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मधू
तीर्थकरों और १२ चक्रवर्ती यदि महापुरुषों का कथानक दिया दिया हुआ है । जिनमें महाभारत और रामायणकी कथाएँ भी संक्षिप्त रूपमे आजाती है । आदिपुराण में ३० और उत्तरपुराण मे ६५ संधियां हैं। और इन दोनों की श्लोक संख्या वीस हजारमे कम नहीं जान पडती । कविने अपना यह ग्रंथ क्रोधन संवत्सरकी श्राषाढ शुक्ला दशमी अर्थात् शक सं०८७ (वि० सं० १०२२) में बनाकर समाप्त किया है। इस ग्रंथका सम्पादन डा०पी. एल. वैद्यने किया है, जो माणिकचन्द्र ग्रंथमाला बंबई की श्रीरये प्रकाशित भी हो चुका है।
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दूसरा ग्रंथ नागकुमारचरित है। यह एक छोटासा खंड काव्य है । इसमें नमी के फलको व्यक्त करनेवाला एक सुन्दर कथानक दिया हुआ है जिसमें सन्धियों द्वारा नागकुमारके चरित्रका अच्छा चित्रण किया गया है। रचना बडी सुन्दर सरस और चित्ताकर्षक है। इस ग्रंथ की रचना भग्न मन्त्रीके पुत्र ननकी प्रेरणा हुई है और इसीलिये यह ग्रंथ उन्हें नामांकित किया गया है । इस ग्रंथका सम्पादन] डा० हीगलालजी एम. ए. अमरावतीने किया है और वह कारंजा सीरीजसे प्रकाशित हो चुका है।
यशोधरचरित्र - इस मंथम चार संधियां हैं। जिनमे राजा यशोधर और उनकी माता चंद्रमतीका कथानक दिया हुया है. जो बडाही सुन्दर और हृदयद्रावक है और उसे कविने चित्रितकर कंटका भूषण बना दिया है। राजा यशांघरका यह चरित इतना लोकप्रिय रहा है कि उसपर अनेक विद्वानाने संस्कृत और अपभ्रंश भाषा अनेक ग्रंथ लिखे है। सांसद वादिराज, वासवसेन, सकलकीर्ति श्रतसागर पद्मनाभ माणिक्यदेव, पूरवि, कविर सोमकीनि विश्व और
स्वर विज्ञानाने अनेक ग्रंथ लिखे है ।
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ग्रन्थोंकी भाषा
कविवर रहक मन्याकी भाषा १२ वी शताब्दी की प्राकृत अपभ्रंश है। उस समय हिन्दी भाषाका भी बहुत कुछ वो था इनके विविध प्रवाही देखने
या मनन करनेसे मालूम होता है कि उस समय बालचालकी भाषा हिन्दीका विकसित रूप था गया था और इसीलिये कवि के प्रथाही भाषा बहुत कुछ माल तथा सहज ही अर्धबोधक है उसमें देशी भाषाके शब्दोकी बहुलता दृष्टिगोचर होती है । चकि रह कविके प्रायः
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सभी ग्रंथ ग्वालियर और उसके आस-पास प्रदेशों अथवा नगरचे गए है, इसलिए उस पर शीरमेनी प्राकृत भाषाका प्रभाव स्पष्ट ही है । भाषा साहित्य की दृष्टिसे जो शब्द का अर्थ गौरव और अलङ्कारिकता पुष्पदन्तादि महाकवियांक अन्योंमे दृष्टिगत होती है वैसी कवि रहभूके ग्रन्थों में नहीं है, उनकी भाषा अपेक्षाकृत बहुत ही मरल और सुबोध है, चरित तथा पुराण ग्रन्थोंमे कविने प्रकृत कथा वस्तुको ही सोधे सादे शब्दों में रखनेका प्रयत्न किया और थावश्यक मंतित रूपम और नाश्रुतिरूप जैन सिद्धान्तकी मान्य ताओ का भी यथा स्थान समावेश कर दिया है ।
कवि रहने गरि पुराण, पूजा, कथा और मेवातिक विषयों पर ग्रन्थ लिखे है । और वे सभी ग्रन्थ विभिन्न जातियों एवं स्थानां धर्मात्मा श्रीमन्न पति अनुरोध पर रहेगी तत्कालिक महाकोकेशियर गुरु मानते थे और उनकी शाकिर उनके द्वारा अनेक जैन मन्दि मृतियांका निर्माण और प्रतिष्ठादि कार्य भी सम्पन्न हुए है। रद्द कविके म्यां चीप पडडी घना गाहा, दोहा, दुबई. छप्पय, मदनावतार और भुजङ्गप्रयात यदि अनेक छन्दोका प्रयोग हुआ है। किन्तु इन सब छन्दमं सबसे अधिक पढी छन्दका ही उपयोग हुआ मिलता है। अपभ्रंश भाषाके में यह खास विशेषता पाई जाती है कि उनमें सर्ग, अंक, अध्याय की जगह सर्वत्र परिच्छेद' और 'सन्धि' शब्दका प्रयोग हुआ देखने ग्राना है। प्रत्येक सन्धि या परिच्छेद में अनेक कडक होते है और एक कडक आठ श्राट यसकोका होना और दो पका एक यमक होता है पन्डी इन्दमें एक पद १६ है कि महाकवि स्वयंभू 'स्वयंभू' विषयक ग्रंथक अन्तिम अभ्यायकं निम्न पद्यां प्रकट है:पापड पनि विहिप हिजय उग्रिम्म अनि, कडबड अजिम अहिरन्ति ॥
पन मा मन्जिभगान्ति
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संविध
ग्रन्थोंमें प्रयुक्त हुए सभी चन्द्रों का यदि परिचय कराया जाय तो लेव बहुत बढ़ जायगा । श्रतः कुछ वन्दके नाममात्रका उल्लेख करके यहां सिर्फ पडी छन्दका ही नमूना प्रस्तुत किया गया है ।