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ब्रह्मचारीका उल्लेम्ब किया गया है और इस प्रथकी पाय- श्राद्यन्न प्रशस्तिमें इनके वंशका विस्तृत परिचय दिया रचनामे पूर्व कुछगयोंके रचे जानेका उल्लेख भी किया हुया है। ग्रन्यका कथा भाग भी सुन्दर है। इस ग्रन्थमें है । ग्रंथ प्रस्तिमें मानागिरिके भट्टारकीय पट्टका उल्लेख कविने अपने पूर्ववर्ती निम्न ग्रन्थकारोंका उल्लेख किया है और कमलकीर्तिके उम पट्ट पर शुभचंद्रके बैठने का भी है। कवि धीरमन, देवनन्दी (पूज्यपाद) जैनेन्द्र व्याकरण, ऐतिहासिक उल्लेख अंकित है जिम्मकी सूचना पूर्व की वज्रमेन और उनका षट दर्शनप्रमाण नामका न्याय ग्रन्थ, जा चुकी है।
रविषेण और उनका पद्मचरित, जिनमनका हरिवंश पुराण, पाचपुरागा - इस ग्रन्थमें जैनियोंके २३ व तीर्थ
मंघेश्वर चरित, (मुलोचना चरित) देवसेन, अनंगचरित कर भगवान पार्श्वनाथका जीवन परिचय अंकित है।
दिनकरमेन, महाकवि स्वयंभू , चतुर्मुख तथा पुष्पदन्त । यद्यपि भगवान पार्श्वनाथकं जीवन सम्बन्धमें प्राकृत,
प्रस्तुत ग्रन्थ ग्वालियरक नामरवंशी राजा डूंगरसिहके संस्कृत और अपभ्रंश भाषाम अनेक ग्रन्थ अनेक बिहानी
राज्यकालमें रचा गया है। द्वारा लिखे गये है, जो अपनी अपनी विशेषताको लिये
७ यशोधर चरित-इस ग्रन्थमें राजा और यशरोध हुए हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ मान संधियाम पूर्ण हश्रा है इस चन्द्रमतीका जीवन परिचय दिया हुआ है । ग्रन्थका कथाग्रन्थका निर्माण भी अग्रवाल वंशी माइपजणक सुपुत्र
नक मुन्दर तथा हृदयगाही है, और वह जीवदयाकी माहम्मेऊ या खेमचन्दके अनुराधम हुआ है। यह जोइणीपुर
पोषक वार्तायाम श्रान-त्रांत है । यद्यपि यशोधरके सम्बन्ध(दिल्ली) के निवासी थे । इनका गोत्र एंडिल था । बेम- म संस्कृत भाषाम अनक चरित-ग्रन्थ लिख गये हैं जिनम चन्दकी माताका नाम वील्हादची और धर्मपन्नीका नाम श्राचार्य मोमदवका 'यस्तिलक चम्पू' सबसे उच्च कोटिका धनदेवी था और उमस चार पुत्र उत्पन्न हुए थे, महमराज,
महा काव्य-ग्रन्थ है। परन्तु अपभ्रंश भाषाका यह दसरा ही पहराज, रघुपति और हीलिवम्म । इनमम माह संघाधिप
ग्रन्थ है । प्रथमथ महाकवि पुष्पदन्तका है । प्रस्तुत
चलाया था। ग्रन्थ चार मंधियांमे समाप्त हुश्रा है जिसमें १०४ कडवक साहू मत व्यमनसे रहित और देव-शास्त्र-गुरुके भन. थे।
न हैं और जिसकी पद्य संख्या आठमी श्लोक जिननी है। ग्रन्थ बन जाने पर माह बमचन्दने कविवर रइधका वस्त्रा
इस ग्रन्थकी रचना भट्टारक कमलकीर्तिक अनुरोधर्म तथा भूषण आदिमे खूब सरकार किया था। इस तरह ग्रन्थ
अग्रवालवंशी माहू कमलसिंहके पुत्र हेमराजकी प्रेरणा एवं प्रशस्तिमें खऊ साह के परिवारका विस्तृत परिचय कराया अनुगंध पर की गई है, अतएव यह प्रथ भी हेमराजके गया है । ग्रन्थकी पाय प्रशस्तिमे ग्वालियरका भी परिचय
नामांकित किया गया है । ग्रथकी अायत प्रशनिमें माहदिया हुया है। जिपमं वहाँकी उस समयकी परिस्थितिका कमलसिंहक कुटुम्बका विस्तृत परिचय कराया गया है। बहुत कुछ पता चल जाता है।
कवि रहधने इस प्रथको 'जोधा' साहके सुदर विहारमें ६ मेघश्वर-चरित-इम ग्रन्थमं भगवान आदिनाथ
बैठ कर बनाया है। और इस स्वयं कविने 'दयारम भर के सुपुध भरत चक्रवर्ती, जिनके नामसं इस देशका नाम
गुण पबित्त' वाक्य द्वारा-पवित्र दयागुणरूपी रमसे भारतवर्ष विश्रन हुअा है उनके प्रधान मनापति जयकमार भरपूर बतलाया है। का जिन्हें गंधेश्वर भी कहते थे, चरित वर्णन किया गया ८ धन्यकुमार चरित-इम गथमे धन्यकुमारका है। और समकालीन श्रीपाल चक्रवर्तीके हरण और निर्वाण जीवन परिचय दिया हुआ है। यह ग्रंथ भी चार संधियोंप्राप्तिका कथानक भी दिया हुया है। प्रस्तुत ग्रन्थमें में पूर्ण हुआ है और उसका प्रमाण १०० मा अनुष्टुप १३ मंधियों या परिच्छेद हैं जिनमें ०८४ कडवक हैं और श्लोकों जितना है। इस प्रथकी रचना प्रारीन जिला जिनकी आनुमानिक श्लोक संख्या तीन हजार कुछ ऊपर ग्वालियर निवासी जैसवाल वंशीय साह पुण्यपालके है । इस ग्रन्थकी रचना ग्वालियर वापी अग्रवाल वंशी साहू मुपुत्र साह भुल्लणकी प्रेरणा एवं अनुरोधमे हुई है। खेमचन्दकी प्रेरणा की गई है। ग्रन्थ की मंधियोंके अंतमें
पुण्याश्रवकथा-इस गूथमें पुण्यका आस्रव खेमचन्दकी प्रशंमा सूचक मंस्कृत पद्य भी दिए हुए हैं, करने वाली कथाांका संकलन किया गया है । ये कथाएँ जिनमें उनकी मंगल कामना की गई है। साथ ही अन्धकी बड़ी ही रोचक और शिक्षाप्रद हैं, इस ग्रन्थका निर्माण