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ब्रह्म जिनदासका एक अज्ञात रूपक काव्य
(लेखक-श्री. अगरचंद नाहटा) दिगम्बर विद्वानों ने प्राकृत, संस्कृत, अपनश, कब और उस समय तक राजस्थानी एवं गुजराती भाषामें और हामिल भाषा पोंमें प्रचुर साहित्य निर्माण करनेके विशेष अन्तर नहीं था मसः मापके प्रन्योंकी भाषाको साथ-साथ हिन्दी भाषामें भी बहुत बड़ा साहित्य निर्माण राजस्थानी भी कहा जा सकता है, पर हिन्दी नहीं। हाख किया है। पर राजस्थानी एवं गुजराती भाषामें उनकी ही में आपका एक महान शास्त्र प्राप्त हुमा है जिसका रचनाएं पहुत थोड़ी ही मिलती है । यद्यपि दिगम्बर परिचय करामा प्रस्तुत लेखमें अभीष्ट है। समाजके जयपुर, कोटा मादि अनेक केन्द्र स्थान राजस्थान गत अगस्त मालमें मार समिति संगठमके प्रसासे मही है। और जयपुरके विद्वानोंने हूँढाली भाषामें कुछ भी
ने ग्रन्थ लिखे भी हैं, पर उनकी दादो भाषामें हिन्दी का निमन्त्रणसे मयपुर जामा मातो बचे हुए समय में राजअधिक प्रभाव खपित होता है। गुजराती भाषा जो थोड़ा स्थान पुरातत्व मन्दिर और कस्तावन्दनीकी तैयार की दिगम्बर साहित्य निमित हुमा है उसका परिचय में जैन- एक दिगम्बर जैन मन्दिरकी प्रम-सूचीका प्रवनीकन सिद्धान्त भास्कर वर्ष १ अंक में अपने 'दिगम्बर गुज
करने के साथ-साथ मुखतान + और डेरागानीबाँके स्तसती, साहित्य शीर्षक सेगमें प्रकाशित कर चुका है।x
miart e मार इसमें मैंने ब्रह्म जिनदास की रचनाओं का भी उक्लेका किया
भागये थे और पाते समय वहाँका ज्ञान-पहार व प्रतिमा था। तदनन्तर मापकी रचनाओंकी भाषा हिन्दी है यह
अपने साथ ले माये थे उन दोनों)को देखनेका भी सु. बतलाते हुए श्री कस्तूरचन्द कासलीवाखने वीरवाणी वर्ष
अबसर प्राप्त बाहुमुस्तामश्वेताम्बर शान-भरडारकी २ अंक में आपके संस्कृत और छ भाषा अन्धोंका
प्रतियोंमे तीन अन्यत्र प्राप्य प्रन्योंकी प्रतियों देखने में परिचय दिया था। उस लेखकी विशेष जानकारी के रूपमें
भाई, जिनके सम्बन्ध में प्रकाश डालने के लिये मैं बाते मैंने उमी वीरवाणीके वर्ष, अंक में 'वय जिनदास
समय साथ लेता भाया। इनमसे बुद्ध रचित 'बमान को कतिपय अन्य गुजराती रचनाएं' नामक लेख प्रकाशित
बचनिका' का परिचय पीरवाणी में प्रकाशनार्थ भेजा जा किया था और उसमें कासलीवालजी द्वारा सूचित भाषा
चुका दूसरा प्रथम बिनबास रचित 'परमहंसरास' ग्रन्थोके अतिरिका अन्य रचनामोंकी सूची दी थी।
है जिसका परिचय प्रस्तुब मेखमें कराया जा रहा है। अतः भापके कुल २५ भाषा-प्रन्यों का वो अबतक पता
प्रस्तुत 'परमहंस रास' के प्र.हि० अन्वर इसके चला था। आपका समय सन् १९२.के भासपासका है
नामसे हीयानो नाम लिया था कि वह पक रूपक पद्यपि वेताम्बरीय साहित्यकी अपेक्षा दिगम्बर साम्य है क्योकि खेताम्बर साहित्यमें जयशेखरसूति विद्वानोंने गुजराती भाषामें कम साहित्य लिखा है। हिर रपित'परमहंस प्रबन्ध' (प्रसिद्ध अपरनाम त्रिभुवन भी दिगम्बरों का गुजराती साहित्य को कुछ भी पतक दीपक प्रबन्ध) एवं इसका संस्कृत रूपावर सावरगच्छीय परिचय में भारावा है उससे वह कई गुणा अधिक शास्त्र. नवरा रचित 'परमहस सम्बोधचरित' + अन्यसे मैं भण्डारों में उपलब्ध होता है। उसे इतमा ही समझ पूर्व परिचित 'परम सम्पोषचरित' कीबोगत लेना बड़ी भूल होगी। समानके विद्वानोंका कर्तव्य है कि जनवरी में (1-1-१२को)ही मैने प्रस्तावमा सिसी थी बे गुजराती भाषाके शादिगम्बर साहित्यका पवागा. कर उसे प्रकाशमें लाने का प्रयत्न करें। -सम्पादक
+ मुक्वानके दिगम्बर मन्दिरका प्रम्य-भवहार___x इससे पूर्व बनेकान्स '. अंक में प्रकाशित श्री.
प्रतिमा कहाँ विराजमान है जाममा बावश्यक है। पालचरित्र सम्बन्धी अन्य बेशकी टिप्पणमें बीम 4. अमृगमा मोहनमा संघवी सम्पादित जिनदासकी शान रचनामोंका उलेख किया था। हरीभाईकी बादी बहमदाबादमे प्रकाशित।