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________________ ३१२) ही अनिष्ट तथा अनुपसेव्य पदार्थाका सेवन नहीं रात्रिको, पक्ष भरके लिये, एक महीने तक, द्विमास किया जाता, उस त्यागसे व्रतफलकी कोई सम्प्राप्ति अथवा ऋतु विशेष-पर्यन्त, दक्षिणायन, उत्तरायन नहीं होती-व्रत-फलकी सम्प्रान्तिके लिये सकल्पपूर्वक अथवा छहमास पर्यन्त, इत्य दि रूपसे कालकी अथवा प्रतिज्ञाके साथ त्यागकी जरूरत है, उसके द्वारा मर्यादा करके त्यागका विधान है वह 'नियम' उनका वहन सेवन सहनहीमें व्रत-फलको फलता है। इसीसे प्राचार्यमहोदयने यहां भोगोपभोगपरिमाणके कहलाता है। अवसर पर श्रावकोंको अनिष्टादि विषयोंके त्यागका व्याख्या-यहां भोग तथा उपभोगमें आनेवाली परामर्श दिया है। अनुपसेव्यमें देश, राष्ट्र, समाज, सामग्रीका अच्छा वर्गीकरण किया गया है और साथसम्प्रदाय आदिकी दृटिसे कितनी ही वस्तुओका ही कालकी मर्यादाओंका भी सुन्दर निर्देश ६। इन समावेश हो सकता है। उदाहरणके तौर पर स्त्रियोंका दोनोंसे व्रतको व्यवस्थित करने में बड़ी सुविधा हो से अति महीन एवं झीने वस्त्रोंका पहनना जिनसे जाती है। इस व्रतका व्रती अपनी सुविधा एवं आवउनके गा अग तक स्पष्ट दिखाई पड़ते हों भारतीय श्यकताके अनुसार भोगोपभोगके पदार्थोंका और भी संस्कृतिकी दृष्टिसे गर्हित हैं और इसलिये वे अनुप- विशेष वर्गीकरण तथा कालकी मर्यादाका घड़ी-घंटा सेव्य है। आदिके रूपमें निर्धारण कर सकता है। यहां व्यापकनियमः यमश्चविहितौ द्वधा भोगोपभोगसंहारा। हा दृष्टि से स्थूल रूप भोगोपभोगके विषयभूत पदार्थों का वर्गीकरण तथा उनके सेवनकी कालमर्याओंका नियमो परिमितकालो यावज्जीव यमो ध्रियते ।।८७) संसूचन किधा गया है। भोगोपभोगका परिमाण दो प्रकारका होनेसे नियम विषयविषतोनुपेक्षानुस्मृतिरतिलौल्यमतितृषानुभवौ । और यम ये दो भेद व्यवस्थित हुए हैं । जो परिमाण भोगोपभोगपरिमा-व्यतिक्रमाः पंच कश्यन्ते ॥१०॥ परमित कालके लिए ग्रहण किया जाता है उसे 'नियम' विषयरूपी विषसे उपेक्षाका न होना- इन्द्रियकहते हैं और जो जीवन पर्यन्त के लिये धारण किया। था. विषयोंको सेवन कर लेने पर भी आलिंगनादि रूपसे जाता है वह 'यम' कहलाता है।' उनमें भासक्तिका बना रहना- अनुस्मृति-भोगे हुए भोजन वाहन-शयन-स्नान-पवित्रागराग-कुसुमेषु । विषयोंका बार-बार स्मरण करना-अतिलौल्य-वर्तताम्बूल-वसन-भूषण-मन्मथ-संगीत-गीतेषु ॥॥ मान विषयों में अति लालसा रखना-,अतितृषा-भावी भोगोंकी अतिगृद्धताके साथ आकांक्षा करना - 'अत्यअद्य दिवा रजनी वा पदो मासस्तथतुरीयनं वा । नुभव-नियतकालिक भोगोपभोगोंको भोगते हुए भी इतिकाल-परिच्छित्या प्रत्याख्यानं भवेन्नियमः८६ अत्यासक्तिसे भोलना, ये भोगोपभोगपरिमाणबतके ___ 'भोज्य पदार्थों, सवारीकी चीजों, शयनके साधनों, पांच अतिचार कहे जाते हैं। स्नान के प्रकारों, शरीरमें रागवर्धक केसर-चन्दनादिके - युगवीर विलेपनों तथा मिस्सी-अंजनादिके प्रयोगों, फूलोंके उपयोगों, ताम्बूल वगेकी वस्तुओं. वस्त्राभूषणके प्रकारों, काम-क्रीड़ाओं, संगीतों-नृत्यवादित्रयुक्त गायनों-.. और गीत मात्रों में जो आज अमुक समय तक दिनको समीचीनधर्मशास्त्र के अप्रकाशित भाष्य से।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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