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[किरण
महाकवि रइधू
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साहू नेमीदामकी प्रेरणा एवं अनुराधसे हुअा है. इमीस
एवं अनुराधस हुधा है. इसास कथा भाग बड़ा ही सुन्दर श्रार चित्ताकर्षक है और भाषा कविवरने नमीदामका और उनके कुदम्बका विस्तृत पारचय भी सरल तथा सुबोध है। प्रन्थका यह कथाभाग दश दिया है। प्रायन्त प्रशस्तिमें माहू नेमीदास जोइणिपुर संधियाम समाप्त हश्रा है जिसकी आनुमानिक श्लोक संख्या (दिल्ली) निवासी माह नामउके चार पुत्रांम से प्रथम थे। दो हजार दो सा बतलाई गई है । यद्यपि श्रीपालके जीवन कविवरक प्रशस्ति गत कथनमे माह नमीदामक्री धार्मिकता, परिचय और मिट्टचक्रवतके महत्वका चित्रित करने वाले उदारता और सजनतादिका महज ही अाभाम होजाता है, संका सिंदी और जगती मा
निशान और उनके द्वारा अगनित मूर्तियाक निमाण कराय जान ई.परन्त अवश भाषाका यह दमरा ही ग्रंथ है। प्रथम तथा मंदिर एवं प्रतिष्ठा महोत्सव आदि किये जानका परि
पार गय पंडिन नम्सनका है।। चय भी मिल जाता है, मिदास चंदवाडकं राजा प्रताप
१. वृत्तमार-यह कविवरकी सैद्धातिक कृति है। रुद्रमे सम्मानित थे. जी चौहान वंशी राजा रामचन्द्रक, जिनका राज्य वि. मं० १४६८ में विद्यमान था, पुत्र थे।
इस गन्थम सम्यक चरित्रकी प्रधानताये कथन किया गया
है। गन्ध छह अंकों अथवा अध्यायोंमें विभक्त है। जिनमें इनका विशेष परिचय फिर कभी कराया जायेगा।
सम्यग्दर्शन. गुगम्थान, कर्म, अनुप्रेक्षा, धर्म और ध्यानरूप १० मम्मइजिनचरित -इसमे जैनियोंके अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर या वर्धमानका जीवन परिचय दिया
छह प्रमेयांका विवंचन किया गया है। कुछ 'उन च इश्रा है । यद्यपि उसमें कवि अमग महावीरचरितम काई
पयोको छांट कर मूल ग्रन्थकी गाथा संख्या पाठमो विशेषता दृष्टिगोचर नहीं हुई किन फिर भी अपभ्रश
सत्ताईस है, जिसकी श्रानुमानिक श्लोक संख्या भाषाका यह चरित नथ पद्धडिया आदि विविध छंदाम
एक महमके लगभग होगी । इस ग्रंथकी रचा गया है । कविवरकी रचना-शैली माल होने काच
रचना कविन अग्रवाल वंशी माहू हालूके सुपुत्र कर भी है। यह ग्रंथ दम मंधियाम समाप्त हुआ है।
श्राद साहकी प्ररणाम कीगई है, अतएव यह गन्थ उन्होंक प्रस्तुत ग्रंथ हिसार निवासी अग्रवाल कुलाबनंश गोयल
नामाकित किया गया है । कविवरको कथन शैली संक्षिप्त
और माल है । ग्रन्थका अंतिम पत्र उपलब्ध न होने गात्रीय माह महजपालक पुत्र और संधाधिप महदेवक
यह ज्ञात नहीं हो सका कि अन्य निर्माणम प्रेरक माह लघु भ्राता साह नामउकी प्रेरणा एवं अनुराधर्म बनाया गया है । इस प्रथको आद्यन्त प्रम्तिम माहू नामक
प्राद कहांक निवासी थे। वंशका विस्तृत परिचय दिया हुआ है और उनके द्वारा
१३ अगथी कथा-इम कथाम गविभाजनके दोषी सम्पन्न होने वाले धार्मिक कार्योंका ममुल्लख भी किया और उपग होने वाली व्याधियांका उल्लेख करते हुए लिम्बा गया है। साथ ही बल्हा ब्रह्मचारी और ग्वालियरमं उनक है कि दो घडी दिनके रहने पर श्रावक लोग भोजन कर, द्वारा निर्मित चंद्रप्रभु भगवानकी विशाल मूनिकामी उन्लम्ब क्योंकि मृर्यके तेज मंद होने पर हृदय कमल मनित हो किया है, जिनका परिचय 'प्रशस्तियाक महत्वपूर्ण प्रति- जाता है, यतः गात्र भाजनक स्यागका विधान धार्मिक हामिक उल्लम्ब' शीर्षकके नीचे कराया गया है। इस ग्रन्थ तथा शारीरिक स्वास्थ्यको दृष्टिम किया गया है जैसा कि की प्राद्य प्रशस्तिमें इससे पूर्व बने हुए कुछ ग्रन्थाका भी उसके निम्न दा पद्योग प्रकट है:उल्लंब दिया हुआ है । जिनका नामोल्लेख 'रचनाकाल' जि राय दर्लाहय दीप्रणाह, . शीर्षकके नीचे किया गया है।
जि कुटु लिय कर करण मबाह । १५ सिद्धचक्रविधि-इस ग्रन्थका नाम मिद्धचक्रविधि दुहग्गु जि परियण वग्गु अणेहु, (श्रीपाल चरित) है इस ग्रन्थमं श्रीपाल नामके राजा और
मुरणिहि भायणु फलु जि मुणहु । उनके पांचसो माथियांका सिद्धचक्रवन (अष्टान्हिका वन)के घडी दुइ वासरु थक्का जाम, प्रभावसं कुष्टरोग दूर होजाने प्रादिकी कथाका चित्रण
मुभोयण मावय भुजहि नाम । किया गया है। और सिद्धचक्रवनका महाम्य ख्यापित दिवायक नेर जि मंनउ होड, करते हुए उसके अनुष्ठानकी प्रेरणाकी गई है। प्रयका
मकुच्चइ चित्तहु कमलु जि मोइ ।