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[किरण महाकवि रइधू
[३२७ साह नेमीदासकी प्रेरणा एवं अनुरोधसे हुअा है, इमीस कथा भाग बड़ा ही सुन्दर और चित्ताकर्षक है ओर भाषा कविवरने नेमीदामका और उनके कुदम्बका विस्तृत परिचय भी मरल तथा सुबोध है। अन्यका यह कथाभाग दश दिया है। श्राद्यन्त प्रशस्तिमें साह नेमीदास जोइणिपुर संधियोंमें समाप्त हुआ है जिसकी आनुमानिक श्लोक संख्या (दिल्ली) निवासी साह तामउके चार पुत्रांम से प्रथम थे। दो हजार दो सौ बतलाई गई है। यद्यपि श्रीपानके जीवन कविवरके प्रशस्ति गत कथनसं माहू नमीदासकी धार्मिकता, परिचय और मिद्धचक्रवतके महलको चित्रित करने वाले उदारता और सुजनतादिका महज ही आभास होजाता है, संस्कृत, हिदी और गुजराती भाषामं अनेक ग्रंथ विद्यमान और उनके द्वारा श्रगनित मनियों के निर्माण कराय जान है परन्त अपभ्रंश भाषाका यह दमरा ही ग्रंश है। प्रथम तथा मंदिर एवं प्रतिष्ठा महोत्सव आदि किये जानेका परि- गथ पंडित नरमनका है। चय भी मिल जाता है, नेभिदाम चंदवाड़के राजा प्रताप
१. वृत्तमार-यह कविवरकी सैद्धांतिक कृति है। रुद्रस सम्मानिन थे, जो चौहान वंशी गजा रामचन्द्रक,
इस गन्थमे सम्यक चरित्रकी प्रधानतामे कथन किया गया जिनका राज्य वि० सं० १४६८ में विद्यमान था, पुत्र थे।
है। गन्ध छह अंकों अथवा अध्यायों में विभक्त है । जिनमें इनका विशेष परिचय फिर कभी कराया जावेगा। १. मम्मइजिनचरित -इसमें जैनियाक अंतिम तीर्थ
सम्यग्दर्शन, गुणस्थान, कर्म, अनुग्रंक्षा, धर्म और ध्यानरूप
छह प्रमेयांका विवंचन किया गया है। कुछ 'उकच कर भगवान महावीर या वर्धमानका जीवन परिचय दिया
पांको छोड कर मूल ग्रन्थकी गाथा मंग्या पाठसी हा है । यर्याप उसमें कवि अमग महावीरचरितमे कोई
मत्ताईस है, जिसकी आनुमानिक श्लोक संख्या विशेषता दृष्टिगोचर नहीं हुई कितु फिर भी अपभ्रंश भाषाका यह चग्नि ग्रंथ पद्धडिया
महमके एक
लगभग होगी । इस पंथकी आदि विविध छंदोम रचा गया है । कविवरकी रचना-शैली परल होनस चि.
रचना कविन अग्रवाल वंशी साहू हालुके सुपुत्र कर भी है । यह प्रथ दम संधियाम समाप्त हुआ है।
श्राद साहकी प्रेरणाम कीगई है, अतएव यह गन्थ उन्होंक
नामाकित किया गया है । कविवरको कथन शैली संक्षिप्त प्रस्तुन ग्रंथ हिमार निवासी अग्रवाल कुलावतंश गोयल
और माल है। ग्रन्थका अंतिम पत्र उपलब्ध न होनेस गोत्रीय माह सहजपालक पुत्र और संधाधिप महदेवक
यह ज्ञान नहीं हो सका कि प्रन्ध निर्माणमे प्रेरक माह लघु भ्राता माह नामउकी प्रेरणा एवं अनुराधर्म बनाया गया है। इस प्रथकी पाद्यन्न प्रम्तिमे माह तापक
श्राद कहांक निवासी थे। वंशका विस्तृत परिचय दिया हुआ है और उनके द्वारा १३ अगाथमीकथा-हम कथाम रात्रिभोजनके दोषी सम्पन्न होने वाले धार्मिक कार्योंका समुल्लख भी किया और उससे होने वाली व्याधियांफा उल्लेग्व करते हुए लिखा गया है । माथ ही बल्हा ब्रह्मचारी और ग्वालियम्म उनक है कि दो घडी दिनके रहने पर श्रावक लांग भोजन कर, द्वारा निर्मिन चंद्रप्रभु भगवानकी विशाल मूर्तिकाभी उल्लम्ब क्योकि मूर्यके नेज मंद होने पर हृदय कमल संकुचित हो किया है, जिनका परिचय प्रशस्तियांक महत्वपूर्ण नि- जाता है, अनः रात्रि भोजनके त्यागका विधान धार्मिक हासिक उल्लंम्ब' शीर्षकक नीचे कराया गया है । इस ग्रन्थ तथा शारीरिक स्वास्थ्यको दृष्टिमं किया गया है जैमा कि की श्राद्य प्रशस्तिम इससे पूर्व बने हुए कुछ ग्रन्थोंका भी उमक निम्न दा पोय प्रकट है:उल्लेग्व दिया हुआ है। जिनका नामोल्लंग्व 'रचनाकाल जि रोय दलहिय दीणप्रणाह, शीर्षकके नीचे किया गया है।
जि कुटु गलिय कर करण मवाह । १५ मिद्धचक्रविधि-इस ग्रन्थका नाम सिद्धचक्रविधि दुहागु जि पग्यिणु बग्गु अणेहु, (श्रीपाल चरित) है इस ग्रन्थमें श्रीपाल नामके राजा और
मुग्यहि भोयगु फलु जि मुणहु । उनके पांचमी साथियोंका सिद्धचक्रवत (अष्टान्हिका व्रत) के घड़ी दुइ वासरु थका जाम, प्रभावसं कुष्टरोग दूर होजाने आदिकी कथाका चित्रण
सुभोयण मावय भुजहि ताम । किया गया है। और सिद्धचक्रवनका महात्म्य ख्यापित दिवायरु तंउ जि मंदउ होइ, करते हुए उसके अनुष्ठानकी प्रेरणाकी गई है। प्रथका
मकुच्चा चित्तहु कमलु जि मोह ॥