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________________ किरण १ सर्वोदय कैसे हो? भी ये युग्दल (परमाणुओं) की धाराएं हर तरहकी बनावटों ने भी वर्तमानकालमें काफी उन्नति की है पर वह भी के रूपमें धाराप्रवाहकी तरह निकलकर सारे संसारमें फैलती यह नहीं जाननेके कारण मनुष्यकी बनावट कैसी है अधूरा है। इस तरह संसारका हर मानव--हर प्राणी-हर पदार्थ- होनेसे पूरा कारगर नहीं होता । इन सबके लिये जरूरी है एक दूसरेपर प्रभाव डालता रहता है। पर हमारा आधुनिक भगवान महावीरका कर्मसिद्धांत(Karma Philosophy) विज्ञान इन बातोंको अभी तक न जान सका है न इनको सामा- पहले वे वैज्ञानिक उसे जान लें, फिर अपनी बुद्धि और तर्क जिक व्यवस्थाओंसे कुछ सम्बन्धित ही समझता है। यही सबसे लगाकर यदि कुछ नये आधुनिक वातावरणका ध्यानकर बड़ी गलती आजकलके विज्ञानकी है। यदि शक्तिशाली देश कहें तो वह सचमुच कारगर और सही होगा । भगवान यह अच्छी तरह समझ जांय कि वे अकेले न तो सच्ची स्थायी महावीरने “अनेकान्त" रूपसे सब प्रश्नोका उत्तर निकाला शान्ति प्राप्त कर सकते है, न उन्हे सच्ची समृद्धि ही प्राप्त था। इसी तरहका ज्ञान विज्ञान हो सकता है । और इसीकी हो सकती है, न सच्चे सुखानन्दका ही दर्शन उपलब्ध संसारमें सुख शान्तिकीवृद्धि के लिये परम आवश्यकता है ।* हो सकता है, यदि बाकी संसार या संसारके दूसरे देश भगवान महावीरने जो "सर्वोदय" का समतामई मार्ग पिछड़े रहें और लोग दुःख तथा अभावों (कमियों) के कारण बतलाया है वह समयकी प्रगतिके साथ अनुयायियोंकी कराहते ही रहे । आज अमेरिका इंग्लंड इत्यादि देश जिसे अज्ञानताके फलस्वरूप धीरे-धीरे लुप्त होता चला गया । समृद्धि समझे बैठे है वह एक झूठी और धोखेकी चीज है, आजका जैन समाज केवल कहनेके लिये ही जैन या महावीरसच्ची नही । सच्चा आनन्द सुख तो तभी प्राप्त होगा जब का अनुयायी है पर सचमुच में वह भी धन नामक ईश्वरका संसारके मानवमात्र उन्नत हो-सच्चे अर्थोंमें सर्वोदय हो। ही पजारी हो गया है। हां. एक सर्वशक्तिमान वरदान देनेतब अमेरिका इग्लैंड जैसे देश भी सच्चे आनन्द का वाले ईश्वरकी जगह वह तीर्थकरकी मूर्ति बनाकर पूरे ठाठअनुभव प्राप्त कर सकेगे। अभी तो उनका ईश्वर या आनन्द बाट और सोनेचांदीकी चकाचौधके साथ पूजा करके अपनेको धर्मात्मा समझता है और अपने कर्तव्यकी 'इतिश्री' से-अधिक धन बटोर लें। यही बात व्यक्तियोके साथ भी लागू मान लेता है। जैनियोंने अपने धार्मिक सिद्धांतोंको पोषियों है। हर व्यक्ति इस पूजीवादी व्यवस्थामे अधिक-से-अधिक धन में सात-सात वेष्टनोंके भीतर इस तरह बन्द रखा कि सम्पत्ति संचय कर लेना चाहता है। एकको किसी-न-किसी बाहर के लोग कल जान ही न सके उनका निवासी तरह लट कर ही या वंचित करके ही दूसरा धनी हो सकता है, रुक गया। नतीजा यह हआ कि जैनीस्वयं ही धर्मकी असिलियत अन्यथा नही । तब इसके लिये ऊंच-नीचकी व्यवस्था भी से वंचित होकर पाषडके शिकार हो गये । धनी जैनियोंने बनाये रखनी जरूरी है। धनी गरीब भी रहना ही है तब अपने कर्त्तव्यकी बड़ी भारी उपेक्षा और अवहेलना करसच्ची सुख शान्ति भला कैसे मिल सकती है । असभव है। के महान पाप किया है। धर्म तीर्थ बनाया ही गया है सबका जबतक लोग "समता" या "समानता" की भावना हर उद्धार करनेके लिये उन्हें ऊपर उठानेके लिये । यदि यहां भी जगह हर प्रकारके लोगोमे उत्पन्न और सुदृढ़ नही करेंगे अर्थहीन ऊंच-नीचकी भावना ला दी गई तो वह भगवान 'सर्वोदय' असभव है। सर्वोदय तो दूर रहा "एकोदय" भी महावीरका धर्म ही न रह जायगा। जब मै सुनता हूं कि सच्चा नही हो सकता । यदि आजका वैज्ञानिक संसार 'समदर्शी' कहे जाने वाले मुनि लोग भी जन्मसे मानव-मानवअपने ज्ञानके साथ-साथ तीर्थंकरोके कहे उस ज्ञानको भी *देखो मेरे लेख (१) "जीवन और विश्व के शामिल कर ले जो मानवके बारेमें उन सभी जानकारियों- परिवर्तनोंका रहस्य" -अनेकान्तवर्ष १०-किरणको पूर्ण-विशद एवं व्यवस्थित रूपमें प्रतिपादित करता है ४-५(२) "रूप और कर्म"-जैन सिद्धांतभास्कर तो आजका विज्ञान अधूरा न रहकर पूर्ण हो जाय और तब भाग १७. किरण-१; "Soul, Life, consजो मसले या प्रश्न या गुत्थियां अबतक हल न हो सकी हैं ciousness"-Voice of Ahinsa- Vol. 1, वे भी हल हो जायेंगी। दूसरे विज्ञानोंके साथ मनोविज्ञान- No.3.)
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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