीने जो जगह २ भाषण दिये, वाक्योको देखते हुए ठीक ही जान पड़ता है। माम्प्रदा और वहांके लोगोंकी जो परिस्थतियाँ देवी, उन्हीं सबका यिकताके प्रभावके साथ द्रव्य क्षेत्र काल भावका प्रभाव भी वर्णन इस पुस्तकमें किया गया है। पुस्तककी भाषा मरन ग्रंथकार पर पड़ा है। इस तरह प्रथका यह संस्करण है। यद्यपि 'सर्वोदय' तीर्थ शब्दका प्रयोग करने वाले स्वाध्याय प्रेमियोंके लिए बहुत ही उपयोगी और संग्रहणीय प्राचार्य ममस्त भद्र है, जो विक्रमकी दूसरी शताब्दीके है। पाशा है स्वध्याय प्रेमी हम प्रश्रको मंगाकर अपनी जान तेजस्वी प्राचार्य थे। परंतु गांधीजी द्वारा प्रयुक्त 'सर्वोवृद्धि में महायक होंगे। दय' की महत्ता प्रदान करनेके लिए प्राचार्य विनोबा २ वृहत्कथाकोश-भाग १ अनुवादक, पं० राजकुमार भावेका यह प्रयत्न अभिनंदनीय है। इस पुस्तकमें यात्रा जी जैन साहित्याचार्य प्रकाशक, भा. दि. जैन संघ, करते समय विवपचर्चाओं पर विचार किया गया है। चौरासी मथुरा । पृ संख्या २३६ मूल्द सजिल्द प्रतिका पुर पुस्तक उपयोगी है। २॥) रुपया। परमानन्दजी जैन शास्त्री
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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