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अनेकान्त
वर्ष ११
के साथ पुनः स्वार्य और पाखंडके कारण उस सुज्ञानकी लोग तर्क और बुद्धिको धर्मके मामले में घुसने ही नहीं अवनति होती गई, लोग अज्ञान या कुज्ञानकी ओर अग्रसर देना चाहते। वैज्ञानिकोंने भी इधरसे उदासीनता दिखलाहोते गये और दिन व दिन अवस्था बुरी ही होती गई। कर बड़ी भारी हानि की है । आज संसारमें जो युद्ध और जैनियोंके भगवान ऋषभदेवसे लेकर भगवान महावीर
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आसुरिक शक्तिका ही बोलबाला हर तरफ दिखाई दे रहा है वर्षमान तक चौवीस परमज्ञानी तीर्थकर हुए, जिन्होने यह
तक चौवीस परमज्ञानी तोकर बार वह इसी कारणसे है। उस विमल शानकी संस्थापना, पुनरुत्थान और संवृद्धि
; पुनरुत्थान और संवृद्धि आजके संसारमें ईश्वरके नामकी आड़में धनकी ही की। यह शान विशद विवरणके साथ बतलाता है कि मानव सच्चे ईश्वरके रूपमें पूजा होती है। ईश्वर भी धनियोंका क्या है; वह कैसे बना है, आत्मा क्या है; शरीर क्या है; ही ईश्वर है या यों कहिये कि पूजीवादी व्यवस्थाने ही ईश्वरआत्मा और शरीरका संयुक्त रूप मानव कैसे क्या करता है; को कायम कर रखा है ताकि कुछ लोग धन बटोरकर किसी व्यक्तिका स्वभाव या आचरणादि एक खास तरह बाकियोको गरीब रख उन पर अपना प्रभुत्व बनाये रख के ही क्यों होते है और उन्हें कैसे बदला जा सकता है या सके । जब तक एक काल्पनिक ईश्वरका अस्तित्व रहेगा बदलनेकी संभावना है, कि नहीं इत्यादि । संसारकी सारी संसारसे ऊंच-नीचकी भावनाएं और दूसरोंपर निर्भर रहकर मानवकृत व्यवस्थाएं मानवसे सम्बन्धित है और उसीको केवल प्रार्थनाके बलसे सब कुछ पा जानेकी चेष्टाओंमें केन्द्रित करके उसीके लिये बनी या बनायी गयी है। सच्चा अदल-बदल होकर स्वावलम्बनका विस्तार होना संभव वैज्ञानिक ज्ञान वही है जो हर सम्बन्धित पहलुओं और नही दीखता। भाग्य और भगवान्का मनुष्यके सुख-दुःखमें बातोंको देखकर सुन कर तथा जांच कर कुछ कहे। ठीक-ठीक क्या स्थान, अर्थ और मतलब है यह जानना यदि मूल मानव और उससे सम्बन्धित सभी बातोंकी ठीक- जरूरी है। नहीं तो संसारसे भ्रमपूर्ण मिथ्या धारणाएं नहीं ठीक जानकारी न हो तो जो भी व्यवस्था बनेगी वह गलत, हट सकेंगी और न कुछ सुधार ही होगा। भगवान् महावीरअधूरी या त्रुटियोसे भरी होनेसे पूर्ण लाभदायक न के बताये सिद्धांतोंमे इनका ठीक-ठीक सीधा सच्चा प्रतिपादन होगी और जितनी कमी या त्रुटि उसमें होगी उतनी ही मिलेगा। हानिकारक भी वह होगी। यही बात हमारी वर्तमान यों भी सारा संसार और संसारका हर एक पदार्थ, सामाजिक व्यवस्थाओंके साथ लागू है। राजनैतिक, आर्थिक हर एक प्राणी, हर एक परमाणु तक एक दूसरेपर अपना सामाजिक या धार्मिक व्यवस्थाएं सभी ही मानवसे ही मुख्यतः प्रभाव सर्वदा डालते रहते है । सभी वस्तुएं शाश्वत कम्पनसम्बन्धित होनेसे सब एक दूसरेसे गुथी हुई है और अलग नही प्रकम्पनसे युक्त है और उनमें परमाणुओं (युग्दलो) की जा सकती। फिर यदि मानवके बारेमें पूरी जानकारी का आदान-प्रदान, अदला-बदली होती ही रहती है। हर शरीर न होगी तो हानि या गलती या भ्रम वगैरह तो होना ही या वस्तुसे परमाणुओं (मुगदलों) की धारा हर समय है। संसारमें फैले हजारों मतमतान्तरों और धमोंने बड़ा निकलती रहती है । आन्तरिक बनावटोंमें भी ये परमाणु फेरगोलमाल कर रखा है । फिलोसोफरोने बिना बातके मूल बदल करते ही रहते है। इनका प्रभाव इतना शक्तिशाली है तक पहुंचे हुए ही तर्कके जोरपर जो चाहा उसे ही सत्य कि वह कभी व्यर्थ नहीं होता। भले ही हम इसे समझें, जानें बनाकर लोगोंके सामने रखकर मनवा लिया। राज्य या न जानें, हमारे वैज्ञानिक इसे बतलायें या न बतलाएं, पर शासनों और राजाओने अपने मतलब मुताबिक बातें प्रचारित यह तो सर्वदा-निरन्तर-अवाधरूपसे होता ही रहता है । यही करवा दीं। लोगोंने भी भौगोलिक और सामयिक जरूरतों- लोगोंके भाग्योंके परिवर्तनका भी प्रमुख कारण है। के मुताबिक अपने-अपने धर्म गढ़ लिये। समयके साथ ये ही एक मानव या कोई जीव या कोई वस्तु जब हिलती-डुलती है रूढ़ियोंमें बदलकर स्थायी रूपमें स्थित हो गये। अब लोगोंके तब उसमेंसे तरह-तरहके परमाणुओंकी वर्गणाएं उन विश्वासों और धारणामोंको हटाना आसान नहीं रह धाराओं और किरणोंकेरूपमें निकलती है। जब कभी मया है। उसपर भी वर्तमान राज्य व्यवस्थाओंके संचालक मानव कुछ सोचता है उसके मन प्रदेशमें हलन-चलन होनेसे