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इनके अतिरिक्त करकण्डुचरित, सम्यवस्वकौमुदी, दशमी मंगलवारके दिन पूर्व हुई है। इस प्रथको कविने अात्मसंबोध, अणथमी कथा, पुण्यावस्था, सिद्धांतार्थ- तीन महीने में बनाकर समाप्त किया है। प्रथकी भाषा सार, दशलक्षणजयमाला, और पांडशकारण जयमाला, सरल और सुगम है।
भी हैं। इन आठ प्रन्यामे से सम्यक्त्व कौमुदी और २ सकीशलारत-इम गथमें राजा सुकाशलका पुण्यानवकथा इनदो ग्रन्थोंको छोड़ कर शेष ग्रन्थ कब और पावन चरित चणित है। यह प्रथ भी चार संधियोम कहाँ रचे गए यह कुछ जात नहीं होता। इनके अतिरिक्त समापन हुया है। प्रस्तुत प्रथका निर्माण वि. सं. १४६ उपदेशरत्नमाला, सुदंशण चरित, और त्रिषष्ठि शलाका, में मालियर निवामी, अगवाल कुलावतंश माहू प्राणाके पुरुषचरित (महापुगण) नामकी रचनाएं मुझे अभी तक पुत्र रणमलमाहकी प्रेरणा एवं प्राग्रहमे हुआ है। प्राप्त नहीं होगी, जिनकी खोज जारी है. मिलने पर उनके प्रशस्तिमें उनके वंशका परिचय भी दिया हश्रा है।। सम्बन्धम भी प्रकाश डालनेका यन्न किया जायगा।
. ३ बलाहरित-(पति ) इसमें गमवन्द्र, में पहले यह बतजा आया हूँ कि कविवर रह प्रतिष्टा- लक्ष्मण और सीता आदिके चरित्रका अच्छा चित्रण किया चार्य थे। उनके द्वारा प्रष्टिन सं० १४६७ की प्रादिनाथकी गया है । यह ग्रंथ माह मंधियोंमें समाप्त हुआ है, मृतिका उल्लेग्वभी किया था। उन्होंने अनेक मनियाकी जिमकी श्लोक संख्या तीन हजार छहमौके करीब है। प्रतिष्ठा की है। उनका जीवन सं० १५२५ में भी बादमे प्रथका कथानक बडा ही रांचक और हृदयग्राही है। यह रहा है, क्योंकि उनके द्वारा सं० १५२५ में चैत्र सुदि अपभ्रंश भाषाकी १५ वीं शताब्दीकी जैन रामायण है । बुधवारके दिन ग्वालियरमे तोमर वंशी राजा कीनिसिहक यह ग्रंथ भी म्वालियर निवासी अग्रवाल कुलावतंश माह राज्यमं प्रतिष्टाचार्य रहधूकी पान मेवाम अग्रवाल वंशी बाटूके मुपुत्र हरमीमाकी प्रेरणा एवं अनुरोधमे रचा गया संघाधिपति प्रामञ्च भव्य हेमगजक लिये निर्मित आदिनाथकी है। माह हरमी जिन शामनके भक्त और कषायोंको वीण मृनिकी प्रतिष्टाकी गई है । इयम स्पष्ट है कि कविधर इसमें करने वाले थे । श्रागम श्रीर पुगण प्रयोके पठन-पाठनम बादमे भी जीवित रहे है। पर कितने समय रहे यह बतलाना समर्थ, जिन पूजा और मुपायदानम अनुरक्त, नथा रात्रि कठिन है। उनका समय विक्रमकी १५वीं शताबी का अन्तिम और दिनम कार्यान्सर्गमे स्थित होकर आत्मध्यान द्वारा चरण है । अर्थान व बी १६वीं सदीक विद्वान थे । म्व-परक भदज्ञानका विचार-विमर्श एवं अनुभव करने ग्रन्थ-परिचय
वाले नधा तपश्चरण द्वारा परीरको क्षीण करने वाले
धर्मनिष्ठ व्यनि थे । प्रधको प्राद्यन प्रशस्तिमें हरमी कदिक द्वारा रचित ३ प्रन्यामिग २. प्रन्याका
माहक कुटुम्बका विस्तृत परिचय कगया गया है। संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है:
गमका चरित लाम्मे बड़ा ही पावन रहा है, उस पर १ सम्मत्तगुण निधान-प्रस्तुत ग्रन्थम सम्यक्त्व प्राकृन, मंस्कृत और अपभ्रंश भाषामं अनेक जैन ग्रंथ रचं स्वरूप और उसके निःशंकिनादि गुणांका परिचय चार गये है। मंधिया द्वारा कराया गया है, जिनमें उन थाट अंगोम नामनाथ जिन चरिन-(हरिवंशपुराण) हम ग्रंथ प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले पुरुषांक कथानकभी दिये हुप हैं। में जैनियांके व तीर्थकर भगवान नेमिनाथका पावनइम ग्रन्थमें कुल १०८ कडवक दिए हुए है जिनकी प्रानुमा- चरित दिया हुआ है। उक्त प्रथ १४ संधियोंमें ममात निक श्लोक संख्या तेरहसी पचहत्तरके करीब है। यह हुआ है । इस प्रथ की रचना योगिनीपुर (दहली) में उत्तर प्रन्थ गोपाचल वामी माहू खेममिहके पुत्र कमलमिहके दिशाकी श्रार किमी ममीपवर्ती नगरके निवासीकी प्रेरणाम अनुरोधमे बनाया गया है और उन्हींके नामांकित किया हुई है, जिसका नाम पाठकी अशुद्धिके कारण स्पष्ट नहीं पड़ा गया है। और गन्थकी श्राद्यन्त प्रशस्तियोंमे माह कमल- जासका । अग्रवाल कुलावतंश गोयल गांधी महामन्य सिंहके कुटुम्बका विस्तृत परिचय दिया हुआ है । गन्थ गत साहलाहाक पुत्र संघाधिप लांणा साहूकी प्रेरणास हुई है। कथाओंका आधार यशस्तिलकचम्पूके छट पाश्चापके समान प्रधिकी आयतप्रशम्तिमें साहूलाहाके परिवारका यथेष्ट परिहै। इस ग यकी रचना वि० सं० १४१२ को माघ शुक्ला चय कराया गया है। इस प्रथकी प्रशस्तिमं 'खेल्हा' नामक