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________________ महाकवि रहधू (ले०५० परमानन्द जैन शास्त्री) (गत किरणसे भागे) कविवर रइधू द्वारा स्मृत विद्वान । (ताम्र पत्रादिकों ) में शम्दावतारके कर्तारूपसे दुर्षिनीत महाकवि ने अपने 'हरिवंश पुराण' मेघेश्वरचरित राजाका गुरु सूचित किया है इनका जीवन बदा ही और सन्मति जिनचरिड' नामक ग्रन्थों में पूर्ववर्ती कुछ प्रभावशाली रहा है और तपोनिष्ठाके कारण मनुष्योंके साहित्यिक विद्वानोंका स्मरण किया है, जिनके नाम है- अतिरिक्त देवताओंसे भी पूजित हुए हैं। देवनन्दी, २ रविषेण, ३ चउमुंह (चतुर्मुख), ४ यह पुष्पदन्त भूतबलिके षट्खण्डागम, कुन्दकुन्द और दोश, ५ स्वयम्भूदेव, ६ वीर, वज्रसेन, ८ जिनसेन, समन्तभद्राचार्यके ग्रन्थोंसे खूब परिचित थे। इनका समय देवसेन, १०और पुष्पदन्त । इनका संक्षिप्त परिचय नीचे ईसाकी ५ वीं और विक्रमकी छठी शताब्दीका पूर्वाद है। दिया जाता है: इनका विशेष परिचय प्राप्त करनेके लिये वीरसेवा-मन्दिरसे १देवनन्दी-इनका दसरा नाम पूज्यपाद है+ प्रकाशित 'समाधितन्त्र' तथा 'पुरातन जैन वाक्यसूची' यह विविध विषयों के प्रौढ़ विद्वान प्राचार्य थे।इनकी प्रायः प्रन्योंकी प्रस्तावनाको देखना चाहिए। सभी कृतियों बढ़ीही सुन्दर संचित और अर्थ गौरवको २ रविषेण-अहमुनिके प्रशिध्य और लक्ष्मणसेनके लिये हुये हैं। यह लक्षण शास्त्रके विशेष विद्वान थे। शिष्य थे । अहमुनि दिवाकर यतिके शिष्य बतलाए गए हैं। गृदपिच्छाचार्य (उमास्वाति) के प्रसिद्ध तत्वार्थसूत्र पर इस गुरु परम्परामें संघ और गण गच्छादिका कोई उल्लेख आपकी 'तस्वार्थवृत्ति' नामकी एक टीका है जिसे 'सर्वार्थ- नहीं है। परन्तु 'रविषेण' यह नाम सेन परम्पराका जान सिद्धि' भी कहते है, और जो अपने ढंगकी महत्त्वपूर्ण. पड़ता है। इस परम्परामें अनेक प्रौद विद्वान आचार्य हुए संचित एवं अर्थ बहुल गम्भीर व्याख्या है। इसके अतिरिक्त हैं। प्राचार्य रविषेणकी एकमात्र कृति 'पद्मचरित' इस 'समाधितन्त्र' और हष्टोपदेश अध्यात्मके प्रतिपादक सरस समय उपलब्ध है। इस प्रन्धकी रचना कविने भगवान एवं सरल ग्रन्थ है जो वस्तु तत्वके निर्देशक हैं, पढ़ने में महावीरके निर्वाणसे १२०३ वर्ष वाव अर्थात् वि.सं. अत्यन्त रुचिकर और शान्ति प्रदान करने वाले हैं। इसी ७३३ में की है। प्रन्य सरस एवं सरल है और उसका तरह इनकी सिदभक्ति' प्रादि संस्कृत भक्तियाँ भी प्रौढ़ता- कथा भाग बदाही रोचक है। अन्य जितने भी पमपुराण को चिये हुए है। जैनेन्द्रग्याकरणतो इनका प्रसिद्ध व्याक- या ताद्विषयक चरित ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं वे सब उक रणका प्रन्थ है। जो बदा ही महत्वपूर्ण है इस पर अनेक चरित प्रन्यके बादकी रचनाएँ है। विद्वानो टीकाएं लिखी है। इनके सिवाय 'सारसंग्रह' श्वेताम्बरीय विद्वान उचोतन सूरिने अपनी 'कुवलयबन्दशास्त्र और वैचक अन्योंके भी उल्लेख मिलते हैं, माला' में रविषेणके-पद्मचरित और जटिल कविके परन्तु दुर्भाग्यवश वे ग्रन्थ वर्तमानमें उपलब्ध नहीं हैं। वरांगचरित' का उल्लेख किया है;x इनके एक शिष्य 'पद्मनन्दी'ने वि.सं. १२६ में ३चउमुह-यह अपभ्रंश भाषाके प्रसिद्ध कवि थे 'दावि संघ' की स्थापनाकी थी। यह प्राचार्य कर्ना- और उक भाषाके स्वयंभूदेव तथा पुष्पदन्त नामके कवियों टक प्रान्तके निवासी थे और गंगवंशी राजा दुर्विनीतके देखो.काइकिप्सन्स भू. मैसूर एण्ड कुर्ग जि. शिक्षा गुरु थे, जिसका राज्यकाल सन् ४८२ से १२२ वक ट का ..हिस्टरी पाया जाता है। इन्हें हेचुर मादिके अनेक शिलालेखों माफ कनाडी लिटरेचर पृ. २५% और कर्नाटक कविचरिते। + देखो, मन्दिसंघ पहावली । देखो धवला ।ख जेहिं कर रमणिज्जे वरंग-परमाण चरितवित्यारे । ४ देखो, दर्शनसार गाथा २४-२८ । कहवण सलाहणिजे ते काणी जइब रविसेणो ।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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