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अनकान्त
[किरण
सब प्रपन्च और चरिक-मदोनों प्रन्योंकि सम्बन्ध में तुब- अनुवादके रूपमें उपयुक 'परमहंस प्रबन्ध' ११ पचों नात्मक प्रकाश सावकार मिला था। मह में बनायास प्रयका भाषा एवं काधकी प्टिसे जिनदास नवीन पास ग्रन्थका नाम 'परमस राम' होने भीड़ा महत्व है। गुजरात वाक्यूबर सोसाइटी से साहजी में उसके विषयका वो मामासबोगया पर की ओरसे पी शताब्दी के प्राचीन गुर्जर काम्योंका संग्रह बामन्य किसमाचीवमन्यो पापारपर रचा गया निकला है उसमें उसे विशिष्ट स्थान दिया गया है। इसके इसका निवपावरबाकी विषय पर दिगम्बर सम्पादकाचार्य एवं अन्य गुजरात विहाबोंने इसके
और श्वेताम्बर दोनों विद्वानोंने रचनाएँ चीतो यह महत्वकी मुक्तकंठसे प्रशसा की है। स.100 में पंडित जिज्ञासा स्वामाविकभी कि दोनोंकी पनामोंका मूल बालचन्द भगवानदास गांधीमे इसका सम्पादन कर स्वतंत्र खोज कितना प्राचीन कोनसा प्र कवि माझ जिन- प्रत्यके रूप में भी इसका प्रकाशन किया था । माजिवदासदास रामको मसी मोवि देखने पर भी नहीं इसके मूब इस प्रन्यको पढ़ा होगा और प्रभावित होकर उसके प्राचारक सम्बन्ध में निर्देश नहीं पाया गया। कथावस्तु प्राधारसे प्रस्तव रासकी रचनाकी यह दोनों प्रचकि वो दोनोंडी एक-सीदी पर बबशेखरसरिका 'परम- सन्द साम्पको देखते हुए स्पष्ट कहा जा सकता।
सप्रबन्ध' इससे पूर्ववर्ती ,मतः उसके साथ तुलना सरासकी रचना कविने अपने उत्तर जीवन में की करना मावश्यक प्रतीमा और वैसा करनेपर मैं इस प्रतीत होती है। क्योंकि इस रासके मादि व अन्तर्म अपने निष्कर्ष पर पहुँगा किनिमदराने उखेसन भी किया हो सकसकी किसाथ भुवनकीर्ति और अपने शिष्य नेमीको भी अबशेखरसूकि प्रत्यको सामने रखते हुए भी दासका भी उल्लेख किया है। इस उपखवाले पच नोचे इसकी रचना की, प्रतीत होती है।
दिये जा रहे है:रूपक कथानोंकी प्राचीन परम्परा
प्रारम्भश्वेताम्बर प्राचार्य सिदार्षिने 'उपमिति भव प्रपंच
सकल निरंजन सकल निरंजन देव अनन्त कथा' की रचना में भीनमाबमें की है। काक
परमानन्द सुहायणा, प्रणभासु सरसती सार निरमल। कथा मम्मों में यह सबसे बड़ा एवं बादर्श ग्रन्थ है।
श्री सकसकीतिगुरु मनि धरू', बखि भुवनकीरति ऐसी म्पामा स्वतन्त्र रचनामोंका प्रारम्भ ही इसी अन्य
मुनिसार सौहबद्ध । सेमा परचा अनेक ग-नेवर प्रन्य रूपक
तह प्रसादे स्वदो, परमहंस जयवन्त । शैखीमें बिखे गये। बिकास परिचय 'मदन पराजय'
ब्रह्माभिमदास मणे गाइस', सुणो वियर गुरुवन्त । की प्रस्तावना बीबुख रामकुमारजी साहित्याचाने और भास चौपाईनीभीमेशनबावडास्त्री प्रयोग पच्चीखोकी प्रस्तावनामें दिया है। इनमें सबसेषरसरिक प्रबोधचिन्यामबि'
सुणो भविषय तुम्हें गुणमा । अन्यका भी महत्वपूरस्थानोबा अन्य सं. 1. सुखवा भावन्द गुणकम्प, में सम्मातमें रचा गया।भाषा संसास और सास
उपजै समिति निरामबचन्द अधिकारों में पूरा । इसमें मोह एवं विवेकी विमुषण नयर पणो वेराड, गुणवन्त दोसे बार। उत्पत्ति, उनका परिवार, परस्पर पुर और मान्समें विवेक नाम बी बाइपाप,दिन दिन पापै अधिक प्रताप ॥२॥ की विजय और मोहरामकी अपनपदा ही सुन्दर - ब ।बसाधारयके पोध शिवपापने काबीन ते विवेक मुफ निरमलो, मवि भवि देबु गुणवन्त । खोक भाषामें अपने अन्य स्वतन्त्र एवं सारगर्मित परमहंस परमातमा, जिम दो बवन्त ॥२॥
.माम्बवर पं.बापूरम प्रेमी एवं मोतीचनादिने भी सकसकीति पाय प्रथमीने, गुरु भुवनकीति भववार । इसकी बहुत ही प्रशंसा की है कि यह साहित्यका मनोद रास कियो मिह निरमतो, परमहंस सबो सार ।
पाह गुर जेसा भी, मनपरि भविषद भाव ।