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३०२] अनेकान्त
[वर्ष ११ चाहियेऔर यह श्रम सूत्रमी याद रक्सो कि "श्रमका वाद! पूजीवाद) के गुणोंका समन्वय करना है। दोनोंपदवनाही श्रमका विनाम है।
में कुछ-कुछ गुण है, कुछ-कुछ दोष या शक्य दोनों.-कम कम लेकर अधिकसे अधिक देना साधुता के गुण अपनाना है। है। साधु संस्थानोंका निर्माण इसी कसौटी पर कसकर १५-चुनावको न्यायोचित बनाना है। चुनावमें होना चाहिये और साधुओंको सब तरहको जनसेवाकी धन और पदमाशीके द्वारा योग्यता गुण सेवा ईमान पराजिम्मेदारी बेना चाहिये।
जित न हो ऐसी व्यवस्था करना है। जो विचारधारा देश में E-संसारको पतनशील या दुःसमय न मानना अल्पमतमें है उसको भी उपके अनुरूप प्रतिनिधित्व मिले चाहिये, उसे समतिशील और सुख स्वरूप मानमा चाहिये। ऐसी कोशिश करना है। अवनति और दुखको दुनियाकी बीमारी समझकर इलाज (दलीय निर्वाचन प्रणालीके नाममे आपने एक ऐसी करना चाहिये।
प्रणाजी बनाई है जिससे छोटे छोटे दबके साथभी अन्याय (करीब डेढ़ सौ वर्ष में दुनिया कैसी स्वर्गापम बन न होगा । आज वो हर एक चुनाव क्षेत्र में कोई दत्त जायगी इसका सुन्दर चित्र मापने 'नया संसारमें खींचा चालीस फीसदी हो तो साठ फीसदी वाले दनसे सत्र है,जो कि सम्भव तथा उपन्यासमे भी बनकर दिल- जगह हारकर प्रान्तमें इसका प्रतिनिधित्व शून्य फीसदी चस्प है।
होमकता है। आपकी बनाई प्रयानीसे यह मन्धेर दूर हो -दानशीखता किसी व्यक्ति जीवनकी शोभा हो जाता है। सकती है पर राष्ट्रकी नहीं। राष्ट्रकी शोभा है ऐसी १६-शासकमण्डल योग्यसे योग्य श्रादमियोंका बने
और उसमें चलतेपुले न घुम जाया करें ऐसी व्यवस्था सामाजिक और कानूनी व्यवस्था जिससे हरएक मनुष्य ।
करना है। इसके लिये संविधानमें काफी संशोधन करमा अपनप जीवन निर्वाहकी काफी सामग्री पा सके, है। मन्त्रिमयज निर्माणका तरीका नया बनाना है। किसीको भिखारी न बनना पड़े।
(ये सब बाते लेखों और पुस्तकों में बताई है) .-मनुष्यमात्रकी एक मानवभाषा बनाना जरूपी
१७-शासन संस्था ऐसी माविक बनाना है कि राष्टभेद प्रान्तभेदमादिकी भेदभावना, भाषाभेदभी किसी ईमानदार भादमीकी मनमो भय हो न उसका जबर्दस्त कारण है। मानवभाषा वैज्ञानिक प्राधारपर सरल अपमान हो शासक सहयोगी और सेवकके रूप में देखा और नियमोंके अपवादोंसे रहित होना चाहिये।
जाय । साधारण अजानकारीसे जनताका अपमान न हो। (मापने एक 'मानवभाषा' का निर्माण किया है 1-दुनिय में मनुष्योंकी भीड़ है। पर हर मनुष्य
अकेली .असहाय है, मंकटमें उसे किसीका भरोसा नहीं, जिपका पूरा व्याकरण-10 दिनों बाद हो सकता है,
ऐसी स्थितिसे प्रत्येक मनुष्यका पिंड चुकाना है। शब्दकोष भातुकोषभी सरल है। टेलीग्राफी और लिपिका
११-अहिंसा सस्य ईमान शील प्रादि धमके रूपों में भी अच्छा संशोधन किया है।)
पूर्ण व्यवहारिकता लाना है और उन्हें समाजके अधिकसे "-हमारा ध्येय एक मानवराष्ट्र या पृथ्वी राष्ट्र अधिक व्यक्तियों के जीवन में उतारना है। है।पाजके राष्ट्रोंको प्रान्त बनाना है। ऐसीही उदार २०-'मैं इमी दुनियामें एक ऐसे संसारके दर्शन मनोवृत्ति और व्यवस्थाका विकास करना है जिससे मानव- करना चाहता हूँ जिम्मन साम्राज्यवाद ही न पूंजीवाद,
म धर्मके झगड़े हो न आक्केि, न धनकी महत्ता होन राष्ट्र बने।
पशुपत की, सारी दुनियाका एक राष्ट्र हो, मनुष्यमात्रकी १२-युद्धोंको गैरकानूनी ठहराना है। विश्वभरका
एक जाति हो, नर नारीका अधिकार और सम्मान समान एक निष्पा और समर्थ न्यायालय बनाना है।
हो, सस्य ही ईश्वर हो विवेक ही शास्त्र हो, विज्ञान और १-देशके राजनैतिक दलों में प्रतिस्पर्धा भलेही रहे धर्म परस्पर पूरक हो, सदाचार और ईमानदारी लोगोंका पर उनमें शत्रता न हो, झूठी निन्दाकी वृत्ति न हो, स्वभाव हा एकका पुःख सबका दु:खहो, सारे विश्वका
एक कुटुम्ब हो, कोई गरीबन हो। सत्य समाज द्वाग मैं परस्परमें असभ्य व्यवहार न हो, मतभेदको छोडकर बाकी
ऐयेही नये संसारकी वरकस संसारको ले जाना बातों में सथा देशके संकटके समय परस्पर सहयोग हो।
चाहता हूँ। नये संसारका निर्माणकर सत्य समाजको 1-मिरतिवाद स्थानपर समाजवाद और व्यक्ति- विक्षीमोलाना"