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"मेकान्त
[ किरणह
रचना-काल
चउदहमय वाणव उत्तरालि, बरिसह गय विकमराय कालि । कविवर रहने अपनी कृतियों प्रायः ग्वालियरके वक्ग्वेयत्तु जि जिणवय-समक्खि, भव मार्माम्म स-मेयपक्वि तम्बर या तोमरवंशी राजा इंगरसिंह और उनके पुत्र पुण्णमिदिणि कुजवारे समोई, सुहया सुहणामें जणेडं । कीर्तिसिहके राज्यकाल में ही अग्रवाल आदि जातियोंके तिहुमासयरतिं पुण्णहउ; सम्मत्तगुणाहि णिहाण धूउ । स्थानीय तथा विभिन्न नगरीके निवामी श्रेष्टि-पुरुषांकी
मुकौशल चरितकी रचना इसमे चार वर्ष बाद विक्रम प्रेरणा एवं अनुरोधमे रची हैं। इमीमें ग्रन्थकर्ताने उन सवत १४६६ माघ कृष्णा दशमाका अनुराधा नजत्रम पूरा ग्रन्थ की प्रादि अन्त प्रशस्तियोंम ग्रंथनिर्माणमें प्रेरक भव्य गई है. जैसाकि उसके निम्न प्रशस्ति वाक्यमे स्पष्ट हैपुरुषोंके कुटुम्बादिका विस्तृत परिचय दिया है। जिसमे मिरि विक्कम समयंतरालि, वट्टतइ इंदु सम विसमकालि । उस समयके लोगोंकी परिणति, धार्मिक उत्साह और उदा- चउदहमय संक्च्छरइ अएण, छ एउ अहिपुणु जाय पुण्ण । रता आदिका कितना ही परिचय मिल जाता है। माथ ही माहदु जिकिराहदहमोदिण.म्म,अणुराहुरिक्वडियमम्मि उस समयकी अनेक धार्मिक घटनाओंका-मन्दिर, मृति- सम्मत्तगणनिधानमें फिमी ग्रंथके रचे जानेका कोई निर्माण तथा उनकी प्रतिष्ठा विधि-महोत्सव, तीर्थयात्रा उल्लेम्ब नहीं है हां, सुकौशलचरितमें पार्श्वनाथ पुराण, संघ गमन, और ग्रन्थ निर्माण एवं उनकी प्रतिलिपियाँ हरिवंश पुराण और बलभद्र चरित (पा पुराण) इन तीन कराकर दान देने आदिकी ऐतिहासिक घटनाओंका-समु- ग्रंथांका x नामोल्लेख किया गया है। जिसमें यह स्पष्ट ल्लेग्व भी उपलब्ध हो जाता है । कविने जिन जिन श्रेष्ठी है, कि उक्त तीनो ग्रंथ और उनमें उलिग्वित सभी ग्रंथ या श्रावकोंके श्राग्रहमे ग्रन्थ रचे हैं। उन उन पुरुषोंकी संवत १४६६ मे पूर्व रचेगए हैं । पद्मपुराण या बलभद्र पोरम कविका यथोचित सम्मान भी किया गया है और चरितमें सिर्फ नेमिनाथ पुराणका उल्लेख है हरिवंश अर्थादिके साहाय्यके साथ साथ वस्त्राभूषण श्रादिकी भंट® पुराणमे त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित (महापुराण) मेघेश्वर द्वारा उन्हें संतोपित भी किया गया है । इसीसे कविने भी चरित, यशोधर चरित, वृत्तमार, जीवंधर चरित और पार्श्व प्रत्येक ग्रन्थकी संधियोके शुरूम संस्कृत पद्यांमे उन भव्य चरित, इन छह ग्रंथाके x रचे जाने का उल्लेख है । इसम पुरुषोके गुणोंका पाख्यान करते हुए उनकी मंगल कामना ये सब ग्रंथ सं० १४६६ में पूर्व रच गए है । और मम्मइकी है और वह ग्रन्थ भी इच्छानुसार उन्हींके नामांकित जिनचरित' नामक ग्रंथमे, पार्श्वपुराण, मेघेश्वरचरित. किया गया है।
त्रिषष्ठिशलाका चरित रत्नाकर (महापुराण) बलभद्र सम्मत्त गुणनिधान और सुकौशलचरित नामके अन्या- चरित, मिद्धिचक्र विधि, सुदर्शन चरित धन्यकुमार चरित में उल्लिम्बित रचनाकालको छोड़कर शेष प्रन्याकी प्रश- नामक मत ग्रंथोंका उल्लेख किया गया है. जिसमें अंतके स्तियों में उनका रचना समय दिया हुआ नहीं है जिससे तीन ग्रन्थोंके नाम नये है। यह निश्चय करना अत्यन्त कठिन है कि कवि रहधूने सबसे प्रथम किस ग्रन्थकी रचना की थी । सम्मत्तगुणनिधानकी
xजह पइणेमि जिणिंदह केरउ,चरिउ रइउ बहु-सुक्म्ब जाउ रचना विक्रम संवत् १४६२ की भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा
अराणु वि पासहुचरिउ पयामिउ,ग्वेऊसाहू णिमित्त सुहापिउ मंगलवारके दिन की गई है जैसा कि उसके निम्न प्रशस्ति
बलहहहुपुराण पुणु तीयउ,णियमण अणुराणं पहं कीयउ ।
-सुकौशल चरित प्रशस्ति वाक्यसे प्रकट है:
... सोढलणिमित्त णेमिहु पुराणु, विरयउ जह कइजण विहयमाणु ® संपुगण करेप्पिणु पयड प्रस्थु, खेऊँ साहुहु अप्पियउ सत्थु
-बलभद्र चरित प्रशिस्ति बहुविणएं गिरिहयउ तेण, तक्वणि प्राणांदिउ णिय मोण । - सिरितसट्टि पुरिमगुण मन्दिरु,रहउ महापुराण जयचंदिरू। दीवंतर-आगय-विधिह-वत्थ, पहिराविवि अह सोहा पसत्थ। तह भरहहुसेरणावड्-चरियड,को मुहकहपबन्धु गुणभरियड पाहरणहिं मंडिउ पुणु पक्त्तुि, इच्छादाणे रंजियउ चित्तु । जसहरचरित जीवदय-पोसणु, वित्तसार सिद्धत पयासणु । संतुहउ पंडिय णिय मणमि, पासीबाउवि दिएणउ खम्मि । जीवधरहु वि पासहचरियउ,विरइवि भुवण त्तउ जसभरियउ । -पार्श्व पुराण प्रशस्ति
-हरिवंसपुराण प्रशस्ति