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________________ ३२०] अनेकान्त [किरण है से पूर्ववर्ती थे। इनकी अपभ्रंश भाषामें तीन कृतियोंके 'संतुआ' या शान्तिदेवी था, जो शीलादि गुणों से अलंकृतरचे जानेका उल्लेख स्वयंभूदेवके अन्यों में उपलब्ध होता थी। कविके तीन सहोदर (सगे) भाई थे, जो सीहल्ल है, वे हैं हरिवंश पुराण, पउमचरित और पंचमीचरिउ। लक्ष्मण और जपहर (यशोधर ) नामसे लोकमें विख्यात परन्तु खेद है कि इनमेंसे एकभी ग्रन्थ इस समय उप- थे। कविकी चार पत्नियां थीं जिनमती, पद्मावती, लब्ध नहीं है। लीलावाती और जयादेवी । और नेमिचन्द नामका एकपुत्र ४ द्रोण-यह भी एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं। इनका भी था। स्मरण कितने ही कवियोंने किया है। परन्तु इनके सम्बन्ध- वीरकविने मालवदेशकी सिन्धुपुरी नामकी नारीमें विशेष कुछ ज्ञात नहीं हो सका। के मधुसूदन श्रेष्ठीके सुपुत्र 'तक्वडु,' श्रेष्ठीकी प्रेरणा५ स्वयंभूदेव-यह अपभ्रंश भाषाके महाकवि थे। से उक्त जंबूस्वामी चरित्रकी रचनाकी है। जिसकी रचनाइनके पिताका नाम मारुतदेव था, जो काम्य-शास्त्रके मर्मज्ञ में कविको पूरा एक वर्षका समय लगा था । माथही, महाविद्वान थे। इनकी माताका नाम पद्मनी था। कविवर बन नामक उद्यानमें भगवान महावीरका पाषाण मय एक शरीरसे अत्यन्त दुबले पतले तथा उमेत थे और उनकी विशाल मन्दिर भी बनवाया था और उसमें भगवान महानाक चपटी तथा दांत विरल थे-घने नहीं थे। इनकी वीरकी मृतिकी भी प्रतिष्ठा कराई थी। उक्त ग्रंथ महाकाव्यतीन पत्नियां थीं, भाइचाम्बा, सामिश्रब्बा और तीसरी के सभी लक्षणमे परिपूर्ण है. 'सुब्बा ' । इनमें से प्रथम दो की सन्तानोंका कोई उल्लेख ७ वनमेन-इन्होंने षट् दर्शनाके मम्बंधमें कोई प्राप्त नहीं है। किन्तु सुअब्बाके पवित्र गर्भमे त्रिभुवन- प्रामाणिक ग्रंथ रचा था, जो आज अनुपलब्ध है । इस स्वयंभू' का जन्म हुआ था। कविका अपभ्रंश भाषा पर उल्लेखसे वे एक दार्शनिक विद्वान जान पड़ते हैं। उनका असाधारण अधिकार था । इनकी जो भी कृतियां हैं व वह दार्शनिक ग्रंथ विद्वानोंमें बहुत प्रसिद्ध रहा है। सब प्रायः अपभ्रंश भाषामें ही निबद्ध हुई हैं। इस समय जिनमेन-यह पुन्नाटसंघके विद्वान थे। इनके हुनकी तीन कृतियाँ उपलब्ध हैं। पउमचरिउ, हरिवंश गुरुका नाम कीर्तिपेण था। इन्होंने अपना हरिवंशपुराण चरिउ और स्वयंभूछन्द । इनके सिवाय 'पंचमीचरिउ' और शक संवत् ७०५ (वि० सं०८४०) में वर्तमानपुर के व्याकरण ये दोनों अनुपलब्ध हैं। स्वयंभूदेवने जब नमाज के बनवाए हए पार्श्वनाथके जिन मंदिरम उम पउमचरिठ रचा उस समय वे धनंजयके आश्रित थे। और समय बनाकर समाप्त किया था जबकि उत्तर दिशाकी हरिवंशपुराणकी रचना करते समय उन्हें बंदहयाका आश्रय इंद्रायुधनामका राजा, दक्षिण दिशा की कृष्णका पुत्र श्री प्राप्त था। इनके ग्रंथाके अन्तिम भागको इनके पुत्र त्रिभु वल्लभ, पूर्वदिशाकी अवन्तिभूपाल वत्सराज और पश्चिमचन स्वयम्भूने पल्लवित किया था। यह विक्रमककी प्रायः की सौरोंके अधिमण्डल या सौराष्ट्र की वीर जयवराह रक्षा १ वीं शताब्दीके विद्वान हैं। करता था x अतः इनका समय विक्रमकी ७वीं शतादीकविवीर-यह अपभ्रंश भाषा और संस्कृत भाषा का पूर्वाध सुनिश्चित है। के अच्छे विद्वान थे। इनके पिता देवदत्त काव्यशास्त्रके विद्वान कवि थे, जिन्होंने पद्धडिया छन्दमें 'चरांगचरित्र' विशेष परिचय के लिये देखो, 'प्रेमीअभिनन्दन की रचना की थी, शान्तिनाथचरित तथा अम्बादेवीका ग्रंथ' में प्रकाशित 'अपभ्रंश भाषाका जंबूस्वामी चरित्र' रास भी बनाया था; परन्तु ये तीनों ही रचनाएँ बाज और महाकवि वीर, नामका मेरा लेख । अनुपलब्ध हैं। इन सब रचनामोंका समुल्लेख इनके पुत्र शाकेस्वब्दशतेषु सप्तसु दिशं पंचोत्तरेयूत्तरी । वीरकविकी रचना 'जंबू स्वामीचरित' में पाया जाता है पातीन्द्रायुधिनाम्नि कृष्णनृपजे श्रीवल्लभे दक्षिणं । जिसका रचनाकाल सं० १०७६ है। इनकी माताका नाम पूर्वा श्रीमदवन्तिभूमृतनृपे बरसादिराजेऽपरो। * देखो, स्वयंभूषन्द, ४-२,७१,८२ ८६, १२। मौरणामधिमण्डले जययुते वीरे बराहे ऽवति ॥ ये सब पच रामकथा सम्बन्धी है। -हरिवंशपुराण प्रशस्ति निह.
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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